गीतिका
डॉ. गोपाल बाबू
शर्मा
1
काँटों की बन आई है
फूलों की रूसवाई है ।
प्रीति हुई हरजाई है ।
बस मतलब की काई है ।
कैसी बेशरमाई है ।
कितनी गहरी खाई है ।
सूली पर सच्चाई है ।
तम से छिड़ी लड़ाई है ।
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हर तरफ दायरे
झूठ के आसरे ।
आदमी से डरे ।
पर ज़हर से भरे ।
लोग बनते खरे ।
घाव होंगे हरे ।
शान से जो मरे ।
डाल से जो झरे।
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2-जीवन के अँधेरों में-
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जीवन के अँधेरों में
बाधा बने घेरों में
सभी द्वारे दीपक जलाए रखना ।
खुशियाँ ही जग को मिलें
मुस्कान के फूल खिलें
थोड़ी-सी रौशनी बचाए रखना ।
इन नयनों
की झील में
झिलमिल हर कन्दील में
प्यार के कुछ दीये , सजाए रखना ।
वही धरा का रोग हैं,
जो स्वार्थ-भरे लोग हैं
तनिक दूरी उनसे ,बनाए रखना ।
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"वही धरा का रोग हैं,
ReplyDeleteजो स्वार्थ-भरे लोग हैं"
वाह बहुत खूब जीवन को सकारात्मक प्रेरणा देती सुंदर कविता।
आप दोनों को हार्दिक बधाई आदरणीय।
सादर।
यथार्थपूर्ण एवं सार्थक संदेश देती रचनाएं। आप दोनों आदरणीयों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं...| मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें...|
ReplyDeleteसकारात्मक संदेश देती प्रेणादायी कविताएँ।सुंदर सृजन के लिेए डॉ.गोपाल बाबू शर्मा एवं रामेश्वर काम्बोज जी को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर सकारात्मक भाव जगाती रचनाएँ। बधाई सृजकों को।
ReplyDeleteआगे जाना ही होगा, तम से छिड़ी लड़ाई है..., सुंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति के लिये आदरणीय गोपाल बाबू शर्मा जी को बधाई!
ReplyDeleteइन नयनों की झील में, झिलमिल हर कंदील में, प्यार के कुछ दीये, सजाए रखना...! आदरणीय काम्बोज भाई साहब की सुकोमल अभिव्यक्ति, हर द्वार पर दीप जलाए रखने का उत्तम सन्देश देती सुंदर रचना!आपको बहुत बहुत बधाई!
आगे जाना ही होगा...
ReplyDeleteसभी द्वारे दीपक जलाए रखना...
आशा का संदेश देती सुंदर पंक्तियाँ
सभी रचनाएँ सुंदर
गोपाल जी एवं काम्बोज सर को उत्कृष्ट सृजन के लिए नमन तथा ढ़ेरों बधाइयाँ और शुभकामनाएँ
सुंदर संदेश देती उत्साह वर्धक रचनाएँ। आदरणीय गोपाल जी एवं काम्बोज जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सार्थक और भावपूर्ण रचनाएँ. गोपाल बाबू जी एवं काम्बोज भाई को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteपरिपक्व संदेशयुक्त रचनाएँ जो जीवन की सच्चाई लिए प्रकट हुई हैं । आप दोनों को बधाई ।
ReplyDeleteये मनोहारी गीत सहज ही गहन विचारों को प्रस्तुत कर रहे है । बार बार पढ़ी ये मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ - थोड़ी-सी रौशनी बचाए रखना .. प्यार के कुछ दिये, सजाए रखना .. है स्वर्ण कलश पर ज़हर से भरा .. इंसाँ इंसाँ के दरम्यान कितनी गहरी खाई है । इन्हें गुनगुना कर देखा - बड़ा मीठा सा भाव छोड़ जाती है । गीतों की इस फुहार से मन नहीं भरा अपितु और और की रट लगा रहा है ।
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ बहुत ही सुन्दर भाव सम्पन्न हैं ।बहुत-बहुत बधाई ।
ReplyDeleteसुन्दर संदेश देती बेहतरीन कविताएँ....डॉ.गोपाल बाबू शर्मा जी एवँ भैयाजी को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteआ. हिमांशु भाई और गोपाल बाबू शर्मा जी को सार्
ReplyDeleteसुन्दर , सार्थक गीतिका सृजन के लिए हिमांशु भाई को बधाई। डाॅक्टर गोपाल बाबू को बेहतरीन सृजन की दिली बधाई ।
ReplyDeleteविभा रश्मि
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