1-दावानल
के तुम अवशेष !
- प्रणति ठाकुर
दग्ध हृदय ले विचर रहे हो
दावानल के तुम अवशेष!
देवदारु सदृश थी तेरी ऊँची आशा
सुन्दर सघन पलाश तुम्हारी थी अभिलाषा
कुसुमित, सुरभित इच्छाएँ भी तनिक रहीं
न शेष
दावानल के तुम अवशेष !
दावानल में जलकर जो न बिखर सकी थीं
जल-जलकर जो स्वर्ण-खण्ड-सी निखर पड़ी थीं
वो मन की इच्छाएँ तपकर कुछ हो गईं विशेष
दावानल के तुम अवशेष !
अपने मन की पीड़ा लेकर घूम रहे हो
स्वयं, स्वयं के घाव छीलकर चूम रहे
हो
जगती की हर इक छलना पर स्वयं ही करते क्लेश
दावानल के तुम अवशेष !
सद्विचार की अमृत -वर्षा अपने मन पर करके देखो
मन की सीमाओं को तोड़ मृग -सदृश विचरके देखो
अपने कृत्यों से विगलित हो स्वाति -सदृश छहर के देखो
अपना अन्तर्निहित गरल पी स्वयं ही बनो महेश
दावानल के तुम अवशेष !
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कोलकाता
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2-प्रेम
डॉ.
सुरंगमा यादव
1
प्रेम संजीवनी जिंदगी के लिए
प्रेम शीतल पवन है तपन के लिए
प्रेम जिसने किसी से किया ही नहीं
उसने कुछ न सहेजा खुदी के लिए ।
2
प्रेम बंधन नहीं है,बँधो तो सही
प्रेम विस्तार है तुम करो तो सही
प्रेम को जो भी धोखा दे जानकर
सात जन्मों तरसता सुनो तो सही।
3
प्रेम होली का रंग प्रेम दीपावली
प्रेम में साँझ भी भोर बनकर खिली
प्रेम संसार का आदि संगीत है
प्रेम में डूबकर सिया वन को चली।
4
प्रेम करना है तो डूबकर तुम करो
प्रेम में घात लेकिन कभी मत करो
भावना में बही बेटियो! तुम सुनो
प्रेम के नाम पर यातना मत सहो।
5
प्रेम में दिल के टुकड़े सुने थे कई
देह के टुकड़ों की बात है ये नई
समर्पण की सीमा वहाँ है जरूरी
जान की कीमतें जहाँ सस्ती हुईं।
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बहुत सुंदर भावपूर्ण कविताएँ। सुरंगमा जी, प्रणति ठाकुर जी हार्दिक बधाई आप दोनों को। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत ही भावपूर्ण
ReplyDeleteहार्दिक बधाई प्रणति ठाकुर जी एवं सुरंगमा जी
बहुत भावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया सुरंगमा जी एवं प्रणति जी को
सादर
सुंदर भावपूर्ण कविताएँ... सुरंगमा जी, प्रणति ठाकुर जी हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर, भावपूर्ण कविताएँ आ. प्रणति ठाकुर जी एवं सुरंगमा जी!
ReplyDeleteसुरंगमा जी की चौथी व पाँचवी कविताओं का संदेश विशेष रूप से उल्लेखनीय ! _/\_
~सादर
अनिता ललित
बहुत प्यारी रचनाएँ, हार्दिक बधाई
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