मंजु मिश्रा
सरहदों पर यह लड़ाई
न जाने कब ख़त्म होगी
क्यों नहीं जान पाते लोग
कि इन हमलों में सरकारें नहीं
परिवार तबाह होते हैं
कितनों का प्रेम
उजड़ गया आज
ऐन प्रेम के त्योहार के दिन
जिस प्रिय को कहना था
प्यार से ‘हैप्पी वैलेंटाइन’
उसी को सदा के लिए खो दिया
एक खूँरेज़ पागलपन और
वहशत के हाथों
अरे भाई!
कुछ मसले हल करने हैं
तो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
सुलझाएँ साथ मिलकर
लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस
हैवानियत ही दिखानी है
तुम्हें इंसानियत से क्या वास्ता
तुमने तो चुन ही लिया है
दहशत का रास्ता ....
तुम्हारी मंज़िल तो केवल तबाही है।
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मंजु मिश्रा
#510-376-8175
#510-376-8175
आदरणीय कम्बोज जी बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteमंजू दी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।दहशत का रास्ता अपना कर आतंकवादियों को भी कुछ नहीं मिलने वाला बस पागलपन है और कुछ नहीं।
ReplyDeleteEakdam sahi likha hai..
ReplyDeleteमंजू जी, आपने आह्वान तो किया लेकिन सब के कान बंद हों तो कौन सुनेगा | फिर भी मैं कहूंगी कि हैवानियत की उम्र लम्बी नहीं होती | एक सार्थक रचना के लिए बधाई |
ReplyDeleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteभारत में हाल में जो प्रेम दिवस पर जवानों की मृत्यु हुई है उससे देश भर में आक्रोश है आपने उस समस्या के समाधान के लिए सुन्दर शब्दों में कविता की रचना की है हार्दिक बधाई मंजू जी |
ReplyDeleteसार्थक एवं सटीक रचना.
ReplyDeleteकुछ मसले हल करने हैं
ReplyDeleteतो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
kash ki sabhi aesa soch pate bahan bahut bahut badhayi itni sunder kavita likhne ke liye
rachana
बहुत सार्थक और सटीक रचना...हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteसार्थक एवं उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए सभी पाठक मित्रों का बहुत बहुत अाभार
ReplyDeleteसादर
मंजु मिश्रा