पथ के साथी

Monday, January 28, 2019

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समय
प्रो0 इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी

समय एक,
अविरल, अनंत
आज, कल और
अनगिनत अनवरत।
कैसे किया ये,
भेद- विभेद,
पुरातन और नूतन
है ये मेल अभेद।
ये उमंग, ये तरंग
ये दौड़- भाग,
ये राग -रंग
ये मीलों का सफ़र,
ये संदेशो की रफ़्तार।
मानव ने ये भ्रम पाले,
नए साल के साये में
र्त्तव्य -अकर्त्तव्य के,
भाव जब तब डाले।
जो था एक, अविरल
और अनंत, उसको ही,
बाँट खंड -विखंड
भूत- भविष्य बना डाला।
कर्म के प्रस्तर खंड से,
इतिहास अखण्ड और,
अखण्ड धरा के खण्ड से
रच लिये अपने भूगोल।
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10 comments:

  1. बहुत सुन्दर और चिंतनशील रचना. समय जो पकड़ में नहीं आता कितने टुकड़े कर दिए हमने. बहुत सार्थक रचना, बधाई इंदु जी.

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  2. सुंदर सार्थक रचना के लिए बहुत बधाई इन्दु जी।

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  3. सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया।

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  4. वाह !सुंदर सृजन
    हार्दिक बधाई इंदु जी

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  5. बहुत सुंदर, सार्थक सृजन। बधाई इन्दु जी।

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  6. सुन्दर कविता, बधाई इन्दु जी।

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  7. बहुत सुन्दर रचना, बधाई इन्दु जी!

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  8. ये मीलों का सफर !!गहनता की पराकाष्ठा को इंगित करता यह कहन रचना का सार तत्व ब्यां करता है।नमन आदरणीया

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  9. सुन्दर सृजन के लिए बहुत बधाई...|

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