समय
प्रो0 इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी
समय एक,
अविरल, अनंत
आज, कल और
अनगिनत अनवरत।
कैसे किया ये,
भेद- विभेद,
पुरातन और नूतन
है ये मेल अभेद।
ये उमंग, ये तरंग
ये दौड़- भाग,
ये राग -रंग
ये मीलों का सफ़र,
ये संदेशो की रफ़्तार।
मानव ने ये भ्रम पाले,
नए साल के साये में
कर्त्तव्य -अकर्त्तव्य के,
भाव जब तब डाले।
जो था एक, अविरल
और अनंत, उसको ही,
बाँट खंड -विखंड
भूत- भविष्य बना डाला।
कर्म के प्रस्तर खंड से,
इतिहास अखण्ड और,
अखण्ड धरा के खण्ड से
रच लिये अपने भूगोल।
-0-
प्रो0 इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी
समय एक,
अविरल, अनंत
आज, कल और
अनगिनत अनवरत।
कैसे किया ये,
भेद- विभेद,
पुरातन और नूतन
है ये मेल अभेद।
ये उमंग, ये तरंग
ये दौड़- भाग,
ये राग -रंग
ये मीलों का सफ़र,
ये संदेशो की रफ़्तार।
मानव ने ये भ्रम पाले,
नए साल के साये में
कर्त्तव्य -अकर्त्तव्य के,
भाव जब तब डाले।
जो था एक, अविरल
और अनंत, उसको ही,
बाँट खंड -विखंड
भूत- भविष्य बना डाला।
कर्म के प्रस्तर खंड से,
इतिहास अखण्ड और,
अखण्ड धरा के खण्ड से
रच लिये अपने भूगोल।
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बहुत सुन्दर और चिंतनशील रचना. समय जो पकड़ में नहीं आता कितने टुकड़े कर दिए हमने. बहुत सार्थक रचना, बधाई इंदु जी.
ReplyDeleteसुंदर सार्थक रचना के लिए बहुत बधाई इन्दु जी।
ReplyDeleteसुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया।
ReplyDeleteवाह !सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक बधाई इंदु जी
बहुत सुंदर, सार्थक सृजन। बधाई इन्दु जी।
ReplyDeleteसुन्दर कविता, बधाई इन्दु जी।
ReplyDeletesaarthak srajan surendra varmaa
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, बधाई इन्दु जी!
ReplyDeleteये मीलों का सफर !!गहनता की पराकाष्ठा को इंगित करता यह कहन रचना का सार तत्व ब्यां करता है।नमन आदरणीया
ReplyDeleteसुन्दर सृजन के लिए बहुत बधाई...|
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