पथ के साथी

Thursday, May 16, 2019

901-नवगीत



आओ खेलें गाली- गाली।
डॉ.शिवजी श्रीवास्तव

लोकतन्त्र का नया खेल है
आओ खेलें गाली -गाली।

भाषा की मर्यादा तोड़ें,
शब्द -वाण जहरीले छोड़ें,
माँ -बहिनों की पावनता के
चुन-चुनकर गुब्बारे फोड़ें।
उनकी सात पुश्त गरियाएँ
अपनी जय-जयकार कराएँ
चतुर मदारी- सा अभिनय कर
गला फाड़ सबको बतलाएँ,

हम हैं सदाचार के पुतले,
प्रतिपक्षी सब बड़े बवाली।

चलो हर की फसल उगाएँ
जाति- धर्म की कसमें खाएँ,
कल- परसो चुनाव होने है,
कैसे भी सत्ता हथियाएँ ,


जनता को फिर से भरमाएँ,
कठपुतली की तरह नचाएँ ,

नंगों के हमाम में चलकर,
ढोल बजाकर ये चिल्लाएँ-
मेरे कपड़े उजले- उजले
उनकी ही चादर है काली।

खेल पसन्द आए तो भइया,
सभी बजाना मिलकर ताली।
-0-2,विवेक विहार,मैनपुरी(उ०प्र०)- 205001     



8 comments:

  1. आज के हालात पर लिखा सुन्दर गीत |हार्दिक बधाई |

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  2. समसामयिक बहुत सुंदर गीत।बहुत बगुत बधाई

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  3. बहुत सामयिक और व्यंग्यात्मक रचना बेहद अच्छी लगी...। मेरी बधाई

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  4. आज के युग के कटु सत्य को प्रस्तुत करता गीत....
    सुन्दर एवं व्यंग्यात्मक सृजन | हार्दिक बधाइयाँ

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  5. आज के दौर पर लिखा और सोचने को मजबूर करता बढ़िया गीत... हार्दिक बधाई आपको !!

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  6. समसामयिक सुंदर गीत।
    सादर
    भावना सक्सैना

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  7. मेरे कपड़े उजले- उजले
    उनकी ही चादर है काली।
    aaj ke samy ko darshata sunder navgeet
    badhayai
    rachana

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  8. समसामयिक, यथार्थ को दर्शाता बढ़िया गीत!
    हार्दिक बधाई डॉ. शिवजी श्रीवास्तव जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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