पथ के साथी

Friday, December 11, 2020

तीन कविताएँ

  1- तुम्हारी ओर!

डॉ. सुरंगमा यादव

थक न जाएँ  कदम


तुम्हारी ओर बढ़ते-बढ़ते
कुछ कदम तुम भी बढ़ो न !
चलो यह भी नहीं तो
हाथ बढ़ाकर थाम ही लो
ये भी न हो अगर
तो मुस्कराकर
इतना भर कह दो
'मुझे तुम्हारी प्रतीक्षा है'
बस मैं सदा तुम्हारी ओर
बढ़ती रहूँगी!

-0-

2-बड़ी हुई है नाइंसाफी

भावना सक्सैना


राजधानी का रुख करते हैं
,

सत्ता से हैं बहुत शिकायत

सड़कें जाम चलो करते हैं।

 हों बीमार, या शोकाकुल हों

हम तो रस्ता रोकेंगे जी

कहीं कोई  फँस जाए हमें क्या

अपनी ज़िद पर हम डटते हैं।

 सत्ता ने ठानी सुधार की

वह तो अपने लिए नहीं जी

वंचित का चूल्हा बुझ जाए

हम अपने कोष हरे रखते हैं।

 सब्सिडी भी लेंगे हम तो

टैक्स रुपये का नहीं चुकाएँ

कर देने वाले, दे ही देंगे

तोड़-फोड़ हम तो करते हैं।

 सरकारों से बदला लेने

देश हिलाकर हम रख देंगे

हम स्वतन्त्र मन की करने को

आम जनों को दिक करते हैं।

 हमको बल ओछे लक्ष्यों का

कुर्सी के लालच, पक्ष हमारे

अपनी बुद्धि गिरवी रखकर

हम कठपुतली से हिलते हैं।

 बड़ी हुई है नाइंसाफी

राजधानी का रुख करते हैं,

सत्ता से हैं बहुत शिकायत

सड़कें जाम चलो करते हैं।

-0-

 3-किताब

संध्या झा

  किसी ने सच ही कहा है-


 जिसने किताबों से दोस्ती कर ली 

  वो फिर अकेला कहाँ ।

  किताबों ने बस दिया ही दिया है ।

  उसने कुछ लिया है कहाँ  

 

किताबों को जिसने

अपना हमसर बनाया है ।

 किताबों ने भी हर राह पर साथ निभाया है  

 किताबें आपकी सोच में  फ़र्क़ करती है  

 किताबें आपको मीं से आसमाँ पे रखती है ।

 

 किताबें सहारा किताबें  किनारा ।

किताबें अँधेरी गलियों में चमकता सितारा ।

किताबों की सोहबत जैसे ख़ुद से मोहब्बत ।

किताबे सवारे बिगड़ी हुई सीरत  ।।

-0-

14 comments:

  1. तीनो रचनाएं बहुत ही शानदार ,... बहुत बहुत बधाई एवम शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  2. नारी का कोमल मन, प्रेम के बदले सब करने को राज़ी, बहुत सुंदर सुरँगमा जी!
    बहुत सुंदर और सटीक व्यंग्य भावना जी!
    सच किताबों से सुंदर मित्र कोई नहीं संध्या जी!
    आप तीनो रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई!

    ReplyDelete
  3. सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक.....
    बस मैं सदा तुम्हारी ओर / बढ़ती रहूँगी!.... किसी से कोई उम्मीद नही, गिला भी नहीं लेकिन आशावादी दृष्टिकोण
    सड़कें जाम चलो करते हैं...... सत्य का चित्रण करती समसामयिक रचना
    वो फिर अकेला कहाँ..... बिलकुल सही सच्ची बात

    सुरंगमा जी, भावना जी एवं संध्या जी सुंदर सृजन के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें

    ReplyDelete
  4. तीनों रचनाएँ बहुत सुंदर।
    प्रेम की शक्ति सर्वोपरि है
    समसामयिक कविता,बढ़िया तंज
    किताबें निःस्वार्थ मित्र
    सुरंगमा जी, भावना जी, एवं संध्या जी हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  5. सुंदर कविताएँ ।
    बढ़ते रहना ही जीवन है ।
    सड़कें बन्द , जाम तो जीवन बन्द ।
    किताबों की दोस्ती अच्छी है ।
    आप तीनों को बधाई ।

    ReplyDelete
  6. श्रेष्ठ रचनाओं के लिए तीनों रचनाकारों के लिए बधाई | रचनाएँ हम तक पहुँचाने के लिए आदरणीय रामेश्वर जी को धन्यवाद

    ReplyDelete

  7. बहुत ही सुन्दर एवँ भावपूर्ण रचनाओं के लिए सुरंगमा जी,भावना जी एवँ संध्या जी को हार्दिक बधाई!

    ReplyDelete
  8. नारी की ये पीर नारी ही समझती है-सुंदर कविता सुरंगमा जी!
    आजकल बस हर बात पर यही होने लगा है, भावना जी। अच्छी एवं समसामयिक कविता!
    सच! किताबें और संगीत बहुत प्यारे साथी होते हैं! सन्ध्या जी, अच्छी रचना!
    आप तीनों को बहुत बधाई!

    ~सादर
    अनिता ललित

    ReplyDelete
  9. तीनों रचनाएँ बहुत उम्दा...आप सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  10. तीनों रचनायें पृथक मूड की , उम्दा अभिव्यक्तियाँ हैं । कवयित्री सुरंगमा जी ,भावना जी और संध्या जी को मेरी खूब बधाई ।

    ReplyDelete
  11. आदरणीय काम्बोज भैया और सभी मित्रों का उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभार।

    ReplyDelete
  12. सुरंगमा जी, संध्या जी, सुंदर भावपूर्ण रचनाएं।

    ReplyDelete