पथ के साथी

Wednesday, August 4, 2021

1122

 1-प्रेम- गंगा: पूनम सैनी

 


आज भी थमी है आँखें

उस एक वक्त पर

जब आए थे तुम

मेरे करीब

बहुत करीब

मेरे कानों में जब

बुदबुदाए थे तुम कुछ देर

उतर गया है

हर लफ्ज़ हन में

गूँजती है कानों में आज भी

आवाज़ तुम्हारी

हाथ बढ़ाके  जब

थाम लिया था हाथ मेरा

महसूस आज भी होती है

वो अपनेपन की गर्माहट

सच कहूँ ?

कुछ ना सुना था मैंने

ना तब और ना अब

सिर्फ महसूस किया...तुम्हें

महसूस की तुम्हारी बढ़ी हुई धड़कन

महसूस किया शब्दों में लिपटी

भावनाओं को

सोख ली हर संवेदना 

समा लिया सब हर रोम में

अब जब-तब याद करती हूँ तुम्हें

याद आते है वो पल

प्रेम जिसे कहते है 

केवल तब महसूस हुआ

वो दिन था अवतरण का

अब याद में उस पल की

बह उठती है अविरल- सी

नयनों से निर्मल प्रेम की वो गंगा

-0-

2- प्रीति अग्रवाल

1- मेरे ख्वाबों के मंज़र
1.


मेरे ख्वाबों के मंज़र
खड़े हैं जहाँ,
आसमानों को छूता
है वो शिकार....
नींव उनकी तुम्हीं हो
ए मेरे सनम,
उनकी ताबीर, मेरी
हक़ीक़त हो तुम!!
2.
ग़ैरों की तरह
वो मिले आए यूँ....
कभी जानते थे,
भरम-सा हुआ....!
3.
तुम्हें मा करने की
कोशिश तो की थी....
मग़र क्या करूँ,
ज़ख़्म अब भी हरा है...!
4.
ऐ दरख़्त , तू कटके
है कागज़ बना,
हमारी ही ख़ातिर
हुआ है फ़ना.....
अदा, हक ये कैसे
तेरा मैं करूँ,
ले!
तुझ पर आज
कविता, मैं कहूँ...!
4.
तमाशायी हैं वो,
करतब, उनका काम......
तमाशबीन, मैं
बनूँ, न बनूँ.....
है, मेरे वश में ये,
मेरे वश में यही.....!
5.
चले जा रहे,

न ऊब, न थकन.....
है ये कौन सी मंज़िल,
जो रुकने नहीं देती....
6.
तुम्हें जान पाने की
कोशिश में हम....
हुए गुमशुदा कब,
खबर ही नहीं....!
7.
बात दिल की ही दिल में,
अगर रह गई....
ज़िन्दगी में कहाँ,
ज़िन्दगी रह गई.....!
8.
आता कुछ भी नहीं
कर लेती हूँ सब,
मैं नारी हूँ, चुप रहकर
कह लेती हूँ सब....
सुनते तो हैं वो, पर
शायद, समझते नहीं...
समझने में, उनकी,
भलाई जो नहीं....!
9.
उतरेगा कोई यूँ,
दिल में मेरे कभी....
बहुत होगा शोर, और
आहट, तक नहीं....!
10.
तू था वहीं
फिर भी लगा,
शामिल हूँ
बेगानों में, मैं.....
और
डूब रही थी मेरी कश्ती,
अपने ही, किनारों पे....!
11.
सोचते ही तुझे,
ये हुआ क्या मुझे....
टिमटिमाने लगे,
मन के दीपक बुझे.....!
12.
चाँदनी, तेरा क्या
जहाँ चाँद, वहाँ तू....
तू ठंडी सही,
जाने क्यों जला रही है....!

-0-
3 कविता-अधूरी सी

- प्रीति अग्रवाल

 

गिरती रही

सम्भलती रही,

जूझती रही

टूटती रही,

बिखरती रही

समेटती रही,

अपने, और

अपनों को,

ख्वाहिशें, और

सपनों को.....

जाने कौन संग चला

कौन पीछे रह गया,

मेरे वजूद का हर अंग

दुखता सा रह गया,

इस अधूरेपन के पार

जाने क्या देखा तुमने,

जो, अब भी कहते हो,

'तुम स्वतः पूर्ण हो"......!!

-0-

8 comments:

  1. सुंदर कविताएं

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  2. पूनम जी बहुत ही सुन्दर कविता

    प्रीति जी सभी रचनाएँ उम्दा ....एक से बढ़कर एक ...

    सुन्दर सृजन के लिए आप दोनों को हार्दिक शुभकामनाएँ

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  3. पूनम सेनी जी की और प्रीति की कविताएँ अत्यधिक सुंदर शब्दों में और भावों में बंधी है। बधाई दोनो को।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति पूनम जी बहुत-बहुत बधाई।

    बहुत सुंदर सृजन। क्षणिकाएँ और रचना दोनों भावपूर्ण...हार्दिक बधाई प्रीति।

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  5. पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय काम्बोज भाई साहब का हार्दिक आभार!
    प्रेम गंगा, निर्मल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति! बधाई आपको पूनम जी!
    उपमा जी, पूर्वा जी, सविता जी और कृष्णा जी , आपकी सुंदर प्रतिक्रिया मन मे सदैव उत्साह भर देती है, हार्दिक धन्यवाद!

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  6. पूनम सैनी जी की रचना पढकर कवयित्री की काव्य प्रतिभा के दर्शन हुए | बहुत समय के बाद एक सुंदर कविता पढने को मिली | बहुत सारी बधाई पूनम जी |श्याम त्रिपाठी हिंदी चेतना

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  7. मोहब्बत, बेवफ़ाई, अपनापन और बेगाना हो जाने की तकलीफ़...दिल से जुड़े तमाम भाव हैं आप सभी की रचनाओं में | दिल से रची, दिल तक गई इन बेहतरीन रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई आप दोनों को |

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