पथ के साथी

Tuesday, February 12, 2019

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सुदर्शन रत्नाकर
1
इससे पहले कि
फ़ासले बढ़ते जाएँ
तुम्हारे और मेरे बीच
आओ, तन्हा होने से पहले
मन की दूरियाँ मिटा दें।
2
वक्त ने चेताया था
पर हम ही नहीं सम्भले
और दूरियाँ बढती गईं
पर्वतों, नदियों और
हमारे बीच।
3
तुम भी तन्हा हो
मैं भी तन्हा हूँ
चाँद भी तन्हा है
यादें भी तन्हा हैं
चलो चाँदनी में बैठे
और सब एक हो जाएँ।
4
जीवन भर
मोमबत्ती- सी जलती रही
क्षण क्षण पिघलती रही
अंतिम छोर तक पिघली,
मोमबत्ती की सीमा रेखा थी
जली, पिघली और
अस्तित्वहीन हो गई।।
5
उडना है तो
पंख खोलने होंगे
वरन् , उड़ना तो क्या
धरा के भी नहीं रहोगे
बिना पंख खोले
औंधे मुँह ही गिरोगे ।

-0-ई-29, नेहरू  ग्राउण्ड,फ़रीदाबाद -121001
मो. 9811251135



10 comments:

  1. सभी क्षणिकाएँ बहुत सुंदर ..... हार्दिक बधाइयाँ

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  2. बहुत सुंदर क्षणिकाएँ...हार्दिक बधाई।

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  3. बहुत सुंदर क्षणिकाएँ हैं ... हार्दिक शुभकामनाएँ

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  4. जीवन का सत्य है यह ...

    उडना है तो
    पंख खोलने होंगे
    वरन् , उड़ना तो क्या
    धरा के भी नहीं रहोगे
    बिना पंख खोले
    औंधे मुँह ही गिरोगे ।

    बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ. बधाई रत्नाकर जी.

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  5. बहुत सुन्दर सृजन है रत्नाकर जी हार्दिक बधाई |जीवन भर मोमबत्ती सी जलती रही......| बहुत खूब |

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  6. बेहद सुन्दर ।बहुत-बहुत बधाई ।

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  7. पूर्वा जी, जेन्नी जी, कृष्णा जी, सीमा सिंह जी, सुरंगमा जी,सविता जी क्षणिकाएँ पसंद करने और सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए हृदय तल से आभार।

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  8. वक्त ने चेताया था
    पर हम ही नहीं सम्भले
    और दूरियाँ बढती गईं
    पर्वतों, नदियों और
    हमारे बीच।
    lajavab
    badhayi
    rachana

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  9. बहुत सुंदर क्षणिकाएँ हैं ... हार्दिक बधाई आद. दीदी !!

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  10. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ...ख़ास तौर से ये बहुत अच्छी लगी-
    उडना है तो
    पंख खोलने होंगे
    वरन् , उड़ना तो क्या
    धरा के भी नहीं रहोगे
    बिना पंख खोले
    औंधे मुँह ही गिरोगे ।
    हार्दिक बधाई...|

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