सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
भरोसा जो टूटा था
जोड़ रही वर्षों से....
बोलियाँ खामोश हैं
कितने ही अरसों से ...
दस्तक भी गुम है अब
बारिश के शोर में ....
अधूरे जो वादे थे
दब गए संदूकों में ...
नफरतें धो रही
प्रेम रस के साबुन से ...
चट्टानें जो तिड़क गईं
भर ना पाई परिश्रम से ...
उड़ गई जो धूल बन
ला ना पाई उम्र वही ...
नीर, जो
सूख गया
लौटा ना सकी सरोवर में ...
अक्षर जो मिट गए
लिख ना पाई फिर उन्हें ...
पुष्प जो मुरझा गए
खिल ना सके बगिया में ...
पत्ते जो उड़ गए
लगे ना दरख्तों पर ...
बर्फ़ जो पिघल गई
जम ना सकी फिर कभी ...
अगम्य राहें बना ना पाई
सुगम सी डगर कभी ...
निरर्थक यूँ जीवन रहा
हुआ ना सार्थक कभी ....
फिर भी एक आस है
बढ़ने की चाह है ....
हौसले बुलंद हैं ...
चाहतें भी संग हैं ....
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बेहद सुन्दर रचना!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया!
सादर!
सविता अग्रवाल जी बहुत सुन्दर रचना।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई सविता अग्रवाल जी।
ReplyDeleteजो गुज़र जाता वापस नहीं आता. सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteसभी मित्रों को कविता पर प्रतिक्रिया के लिए सुशील जी, रश्मि जी, सुरंगमा जी, सुदर्दशन जी और डॉ जेन्नी को ह्रदय से धन्यवाद |
ReplyDeleteसभी मित्रों को कविता पर प्रतिक्रिया के लिए सुशील जी, रश्मि जी, सुरंगमा जी, सुदर्दशन जी और डॉ जेन्नी को ह्रदय से धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना... सविता जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteफिर भी एक आस है/ बढ़ने की चाह है ..../हौसले बुलंद हैं .../चाहतें भी संग हैं ....
ReplyDeleteआशावादी सुंदर पंक्तियाँ
सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ सविता जी
कृष्णा जी और डॉ पूर्वा जी आप दोनों का हार्दिक धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है, मेरी हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteप्रियंका जी मेरी कविता पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद |
ReplyDeleteबेहतरीन रचना!आपको बहुत बहुत बधाई सविता जी!!
ReplyDeleteसविता अग्रवाल जी,बहुत सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको !
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