कैसे आज मनाऊँ होली
भावना सक्सैना
कैसे आज मनाऊँ होली
सरहद पर फिर चली है गोली,
धरा का आँचल लाल हुआ
मूक बाँकुरों की हुई बोली।
क्या उल्लास पर्व का दिल में
आँगन उजड़े, टूटी टोली,
लाल गँवाकर जानें अपनी
खून से खेल गए हैं होली।
आँख गड़ाए कुर्सी पर जो
गिद्ध न समझे खाली झोली,
कानों में पिघले सीसे- सी
उतरे नेताओं की बोली।
अश्रुधार निरन्तर बहती
तीखा लवण जिह्वा पर घोली,
पकवानों का स्वाद कसैला
शान्त
पड़े हैं सारे ढोली।
रंग तीन बस दिए दिखाई
सुबह आज जब आँखें खोलीं,
श्वेत, हरे केसरिया जग में
कोयल जयहिंद कूकती डोली।
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सुंदर कविता , होली और देशभक्ति की सुवास मन मे उतर गयी । बधाई ।
ReplyDeleteरमेश कुमार सोनी ,बसना
सुंदर और सामयिक,राष्ट्रभक्ति के रंगों की होली के भावों को सहज रूप से अभिव्यक्त करती कविता।बधाई।
ReplyDeleteदेशप्रेम और होली के रंगों में भीगी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।बधाई
ReplyDeleteसामयिक एवं भावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर तथा भावपूर्ण रचना भावना जी, हार्दिक बधाई !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना हार्दिक। बधाई भावना जी
ReplyDeleteबहुत सार्थक , हार्दिक बधाई
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