रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
अधरों
का जो रस मिले, हार मान ले काल।
2
इन हथेलियों में छुपा, कर्मठता का सार।
रस प्लावित अंतर हुआ, चूम इन्हें हर बार।
3
खुशबू फूलों की रची, हर करतल में आज
इन हाथों को चूमकर, मिला प्यार का राज।
4
अधरों से था लिख दिया, करतल पर जब प्यार।
सरस आज तक प्राण हैं, पाकर वह उपहार।
5
चूम- चूमकर मैं लिखूँ, इन हाथों में प्रीत।
रेखाएँ दमके सभी, पाकरके मनमीत।
6
फिर से आकरके मिलो, जैसे नीर- तरंग।
उर की तृष्णा भी मिटे, भीग उठें सब अंग।
7
कहाँ लगे तुम ढूँढने, इन हाथों की रेख।
कर्मठ हाथों ने लिखे, चट्टानों पर लेख।
8
पत्थर तोड़े बिन थके, तब पी पाए नीर।
इसलिए तो जानते, क्या होती है पीर।
9
आएँ लाखों आँधियाँ, घिर आएँ तूफान।
रुकना सीखा हैं नहीं, इतना लो तुम जान।
10
सौरभ उमड़े आँगना, पथ में हो उजियार।
आशीषों का छत्र हो, तेरे सिर हर बार।
11
तेरे सुख में साँझ है, तेरे सुख में भोर।
पीर उठे तेरे हियेम दुखते मन के छोर।
12
पता नहीं किस यक्ष ने, दिया हमें अभिशाप।
तुम्हें पुकारूँ मैं नहीं, मुझको भी न आप।।
13
रूप तुम्हारा देखके, जड़, चेतन हैरान।
उतर स्वर्ग से आ गई, बनकरके उपमान।।
सुन्दर दोहे, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहे... हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteकहाँ लगे तुम ढूँढने, इन हाथों की रेख।
ReplyDeleteकर्मठ हाथों ने लिखे, चट्टानों पर लेख।।
अधरों से था लिख दिया,करतल पर जब प्यार।
सरस आज तक प्राण हैं, पाकर वह उपहार।।
वाह! बहुत सुन्दर दोहे ।
हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर
बहुत सुंदर दोहे, हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीय भाईसाहब जी।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण दोहे। जीवन की अनुभूतियों और अनुभवों का सार है इन दोहों में। यह बहुत अच्छा लगा -
ReplyDeleteपत्थर तोड़े बिन थके, तब पी पाए नीर।
इसलिए तो जानते, क्या होती है पीर।
आएँ लाखों आँधियाँ, घिर आएँ तूफान।
रुकना सीखा हैं नहीं, इतना लो तुम जान।
बधाई और आभार काम्बोज भैया।
सभी दोहे सुंदर भाव लिए, विशेषतः कहाँ लगे तुम ढूँढने..., तेरे सुख में सांझ है.., और... पत्थर तोड़े बिन रुके...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय!
बहुत ही सुंदर दोहे।💐🙏
ReplyDeleteगहन प्रेम की अनुभूतियों के सुंदर दोहे।प्रत्येक दोहा अनुपम भाव का अभिव्यंजक है।हार्दिक बधाई।सादर नमन।
ReplyDeleteअधरों से था लिख दिया, करतल पर जब प्यार।
ReplyDeleteसरस कहाँ लगे तुम ढूँढने, इन हाथों की रेख।
कर्मठ हाथों ने लिखे, चट्टानों पर लेख।
आज तक प्राण हैं, पाकर वह उपहार।
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। बधाई आपको।
प्रेम का रंग बगर गया है,भीतर मन तक भीग गया है
ReplyDelete,भले ही हाथ मे छाले हैं लेकिन खुरदरी हथेलियों में प्रेम भी उग सकता है ये दोहे यही बयां कर रहे हैं।
ये पंक्तियाँ मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगी-
तेरे सुख में साँझ है, तेरे सुख में भोर।
पीर उठे तेरे हिय में दुखते मन के छोर।
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ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे।सादर नमन।
ReplyDeleteहृदयतल से आप सब रस मर्मज्ञों का आभार। आपके शब्द मेरी प्रेरणा हैं।- रामेश्वर काम्बोज
ReplyDeleteप्रेम के रंग में सराबोर हरेक दोहा! सभी एक से बढ़कर एक, लाजवाब! हार्दिक बधाई एवं सादर नमन आदरणीय भैया जी आपको व आपकी लेखनी को!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
मिठास भरे सभी गेय दोहों के लिये हिमांशु भाई को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकितने सुन्दर दोहे हैं सभी, आनंद आ गया | बहुत बधाई
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