पूनम सैनी
यादों-सा बिखरके मुझसे
वो कही लम्हों-सा सँवर रहे है
और खुद को सँभालते,देखो
हम तिल-तिल बिखर रहे है।
खाली किताब पर आखर
बस दो ही लिखे हमने
कोई कहे उनसे,हम तो
धीमे से निखर रहे है।
ग़म की महफ़िल में मेरी
नाव डूब ही तो जाती
पर हौसलों के मेरे सदा
ऊँचे ही शिखर रहे हैं।
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मनभावन कविता पूनम जी, आपको बधाई!
ReplyDeleteपूनम जी खूब लिखा है -"और खुद को संभालते देखो ,हम तिल तिल बिखर रहे हैं" हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर सृजन... हार्दिक बधाई पूनम जी !
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर कविता
ReplyDeleteबधाई पूनम जी
भावपूर्ण रचना... बधाई पूनम जी।
ReplyDeleteहृदय से शुक्रिया आप सभी का।बहुत बहुत धन्यवाद गुरु जी।🙏
ReplyDeleteसुंदर रचना।बधाई
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता के लिए बहुत बधाई...।
ReplyDeleteसुंदर रचना! बहुत बधाई आपको पूनम जी!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित