पथ के साथी

Monday, February 18, 2019

881-दहशत का रास्ता


मंजु मिश्रा  

सरहदों पर यह लड़ाई
न जाने कब ख़त्म होगी
क्यों नहीं जान पाते लोग
कि इन हमलों में सरकारें नहीं
परिवार तबाह होते हैं

कितनों का प्रेम
उजड़ गया आज
ऐन प्रेम के त्योहार के दिन
जिस प्रिय को कहना था
प्यार से हैप्पी वैलेंटाइन
उसी को सदा के लिए खो दिया
एक खूँरेज़ पागलपन और
वहशत के हाथों

अरे भाई!
कुछ मसले हल करने हैं
तो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
सुलझाएँ साथ मिलकर
लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस
हैवानियत ही दिखानी है
तुम्हें इंसानियत से क्या वास्ता
तुमने तो चुन ही लिया है
दहशत का रास्ता ....
तुम्हारी मंज़िल तो केवल तबाही है।
-0-
मंजु मिश्रा 
#510-376-8175

10 comments:

  1. आदरणीय कम्बोज जी बहुत बहुत धन्यवाद !

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  2. मंजू दी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।दहशत का रास्ता अपना कर आतंकवादियों को भी कुछ नहीं मिलने वाला बस पागलपन है और कुछ नहीं।

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  3. मंजू जी, आपने आह्वान तो किया लेकिन सब के कान बंद हों तो कौन सुनेगा | फिर भी मैं कहूंगी कि हैवानियत की उम्र लम्बी नहीं होती | एक सार्थक रचना के लिए बधाई |

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  4. सार्थक रचना।

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  5. भारत में हाल में जो प्रेम दिवस पर जवानों की मृत्यु हुई है उससे देश भर में आक्रोश है आपने उस समस्या के समाधान के लिए सुन्दर शब्दों में कविता की रचना की है हार्दिक बधाई मंजू जी |

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  6. सार्थक एवं सटीक रचना.

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  7. कुछ मसले हल करने हैं
    तो आओ न...
    इंसानों की तरह
    बैठें और बात करें
    kash ki sabhi aesa soch pate bahan bahut bahut badhayi itni sunder kavita likhne ke liye
    rachana

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  8. बहुत सार्थक और सटीक रचना...हार्दिक बधाई...|

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  9. सार्थक एवं उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए सभी पाठक मित्रों का बहुत बहुत अाभार

    सादर
    मंजु मिश्रा

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