1
चेहरे से कहाँ लगता
है
असल का अंदाज़ा
लोग तो परतों में
खुला करते हैं।
2
दुख की जड़ों में ही
होती है
सुख की पौध
ज्यों-ज्यों दुख
काटते जाओगे
सुख उगता आएगा।
3
उँगलियाँ निभा रही
हैं
रिश्तों को आज
जाने क्यों मार गया है काठ
ज़ुबानों को।
4
पल में ले लेते हैं
जान
मख़मली लहजे
रखना परहेज़
शीरी ज़ुबानों से।
5
बूढ़ी माँ को बच्चे
समझें सौदाई
बात समझ के कहते
समझ नहीं आई।
6
चुप्पी का करें
सम्मान
गुरु होती है यह
आवाज़ों की।
7
बेग़ैरत लोग अक्सर
उसी को डुबोते हैं
जिससे सीखा होता है
उन्होंने तैरना।
8
बात तो आचरण की होती
है
वरना
क़द में तो साया भी
इंसान से बड़ा होता
है।
9
बेफिक़्री की डोर
बाँधकर
उड़ा दो आसमान में
परेशानियों की पतंग
कोई न कोई तो
कर ही देगा
बो काटा।
10
आसान नहीं होता
घरों को बसाना
पता नहीं
कितनी परीक्षाओं से
गुज़रे होते हैं
बसे हुए घर।
11
जिस ख़ास के लिए
आप ख़ास नहीं हैं
उसे आम कर दो
जिस आम के लिए
आप ख़ास हो
उसे ख़ास कर दो।
13
व्यस्तता ही भली
तनिक खाली बैठे नहीं
कि
बीते को दोहराने लगती
हैं
तनहाइयाँ।
14
अच्छे लोग उन उजालों
से होते हैं
जो फासले तो कम नहीं
कर सकते
लेकिन
मंज़िल को आसान बना
देते हैं।
15
आँसुओं की ताकत
बेरंग होते हुए भी
कर देती है आँखों को लाल।
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छोटी किंतु सशक्त कविताएँ,सभी कविताएँ अनुपम।बधाई कृष्णा जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताएँ।
ReplyDeleteआदरणीया कृष्णा वर्मा जी को हार्दिक बधाई।
सादर
चेहरे से कहाँ लगता है
ReplyDeleteअसल का अंदाज़ा
लोग तो परतों में
खुला करते हैं।
क्या बात है ! सुन्दर कविताएँ...