रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
घुस
गए चोर कवि जी के घर में
सोते-सोते
सुना रहे थे कविता
वे
ऊँचे स्वर में ;
संयोजक
उन्हें बार-बार कुर्ता खींचकर
टोक
रहे थे ,
हर
कविता के बाद घण्टी बजाकर भी
उन्हें
रोक रहे थे।
कवि
जी झल्लाए,
और
गला फाड़ आवाज़ में चिल्लाए-
‘यह
मेरा घर है, मैं बार -बार बता रहा हुँ
आखिरी
बार तुम्हें अब समझा रहा हूँ-
यहाँ
पर तुम्हारी दाल हरगिज़ न गलेगी
और
कहीं चलती होगी तुम्हारी चाल
यहाँ
पर बिल्कुल न चलेगी।’
सिर पर रखकर पैर, चोर वहाँ से भागे
भगदड़ सुनकर कवि जी गहरी नींद से जागे।
कविता के फ़ायदे कवि जी को जँच गए
कविता के कारण ही वे लुटने से बच गए।
-0-8-9-1985
सहजता से कह देना जैसे-जैसे सब घटित हुआ, बड़ी बात है सर ,जो आपके शिल्प की खूबसूरती बढ़ाता है ।लाजवाब सर ,हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteसहज, सरल ढंग से सुंदर भावों की लाजवाब अभिव्यक्ति। बधाई
ReplyDeleteवाह्ह.... इतनी सुंदर..गूढ़ भाव से पूर्ण है... 🌹🙏🙏सर आपकी लेखनी सदैव दमक रही थी... दमक रही है... और दमकती रहेगी 🙏🌹🌹प्रणाम सर 🌹🙏
ReplyDeleteवाह, अच्छी लगी कविता🙏
ReplyDeleteवाह,बहुत सहज ढंग से गम्भीर अर्थ की व्यंजना,आज भी चोर कविता की चोरी कर रहे हैं,यहाँ भी व्यंजना में वही चोर नजर आ रहे हैं।परिहास में बढ़िया व्यंग्य।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब।
ReplyDeleteसभी साथियों का अतिशय आभार ।
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुंदर और मज़ेदार! एकदम अलग हट के कुछ नयी सी बात 😊 आपकी लेखनी का यह नया रूप दिखाने के लिए धन्यवाद 😊
Deleteसादर
मंजु मिश्रा
www.manykavya.wordpress.com
बहुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeleteकविता में व्यंग्य भी छिपा है और चमत्कृत कर देने का तत्व भी । बधाई भैया ।
ReplyDeleteकविता की सहजता और सरलता बहुत प्रभावित करती है। पीड़ा की चुटीली अभिव्यक्ति होठों पर सहज मुस्कान ले आती है। बधाई भैया
ReplyDeleteवाह. बहुत खूब.
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteकविता में व्यंग्य भी छिपा है और चमत्कृत कर देने का तत्व भी । बधाई भैया ।
ReplyDeleteशशि पाधा
एक नए अंदाज की बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली, धन्यवाद आदरणीय!!
ReplyDeleteमज़ेदार हास्य कविता 😂
ReplyDeleteबहुत मज़ेदार! कवि होने का एक यह भी फ़ायदा. बहुत बढ़िया व्यंग्य. बधाई भैया.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और एक नए ढंग की कविता।
ReplyDeleteआपकी लेखनी गजब की अभिव्यक्ति करती है।
सादर प्रणाम
हास्य - व्यंग्य के घूँघट में घट गयी पूरी घटना , सरल सुन्दर । अरसे पूर्व लिखी कविता सुन्दर अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई हिमांशु भाई ।
ReplyDeleteगज़ब...इतना मज़ा आया इस कविता को पढ़ते हुए , हार्दिक बधाई आदरणीय काम्बोज जी को
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