दोहे
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
रिश्ते- नाते नाम के,
बालू की दीवार
आँधी बारिश में सभी, हो जाते बिस्मार।
2
रिश्तों में बाँधा नहीं, जिसने सच्चा प्यार
जीवन- सागर को किया, केवल उसने पार।
3
सारी कसमें खा चुके, बचा नहीं कुछ पास।
जो फेरों का फेर था, तोड़ दिया विश्वास।
4
जीवनभर रहते रहे, जो- जो अपने साथ
बहती धारा में वही , गए छोड़कर हाथ।
5
मौका पा चलते बने, अवसरवादी लोग।
जीवन भर को दे गए, दुख वे छलिया लोग।
6
नीड तोड़ उड़ते बने, कपट भरे वे बाज।
बैठा सूनी डाल पर, पाखी तकता आज।
7
होम किए रिश्ते सभी, मन्त्र बने अभिशाप।
कर्म किए थे शुभ यहाँ, वे सब बन गए पाप।
8
दारुण दुख देकर हमें, तुम पा जाओ चैन।
शाप तुम्हें देंगे नहीं, दुआ करें दिन रैन।
9
सचमुच सब तर्पण किए, सप्तपदी सम्बन्ध।
बहा दिए हैं धार में, धोखे के अनुबंध।
10
दुख में तपता छू लिया, मैंने जिसका माथ।
आँधी में, तूफ़ान
में, वही बचा अब साथ।
11
क्या माँगूँ अपने लिए, यह सोचूँ दिन -रैन।
प्रियवर मैं तो माँगता, तेरे मन का चैन।
12
तेरा दुख पर्वत बना, हटे न तिलभर भार।
दर्द बाँट लें दो घड़ी, देकर निर्मल प्यार।
13
अधर तपे हैं दर्द से,घनी हो गई प्यास।
मधुरिम रस उर से झरे, तुम जो बैठो पास।
14
मन से मन के तार को, देते हैं सब तोड़।
जुड़ता केवल है वही, जिसकी दुख से होड़।
-0-
दोहे
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
रिश्ते- नाते नाम के,
बालू की दीवार
आँधी बारिश में सभी, हो जाते बिस्मार।
2
रिश्तों में बाँधा नहीं, जिसने सच्चा प्यार
जीवन- सागर को किया, केवल उसने पार।
3
सारी कसमें खा चुके, बचा नहीं कुछ पास।
जो फेरों का फेर था, तोड़ दिया विश्वास।
4
जीवनभर रहते रहे, जो- जो अपने साथ
बहती धारा में वही , गए छोड़कर हाथ।
5
मौका पा चलते बने, अवसरवादी लोग।
जीवन भर को दे गए, दुख वे छलिया लोग।
6
नीड तोड़ उड़ते बने, कपट भरे वे बाज।
बैठा सूनी डाल पर, पाखी तकता आज।
7
होम किए रिश्ते सभी, मन्त्र बने अभिशाप।
कर्म किए थे शुभ यहाँ, वे सब बन गए पाप।
8
दारुण दुख देकर हमें, तुम पा जाओ चैन।
शाप तुम्हें देंगे नहीं, दुआ करें दिन रैन।
9
सचमुच सब तर्पण किए, सप्तपदी सम्बन्ध।
बहा दिए हैं धार में, धोखे के अनुबंध।
10
दुख में तपता छू लिया, मैंने जिसका माथ।
आँधी में, तूफ़ान
में, वही बचा अब साथ।
11
क्या माँगूँ अपने लिए, यह सोचूँ दिन -रैन।
प्रियवर मैं तो माँगता, तेरे मन का चैन।
12
तेरा दुख पर्वत बना, हटे न तिलभर भार।
दर्द बाँट लें दो घड़ी, देकर निर्मल प्यार।
13
अधर तपे हैं दर्द से,घनी हो गई प्यास।
मधुरिम रस उर से झरे, तुम जो बैठो पास।
14
मन से मन के तार को, देते हैं सब तोड़।
जुड़ता केवल है वही, जिसकी दुख से होड़।
-0-
ReplyDeleteउत्कृष्ट दोहे ....एक से बढ़कर एक भैयाजी -
रिश्तों में बाँधा नहीं,जिसने सच्चा प्यार ।
जीवन-सागर को किया,केवल उसने पार।।
सचमुच सब तर्पण किए,सप्तपदी सम्बन्ध।
बहा दिए हैं धार में,धोखे के अनुबंध।।
मन से मन के तार को,देते हैं सब तोड़।
जुड़ता केवल है वही,जिसकी दुख से होड़।।
लाजवाब.. अंतर्मन को छू गए।
इतने सुन्दर सृजन के लिए हृदय-तल से बधाई आपको आदरणीय भैया जी।
सुंदरतम।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteउत्कृष्ट ,अनुपम, भावपूर्ण दोहे। मन को छू गए। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे! हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे! हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteजिसकी दुख से होड़, वाह, सुन्दर दार्शनिक अभिव्यक्ति के साथ शानदार और भावपूर्ण दोहे। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसभी दोहे बहुत ही सुंदर .... एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ
वाह,प्रेम,समर्पण,वेदना,करुणाऔर सम्बन्धों की निस्सारता एवं स्वार्थपरता के भावों को अभिव्यक्त करते उत्कृष्ट दोहे।आपको लेखनी की नमन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे आदरणीय ।
ReplyDeleteबेहतरीन भावपूर्ण सृजन। हार्दिक बधाई भाईसाहब।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए आप सबका हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभूतियों और भावों से परिपूर्ण दोहे। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीय भाईसाहब जी।
ReplyDelete-परमजीत कौर'रीत'
बहुत सुंदर और गहरी बात लिए हुए दोहे। बधाई भाई साहब!
ReplyDeleteसम्बन्धों की गहराई को नापते, एक से बढ़कर एक सुंदर दोहे, आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण दोहे रचे हैं भाईसाहब हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण, सामयिक, शिक्षाप्रद एवं मनन योग्य दोहे। उत्कृष्ट सृजन थे लिए काम्बोज भैया खो हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण, सामयिक, शिक्षाप्रद एवं मनन योग्य दोहे। उत्कृष्ट सृजन के लिए काम्बोज भैया को हार्दिक बधाई।
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