सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
गर्मी का मौसम जाते ही
वसुधा में भी थी हरियाली
छायाचित्र; प्रीति अग्रवाल |
बैठा सूरज देख रहा सब
सूझी उसको एक ठिठोली
भर- भर कर पिचकारी रंग की
ऊपर से ही दे दे मारी
कहीं गुलाबी, पीला, नीला,
लाल, जामुनी
रंग बिखेरा
कलाकार की कलाकृति-सा
कैनवास पर चित्र उकेरा
देख- देखकर
इक दूजे को
वृक्ष खुद से
ही शरमाए
लेकर बारिश की कुछ बूँदें
धो -धो तन
को खूब नहाए
रगड़ा तन को इतना तरु ने
पत्ता भी इक टिक ना पाया
हो क्रोध में लाल और पीला
जाकर सूरज से वह बोला-
खेल खेलकर तुमने होली
अपना तो आनंद मनाया
पर मेरी हालत तो देखो
तिरस्कृत करके मुझे रुलाया
धरती पर अब कोई मुझको
देख नहीं खुश होता है
मानव की जर्जर काया से
मेरी उपमा करता है
पतझड़ में आक्रोश था इतना
कचहरी में सूरज को लाया
इलज़ाम लगाए उसने इतने
सुनकर सब, सूरज मुस्काया
छोड़ -छाड़कर
जिरह कचहरी
सूरज पतझड़ के संग आया
गले लगाया, चूमा माथा
पतझड़ को उसने सहलाया
छोड़ क्रोध, अब सोचो तुम भी
कितने रंग दिए हैं तुमको
देख तुम्हारे रंग अनोखे
जग सारा कितना हर्षाया
बोला सूरज पतझड़ से तब
समझो मेरी भी मजबूरी
शरद ऋतु से किया है वादा
उसको भी है मुझे निभाना
धरती पर कुछ दिन उसको भी
अपना है आधिपत्य
जमाना
तुमसे भी मैं वादा करता
नया नाम मैं तुमको दूँगा
खोया जो तुमने अपना है
सब कुछ मैं वापिस कर दूँगा
बसंत नाम से तुम फिर आकर
धरा पर जाने जाओगे
नव पत्तों और नव कलियों- संग
खिल खिलकर हँस पाओगे
बनकरके ऋतुओं का राजा
जग में पूजे जाओगे
देखूँगा मैं ऊपर से ही
जब स्वयं पर तुम इतराओगे।
-सविता अग्रवाल ‘सवि’ (कैनेडा)
दूरभाष
: (९०५) ६७१ ८७०७
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बहुत बढ़िया _/\_
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव एवं सृजन
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹
बेहद खूबसूरत और रोचक रचना सविता जी! बहुत आनंद आया! मेरी ओर से बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-11-2019) को "रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक" (चर्चा अंक- 3510) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सर्वप्रथम भाई काम्बोज जी को बहुत बहुत धन्यवाद मेरी कविता को यहाँ स्थान देने के लिए | आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए |दीपावली की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं |
ReplyDeleteपतझड़ का सुंदर मानवीकरण, बहुत अच्छा शब्द चित्र,बधाई सविता जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन ....हार्दिक बधाई सविता जी!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...सविता जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteवाह .....!!!कमाल की अभिव्यक्ति सूरत संग पतझड़ की हंसी ठिठोली में जीवन का सार छुपा है सहज प्रदर्शित होते भाव जीवन में सुख-दुख की अहमियत समझा रहे हैं मानव जीवन भी कुछ ऐसा ही है सभी प्रकार के रंगों से उसे गुजरना पड़ता है बहुत कुछ उतार दिया आपने अपनी कविता में ऋतुओं संग मनन करती हुई रचना बहुत ...बधाई आपको
ReplyDeleteवाह!बहुत सुन्दर कविता ।बहुत-बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteशिवजी श्रीवास्तव जी , ज्योत्सना जी,कृष्णा जी, अनिता लागौरी जी और डॉ सुरंगमा जी आपका हार्दिक धन्यवाद |
ReplyDeleteBeautiful, your positivity of thoughts are too good we are blessed to have your recitations every Navy day.
ReplyDeleteसुन्दर से चित्र के साथ बेहद प्यारी कविता...मेरी हार्दिक बधाई...|
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