क्षणिकाएँ
प्रियंका गुप्ता
1
तुमने
शब्द कहे थे;
मैंने
अर्थ जी लिया ।
2
सूरज
कतरा -कतरा पिघलके
बह गया,
धरती बूँद बूँद
पीती गई;
ऐसे ही तो
सृष्टि बनी ।
3
मुझे
गीत बना गा लेना,
या
नज़्म की तरह
लिख लेना;
मैं हवा की तरह
तुम्हारे आसपास रहूँगा,
बिखर जाऊँगा
खुश्बू की तरह;
इश्क़ करने से ज़्यादा
बेहतर होगा
इश्क़ में घुल जाना ।
4
उसने धरती पर
फसल लिखी,
पौधों में
ज़िन्दगी पढ़ी,
और एक दिन
आसमान ताकते हुए
उसने मौत चुनी;
इस तरह
कहानी मुक़म्मल हुई ।
5
ज़िन्दगी मुझे
विष देती रहे
तुम छू के मुझे
अमृत कर देना;
खेल ऐसे ही तो जीतते हैं न ?
-0-
कहे हुए शब्दों के अर्थ जी लेना, इससे सुंदर बात क्या होगी। बहुत सारी बधाई आपको।
ReplyDeleteशुक्रिया अनीता...
Deleteगज़ब लिखा है आपने -
ReplyDeleteतुमने
शब्द कहे थे;
मैंने
अर्थ जी लिया ।
कितना गहरा अर्थ है इन शब्दों में. सभी क्षणिकाएँ बेहद उम्दा. बधाई प्रियंका जी.
शुक्रिया जेन्नी जी...
Deleteआदरणीय काम्बोज जी को मेरा हार्दिक धन्यवाद और आभार मेरी क्षणिकाओं को यहाँ स्थान देने के लिए |
ReplyDeleteगहरे अर्थ लिए हुए बहुत सुंदर क्षणिकाएँ।बधाई
ReplyDeleteSunder kshanikayen
ReplyDeleteतुमने
शब्द कहे थे;
मैंने
अर्थ जी लिया ।
Bahut khoob
Rachana
बहुत सुंदर गहन क्षणिकाएँ। हार्दिक बधाई प्रियंका जी।
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भाव लिए बहुत ही उम्दा सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ।
शब्दार्थ - बहुत सुन्दर |सुरेन्द्रवर्मा |
ReplyDeleteगहन भावों से आपूरित उत्कृष्ट सृजन।बहुत-बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteतुमने / शब्द कहे थे; /मैंने / अर्थ जी लिया ।
ReplyDelete....तुम छू के मुझे / अमृत कर देना;
प्रियंका जी बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर क्षणिकाएँ ... हार्दिक बधाइयाँ