पथ के साथी

Thursday, February 14, 2019

880-मुक्ताकण

डॉ.कुमुद रामानन्द बंसल
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विविधता -भरे जग में मत रोको सृजन
मत बाँधो सीमाओं में हृदय-स्पन्दन
प्रार्थना बना दो इस जग का हर क्रन्दन
तप,सत्य-साधना में बन जाओ कुन्दन
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ज़िन्दगी की ढीली तारों को कस दे
या रब !जीवन में कुछ तो रस  दे ।
  •  
उम्मीद नहीं, मंज़िल नहीं,कारवाँ नहीं
सत्य हो साथ तो किसी की परवाह नहीं
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जग की कटुता ने जब -जब रुलाया
परिन्दे को नई परवाज़ का ख़्याल आया।
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9 comments:

  1. विविधता -भरे जग में मत रोको सृजन
    मत बाँधो सीमाओं में हृदय-स्पन्दन
    प्रार्थना बना दो इस जग का हर क्रन्दन
    तप,सत्य-साधना में बन जाओ कुन्दन
    बहुत सुन्दर !
    आद.कुमुद जी को हार्दिक बधाई !!

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  2. बहुत सुंदर मुक्ताकण...आ. कुमुद बांसल जी हार्दिक बधाई।

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  3. उम्मीद नहीं, मंज़िल नहीं,कारवाँ नहीं
    सत्य हो साथ तो किसी की परवाह नहीं
    bahut sunder
    rachana

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  4. सत्य हो साथ तो किसी की परवाह नहीं । बहुत सुंदर हार्दिक बधाई

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  5. डॉ कुमुद जी बहुत सुन्दर शब्दों और भावों का मेल संजोये रचना है हार्दिक बधाई |

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  6. आदरणीया कुमुद जी को सुन्दर सृजन हेतु हार्दिक बधाई /

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  7. बहुत सुन्दर रचना, बधाई कुमुद जी.

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  8. बहुत सुन्दर...मेरी बधाई...|

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