प्रीति अग्रवाल
1.
दौर मुश्किल
बड़ी कशमकश हो रही है,
गुनाहों की महफ़िल
सजी दिख रही है।
2.
सोचा था मनमानी
मुद्दतों चलेंगी,
ज़्यादतियाँ तभी
बेशुमार हमने की हैं!
3.
समझा दिया है नन्हे,
नादां-से दिल को,
जब न वो दिन रहे
तो न ये दिन रहेंगे!
4.
माँ, सपना बुरा है
बहुत डर लगा है,
तू सिर पे हाथ फेर
और हमको जगा दे!
5.
जो पूछे कोई
तुम मेरे कौन हो?
हमदर्द, हमज़ुबाँ
हमसफ़र, क्या कहूँ??
6.
वही है वक़्त
उसकी चाल भी वही,
बदला है जो
बस नज़रिया नया है!
7.
कोई हम 'पर' हँसे
या हम 'संग' हँसे,
बस रुलाने का सेहरा
न हमपर बँधे!
8.
शोहरत के पीछे
यूँ न पड़, तू सँभल!
बड़ी बेवफ़ा है,
किसी की न होगी!
9.
आज पुरवाई चुपके से
कानों में कह गई-
तू भी जिंदा है
कुछ पल तो जी भर के जी ले!!
10.
कठपुतली नाचे
ता-थैया ता-थैया,
बस डोर अब सही
हाथों में थमी है!
11.
सोचा बोलने से पहले,
तोल लूँ मैं ज़रा,
पर जाने कुछ कहने को
रहे न रहे!
12.
इबादत किए
इतनी मुद्दत हुई है,
दुआओं का भी
न असर हो रहा है।
13.
शोहरत कमाने की
हसरत सही है,
बदनामी से पर
यारों बात न बनेगी!
14.
ऐ बदरा !
तू कहीं दूर जा बरस,
यहाँ के लिए
मेरे नैना ही हैं काफ़ी!
15
परेशाँ है झूठ
कभी कहे तो कभी पूछे,
मैं सही! मैं सही?
मैं सही! मैं सही?
सच्चाई आराम से
मुस्कुरा रही है,
वो तब भी सही
वो अब भी सही!!
-0-
दौर मुश्किल
बड़ी कशमकश हो रही है,
गुनाहों की महफ़िल
सजी दिख रही है।
2.
सोचा था मनमानी
मुद्दतों चलेंगी,
ज़्यादतियाँ तभी
बेशुमार हमने की हैं!
3.
समझा दिया है नन्हे,
नादां-से दिल को,
जब न वो दिन रहे
तो न ये दिन रहेंगे!
4.
माँ, सपना बुरा है
बहुत डर लगा है,
तू सिर पे हाथ फेर
और हमको जगा दे!
5.
जो पूछे कोई
तुम मेरे कौन हो?
हमदर्द, हमज़ुबाँ
हमसफ़र, क्या कहूँ??
6.
वही है वक़्त
उसकी चाल भी वही,
बदला है जो
बस नज़रिया नया है!
7.
कोई हम 'पर' हँसे
या हम 'संग' हँसे,
बस रुलाने का सेहरा
न हमपर बँधे!
8.
शोहरत के पीछे
यूँ न पड़, तू सँभल!
बड़ी बेवफ़ा है,
किसी की न होगी!
9.
आज पुरवाई चुपके से
कानों में कह गई-
तू भी जिंदा है
कुछ पल तो जी भर के जी ले!!
10.
कठपुतली नाचे
ता-थैया ता-थैया,
बस डोर अब सही
हाथों में थमी है!
11.
सोचा बोलने से पहले,
तोल लूँ मैं ज़रा,
पर जाने कुछ कहने को
रहे न रहे!
12.
इबादत किए
इतनी मुद्दत हुई है,
दुआओं का भी
न असर हो रहा है।
13.
शोहरत कमाने की
हसरत सही है,
बदनामी से पर
यारों बात न बनेगी!
14.
ऐ बदरा !
तू कहीं दूर जा बरस,
यहाँ के लिए
मेरे नैना ही हैं काफ़ी!
15
परेशाँ है झूठ
कभी कहे तो कभी पूछे,
मैं सही! मैं सही?
मैं सही! मैं सही?
सच्चाई आराम से
मुस्कुरा रही है,
वो तब भी सही
वो अब भी सही!!
-0-
यशोदा जी आपके इस सम्मान के लिए मैं बहुत बहुत आभारी हूँ। मैं अवश्य आऊँगी, धन्यवाद।
ReplyDeleteसादर
प्रीति अग्रवाल
आदरणीय भाई साहब मेरी रचना को पत्रिका में स्थान दे कर आप जो मेरा मान और मनोबल बढ़ातें हैं उसके लिए बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक रचनाएँ..... बहुत सुंदर अनुभूतियाँ
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ प्रीति जी
अद्भुत लेखन ....
ReplyDeleteबहुत ही गहरे एवं भावपूर्ण सृजन
बहुत सुन्दर अनुभूतियाँ प्रीति जी ।ढेरों बधाइयाँ ।
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण अनुभूतियों के सृजन के लिए हार्दिक बधाई प्रीति जी।
ReplyDeleteपूर्वा जी, सत्या जी, सुरँगमा जी और सुदर्शन जी आप सब का स्नेह मुझे कितनी ऊर्जा देता है, यह शब्दों में कहना बहुत मुश्किल, आप सब का बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत सृजन प्रीति जी,हृदय तल से बधाई !
ReplyDeleteसोचा था मनमानी
ReplyDeleteमुद्दतों चलेंगी,
ज़्यादतियाँ तभी
बेशुमार हमने की हैं!
वाह...एक से बढ़कर एक अनुभूतियों की सार्थक एवम प्रभावी अभिव्यक्ति।बधाई प्रीति जी
आदरणीय शिवजी भैया आपकी सराहना मेरे लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण। आपका बहुत बहुत आभार!
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...हार्दिक बधाई प्रीति।
ReplyDeleteसभी रचनाएँ बहुत उत्तम. बधाई प्रीति जी.
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब सृजन।
ज्योत्स्ना जी, कृष्णा जी, जेन्नी जी और सुधा जी, आपके हृदय तक मेरी आवाज़ पहुँची, मेरे लिए बड़े हर्ष की बात है। बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव है प्रीति आपके लेखन में सभी अनुभूतियाँ पसंद आयीं विशेषकर ...७ ,१४ अत्यधिक मन भाये |आपको हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सविता जी।
Deleteबहुत उम्दा अनुभूतियाँ...हार्दिक बधाई...|
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