सुदर्शन रत्नाकर
1
इससे पहले कि
फ़ासले बढ़ते जाएँ
तुम्हारे और मेरे बीच
आओ, तन्हा होने से पहले
मन की दूरियाँ मिटा दें।
2
वक्त ने चेताया था
पर हम ही नहीं सम्भले
और दूरियाँ बढती गईं
पर्वतों, नदियों और
हमारे बीच।
3
तुम भी तन्हा हो
मैं भी तन्हा हूँ
चाँद भी तन्हा है
यादें भी तन्हा हैं
चलो चाँदनी में बैठे
और सब एक हो जाएँ।
4
जीवन भर
मोमबत्ती- सी जलती रही
क्षण क्षण पिघलती रही
अंतिम छोर तक पिघली,
मोमबत्ती की सीमा रेखा थी
जली, पिघली और
अस्तित्वहीन हो गई।।
5
उडना है तो
पंख खोलने होंगे
वरन् , उड़ना तो क्या
धरा के भी नहीं रहोगे
बिना पंख खोले
औंधे मुँह ही गिरोगे ।
-0-ई-29, नेहरू ग्राउण्ड,फ़रीदाबाद -121001
मो. 9811251135
सभी क्षणिकाएँ बहुत सुंदर ..... हार्दिक बधाइयाँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएँ...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएँ हैं ... हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteजीवन का सत्य है यह ...
ReplyDeleteउडना है तो
पंख खोलने होंगे
वरन् , उड़ना तो क्या
धरा के भी नहीं रहोगे
बिना पंख खोले
औंधे मुँह ही गिरोगे ।
बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ. बधाई रत्नाकर जी.
बहुत सुन्दर सृजन है रत्नाकर जी हार्दिक बधाई |जीवन भर मोमबत्ती सी जलती रही......| बहुत खूब |
ReplyDeleteबेहद सुन्दर ।बहुत-बहुत बधाई ।
ReplyDeleteपूर्वा जी, जेन्नी जी, कृष्णा जी, सीमा सिंह जी, सुरंगमा जी,सविता जी क्षणिकाएँ पसंद करने और सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए हृदय तल से आभार।
ReplyDeleteवक्त ने चेताया था
ReplyDeleteपर हम ही नहीं सम्भले
और दूरियाँ बढती गईं
पर्वतों, नदियों और
हमारे बीच।
lajavab
badhayi
rachana
बहुत सुंदर क्षणिकाएँ हैं ... हार्दिक बधाई आद. दीदी !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएँ...ख़ास तौर से ये बहुत अच्छी लगी-
ReplyDeleteउडना है तो
पंख खोलने होंगे
वरन् , उड़ना तो क्या
धरा के भी नहीं रहोगे
बिना पंख खोले
औंधे मुँह ही गिरोगे ।
हार्दिक बधाई...|