रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
गुलाब
के अधर खुलते हैं तो
तेरे
हृदय के खिलने का आभास होता है
मलय
पवन के संस्पर्श से
रन्ध्र
मत्त होने पर
अगुआ
तेरा हर श्वास होता है ।
मुझे
अपने चरणों की
धूल
बन जाने दे,
फूल
बनकर राह में
अपनी
बिछ जाने दे ।
मुझे
सुख है या कि दु:ख
हर्ष
है या विषाद
कुछ
कह नहीं सकता
तेरे
सृजन पर कोई उँगली उठाए
करे
विवाद , बिना बात
मैं
सह नहीं सकता ।
तेरी
प्रत्येक भेंट की मैंने
प्राण
से स्वीकार
सोच
भी नहीं सकता कि
तुझमें
है कोई विकार ।
आँसू
हो या कोई गीत
सम्पत्ति
हो या कोई विपत्ति
प्रियतम!
तेरी किसी भेंट को
कभी
लौटा नहीं सकता
आकर
तेरे पगतल में
किसी
दूसरे द्वारे जा नहीं सकता ।
(रचनाकाल;27-4-74)
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteभावाकुल हृदय की सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही अनुपम सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय गुरुवर को।
सादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...हार्दिक बधाई भाईसाहब।
ReplyDeleteवाह्ह!!! इतनी सुंदर रचना!! 🌹🌹🌹आपकी लेखनी हृदय की गहराई को स्पर्श करती है सर 🙏🌹वास्तव में आपको पढ़ना सौभाग्य है सर 🌹🙏🙏🌹
ReplyDeleteसदाबहार ! धन्यवाद आदरणीय!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव पूर्ण कविता,हार्दिक बधाई आदरणीय।
ReplyDeleteआपकी प्रेरक टिप्पणी के लिए कृतज्ञ हूँ।
ReplyDeleteसुंदर रचना , भाव की गहराई और समर्पण की ऊँचाई लिए
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteचार दशक पहले की भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिये हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ आदरणीय हिमांशु भाई ।
ReplyDeleteहृदय को छू लेने वाली बहुत सुंदर कविता। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteकोमल भाव की बहुत सुन्दर कविता. बधाई भैया.
ReplyDeleteप्रेम की कोमल अनुभूतियों की बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है, हार्दिक बधाई आदरणीय काम्बोज जी को
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