डॉ.कुमुद रामानन्द बंसल
विविधता -भरे जग में मत रोको सृजन
मत बाँधो सीमाओं में हृदय-स्पन्दन
प्रार्थना बना दो इस जग का हर क्रन्दन
तप,सत्य-साधना में बन जाओ कुन्दन ।
ज़िन्दगी की ढीली तारों को कस दे
या रब !जीवन में कुछ तो रस दे ।
उम्मीद नहीं, मंज़िल नहीं,कारवाँ नहीं
सत्य हो साथ तो किसी की परवाह नहीं
जग की कटुता ने जब -जब रुलाया
परिन्दे को नई परवाज़ का ख़्याल आया।
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सुंदर 👌
ReplyDeleteविविधता -भरे जग में मत रोको सृजन
ReplyDeleteमत बाँधो सीमाओं में हृदय-स्पन्दन
प्रार्थना बना दो इस जग का हर क्रन्दन
तप,सत्य-साधना में बन जाओ कुन्दन
बहुत सुन्दर !
आद.कुमुद जी को हार्दिक बधाई !!
बहुत सुंदर मुक्ताकण...आ. कुमुद बांसल जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteउम्मीद नहीं, मंज़िल नहीं,कारवाँ नहीं
ReplyDeleteसत्य हो साथ तो किसी की परवाह नहीं
bahut sunder
rachana
सत्य हो साथ तो किसी की परवाह नहीं । बहुत सुंदर हार्दिक बधाई
ReplyDeleteडॉ कुमुद जी बहुत सुन्दर शब्दों और भावों का मेल संजोये रचना है हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआदरणीया कुमुद जी को सुन्दर सृजन हेतु हार्दिक बधाई /
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, बधाई कुमुद जी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...मेरी बधाई...|
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