रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
यह दुनिया तो दो पल की है, बस मैं इतना इज़हार करूँ
जो चाहे नफ़रत करता हो, मैं तुझसे जीभर प्यार करूँ।
सुख-दुख तो आते-जाते है, ये अपना फ़र्ज़ निभाने को
आँख मुँदे जब अन्तिम पल में,मैं तेरा ही दीदार करूँ।
2
धूप है, ठण्डी हवाएँ साथ हैं ।
लाख दुश्मन, सब दिशाएँ साथ हैं ।
पथ में बाधाएँ माना हैं खड़ीं
हमेशा शुभकामनाएँ साथ हैं।
3
प्राण जब तक, हम तुम्हारे साथ होंगे ।
सिन्धु तक, दोनों किनारे साथ होंगे ।
कब प्रेम का जल, सूखता है धूप से
हम सदा बाहें पसारे साथ होंगे ।
4
सीख देने आ गई, इस लहर से तुम
डरो।
विषबेल सींचो नहीं,
इस ज़हर से तुम डरो।
प्यार दिल में है नहीं, ना सही , इतना करो
जीभ कोरोना बने, इस कहर से तुम
डरो।
-0-
बहुत सुंदर👌
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, भावपूर्ण मुक्तक। मन को छू गए। हार्दिक बधाई
ReplyDeleteपथ में बाधाएँ माना हैं खड़ीं
ReplyDeleteहमेशा शुभकामनाएँ साथ हैं।
बाधाओं से लड़ने को शुभकामनाओं का साथ अति सुंदर प्रयोग।
सभी मुक्तक प्रेरक। बधाई।
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचनाएँ
ReplyDeleteबधाइयाँ स्वीकार करें
बहुत सुंदर मुक्तक।बधाई भैया जी।
ReplyDeleteआपके चारो मुक्त्क अत्यंत गम्भीर और सार्थक हैं | अंधार -में प्रकाश की ज्योति और निराशा में आशा की किरन समान | बहुत ही सुंदर ! श्याम हिन्दी चेतना
ReplyDeleteलाख दुश्मन सब दिशाएं साथ हैं....
ReplyDeleteसिंधु तक दोनों किनारे साथ होंगे....
बहुत सुंदर भाव!!
सभी मुक्तक भावप्रवण हैं। बधाई काम्बोज भैया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर मुक्तक, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबढ़िया। अंतिम मुक्तक बहुत कुछ कह गया।
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ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन,हर मुक्तक लाजवाब!
हार्दिक बधाई भैयाजी।
सभी मुक्तक अत्यंत भावपूर्ण, बहुत सुंदर!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी! आपको एवं आपकी लेखनी को नमन!
~सादर
अनिता ललित
बहुत सुन्दर...आपकी कलम से निकले भाव दिल तक पहुँचे हैं, मेरी ढेरों ढेर बधाई |
ReplyDeleteसभी मुक्तक भावपूर्ण व सुन्दर बन पड़े हैं । हार्दिक बधाई हिमांशु भाई।
ReplyDeleteविभा रश्मि