पथ के साथी

Wednesday, April 15, 2020

971-महादान -महिमा



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

    दोहा-एक दिन कहने लगे, हमसे कफ़नखसोट ।
‘महादान से ही मिटें, जनम -जनम के खोट॥’
चपरासी, गुरु या अधिकारी। दारोगा , बाबू , पटवारी ।
रिश्वत इनको जो दे आता । मुँह-माँगा फल जग में पाता।
आशु फलदायिनी सुखकारी । महादान की यह बीमारी ॥
सच्चा साधक कभी न डरता । दुनिया भर का धन वह हरता ॥
वेतन अपना घर में धरता । घूस नोंच बैंकों में भरता ॥
बिना दिए जो काम कराता । केवल वही नरक में जाता ।
चाहे जितने पाप कमाओ । रिश्वत देकर छुट्टी पाओ ।।
जब तक भेंट नहीं चढ़ती  है। फ़ाइल आगे ना बढ़ती है ॥
बिना खिलाए साहब लड़ता । खा लेने पर बाँह पकड़ता ॥
     दोहा-पिटते इनके हाथ से, क़ायदे व क़ानून ।
इनकी कलम छुरी बने, करदे सौ-सौ खून ॥
 शिव के गण भी इनसे डरते । यमदूत यहाँ पानी भरते।
ज्ञान और गुण धक्के खाते। उल्लू घर-घर पूजे जाते ।
साहब के घर भेज मिठाई । नहीं किसी ने मुँह  की खाई॥
इनकी छाया जिस पर पड़ती । मौत न उसके आगे अड़ती ।
गुण्डे ,बनकर  साँड टहलते ।  चौराहों पर सुरती मलते ।
लूट-खसोट व चोरी-जारी । इसी से है सभी की यारी ॥
बेईमानी जो भी करता ,भव-सागर से पार उतरता ।
रिश्वत लेता पकड़ जाए । रिश्वत देकर वह छुट जाए ।
जो भी इनकी निन्दा करता। नरक लोक में सदा विचरता ।
   दोहा-कुछ न पता परलोक का , हे मूरख इंसान ।
जीवन बीता जा रहा, एक पथ महादान
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15 comments:

  1. वाह!बहुत सुंदर सामयिक सृजन । समाज की सच्ची तस्वीर खींच दीं आपने।बधाई
    ज्ञान और गुण धक्के खाते,उल्लू घर-घर पूजे जाते।

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  2. एक पथ महादान ... अद्भुद भाव लिए उत्कृष्ट सृजन 🙏🏼🙏🏼

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  3. भ्रष्टाचार पर अति तीखा व्यंग्य किया है ।सुन्दर सृजन के लिए बधाई आपको ।

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  4. उत्तम भाव लिए आज के समाज में पनप रहे भ्रष्टाचार पर सारगर्भित रचना है दोहे भी अत्यधिक सटीक हैं हार्दिक बधाई हो |

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  5. भ्रष्टाचार एक बड़ी लाइलाज बीमारी ,सुंदर दोहे , बधाई ।

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  6. 'चढ़ावे' की 'महिमा' से हम सभी वाकिफ है, मरता क्या ना करता..स्वर्ग की चाहना कितने नरक पार करवाती है, बहुत सटीक व्यंग्य, आपको बधाई भाई साहब!

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  7. बहुत बढ़िया कविता! दोहों का संयोजन बहुत सुन्दर और रोचक है! हार्दिक बधाई!
    डाॅ. कुँवर दिनेश

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  8. सच में अद्भुत!

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  9. अतुल्य सृजन आदरणीय सर

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  10. सुंदर सृजन..... आज की स्थिति पर सटीक व्यंग्य |
    हार्दिक शुभकामनाएँ

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  11. वाह! बहुत ही बढ़िया! बहुत-बहुत बधाई आदरणीय भैया जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  12. समसामयिक , विभिन्न क्षेत्रों में जड़ जमा रही बुराइयों का सटीक चित्रण , दोहे बहुत उम्दा । बधाई हिमांशु भाई।

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  13. बहुत बढ़िया सामयिक सृजन...हार्दिक बधाई भाई साहब।

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  14. बहुत कमाल का लिखा है आपने. जिस तरह से समाज में बुराइयाँ बढ़ती जा रही हैं, कोई उपाय नहीं सूझता कि इस सबसे समाज कैसे बचे. ऐसे समय में आपका यह सृजन चिन्तन करने के लिए अवश्य प्रेरित करेगा.
    कुछ न पता परलोक का , हे मूरख इंसान ।
    जीवन बीता जा रहा, एक पथ महादान ॥
    बधाई काम्बोज भाई.

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  15. बहुत सुन्दर...| इंसान अगर मूरख न होता तो दुनिया की तस्वीर ही और कुछ होती...| इस सार्थक सृजन के लिए बहुत बधाई...|

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