पथ के साथी

Sunday, September 26, 2021

1136- जब मैं तुम्हारी उँगली थामूँ

 जब मैं तुम्हारी उँगली थामूँ

         सुशीला शील राणा

 


जीवन सागर में

कभी थिर पानी

तो कभी 

भयंकर झंझावातों में

तुम्हें रखा बचाए

सदा छाती से लगाए

कि नहीं झुलसाए तुम्हें

ज़रा भी तपती धूप

जलती लू की आँच 

 

जब कभी

विपदाओं के तूफ़ानों में

डगमगाई परिवार की नैया

भींच लिया है तुम्हें

मेरी मज़बूत बाँहों ने

अपने सुरक्षा घेरे में

 

जीवन सागर के 

अनंत विस्तार में

जब भी रखे हैं तुमने

बाहर अपने कदम

मेरी निगाहों के 

सी सी टी वी कैमरे

करते रहे हैं तुम्हारा पीछा

कि कोई वहशी नज़र

कर न ले तुम्हारा शिकार

 

 

मुझे

ख़ुद से ज्यादा

रही है तुम्हारी फ़िक्र

ज़िंदगी भर

 

 

जीवन सागर के

तट पर पहुँचते-पहुँचते

कई बार गिरी-उठी

टूटी-जुड़ी

लहूलुहान हुई

थक के चूर हुई

 

 

जीवन की

गोधूलि बेला में

लड़खड़ाते भरोसे 

डगमगाते कदमों के साथ

जब मैं तुम्हारी उँगली थामूँ

तो मेरी आत्मजा

तुम हो जाना 'मैं'

थाम लेना मेरा हाथ

बुढ़ापे को दे देना

जवानी का सहारा

 

लौट जाऊँगी मैं

तुम्हारे बचपन में

तुम-सी होकर

तुम हो जाना मुझ-सी

और इस तरह

लौट आएँगे फिर

हम दोनों की ज़िंदगियों के

सबसे ख़ूबसूरत दिन

28 comments:

  1. बहुत खूब 🙏🌹🌹✌️

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया आपका

      Delete
    2. सराहना के लिए धन्यवाद राजेश जी 🙏

      Delete
  2. उत्तम और भाव पूर्ण कविता - बेटी और माँ का रिश्ता सचमुच दिव्य और महान होता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सराहना के लिए हार्दिक आभार सर

      Delete
  3. जब मैं तुम्हारी उँगली थामूँ
    तो मेरी आत्मजा
    तुम हो जाना 'मैं'.....लौट जाऊँगी मैं
    तुम्हारे बचपन में
    तुम- सी होकर
    तुम हो जाना मुझ- सी

    बहुत ही भावपूर्ण।
    हार्दिक बधाई आदरणीया सुशीला जी।

    सादर 🙏🏻

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप कविता के मर्म तक पहुँची मेरा लेखन सार्थक हुआ रश्मि जी। हार्दिक आभार

      Delete
  4. सहज, सुंदर और भावपूर्ण कविता💐💐💐💐शुभकामनाएँ आपको💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत शुक्रिया नंदा जी 🙏

      Delete
  5. Replies
    1. शुक्रिया प्रिय सीमा

      Delete
  6. लौट जाऊँगी मैं
    तुम्हारे बचपन में
    तुम-सी होकर
    तुम हो जाना मुझ-सी
    और इस तरह
    लौट आएँगे फिर
    हम दोनों की ज़िंदगियों के
    सबसे ख़ूबसूरत दिन.....वाह,बेहद खूबसूरत और मार्मिक कविता।बधाई सुशीला शील जी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
    2. सराहना, प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार शिवजी सर

      Delete
  7. भावपूर्ण मार्मिक कविता ।बहुत बहुत बधाई सुशीला जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना हेतु हार्दिक आभार डॉ सुरँगमा 🙏

      Delete
  8. भावपूर्ण कविता💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया अनिता जी

      Delete
  9. भावपूर्ण सृजन,, हार्दिक बधाई।
    -परमजीत कौर रीत

    ReplyDelete
  10. वाह बहुत सुंदर और मार्मिक भाव!!

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete
  12. सराहना के लिए धन्यवाद ओंकार जी

    ReplyDelete
  13. बहुत भावपूर्ण कविता...हार्दिक बधाई सुशीला जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार कृष्णा जी

      Delete
  14. अत्यंत संजीदा , जीवन की सच्चाइयों की भावाभिव्यक्ति के लिये हार्दिक बधाई सुशीला जी ।

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है, मेरी बहुत बधाई

    ReplyDelete