डॉ.पूर्वा शर्मा
1.
बदल ही गए सारे पते ज़िन्दगी वाले
पर आज भी तेरा पता... मेरा दिल ही ।
2.
बहुत खोजा हमने ज़िंदगी को
कमबख्त़ तुम्हारे बिन कहीं मिली ही नहीं ।
3.
मेरे शब्दों में बस तुम्हारी ही बस्ती
और लोग समझते मैंने कविता रच दी ।
4.
तू नहीं तो शायद तेरी महक ही मिल जाए
यही सोच कर हम शहर की सभी गलियाँ घूम आए ।
5.
गुजरे होंगे तुम इसी राह से शायद....
यही सोचकर हम भी इसी राह पर चल दिए ।
6.
अच्छा है तुम मिलते नहीं हमसे
यूँ भी तुम्हारी यादों से फुरसत नहीं हमें ।
7.
सूनी सड़क और ये खामोशियाँ
सुना रही तेरी-मेरी कहानियाँ ।
8.
हवा महककर कह रही
कि तुझे ही चूमकर आ रही ।
9.
कभी तो ख़्यालों से निकलकर बाहर आओ
और हमें कसकर गले लगाओ ।
10.
बिक चुकी
हर धड़कन-साँसें मेरी,
खुशनसीबी यही
खरीदार तुम ही ।
11.
तन से दूर, मन से पास
सबसे सुन्दर ये अहसास ।
12.
बात यह नहीं कि वो ज़िंदगी में
नहीं है
बात इतनी-सी है कि वो ही ज़िंदगी
है ।
पूर्वा जी अंतर की गहराई से निकली सभी सुंदर ,भावपूर्ण अनुभूतियाँ दिल को छू गईं।बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर लिखी हैं
Deleteपूर्वा जी की जीवन के एहसासों की सुंदर इबारत , बधाई । तन से दूर , मन से पास , बहुत सुंदर ये एहसास -अच्छी पंक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर! भावपूर्ण! 👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर! भावपूर्ण! 👌👌
ReplyDeleteवाह! सुन्दर अनुभूतियाँ ।बधाई पूर्वा जी ।
ReplyDeleteपूर्वा जी एक से एक बढ़कर अनुभूतियाँ हैं हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर , मन को पंक्तिया पूर्व जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है आपने ।
बधाई 💐
बेहद खूबसूरत भाव, विशेषतः बात यह नहीं....,तन से दूर....आपको मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई पूर्वा जी!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावप्रवण।
ReplyDeleteमन की गहराई से निकली सभी अनुभूतियाँ .. बेहद सुंदर! हार्दिक बधाई पूर्वा जी!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
बहुत सुन्दर अनुभूतियाँ, बधाई पूर्वा जी.
ReplyDeleteदिल तक जा पहुँची ये पंक्तियाँ...बहुत मनोहारी...| हार्दिक बधाई पूर्वा जी...|
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