पथ के साथी

Monday, January 21, 2019

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रामेश्वर काम्बोजहिमांशु

ज़हर मत जाति का बाँटो
ये हवा विषैली होगी ।
नफ़रत के  दमघोंट धुएँ से
धरती मैली होगी।
          आग लगाने वाले हाथों
          निर्माण नहीं होता ।
          मुस्कान छीनने  से जग में
          कल्याण नहीं होता ।
इतिहासों के उजले पन्ने
कर बैठौगे काले ।
लड़वाकरके मौज करेंगे
आग लगाने वाले ।
          मज़हब के चंगुल से निकले,
          उन्हें जाति बाँट रही ।
          प्यार मिटाकर नफ़रत की ही
          अब फ़सलें काट रही ।
चेहरों पर डर लिख देने से
कुछ नहीं पाओगे ।
अपने हाथ काटकर कैसे
क़िस्मत लिख पाओगे .
          रहो प्रेम से सब मिल-जुलके,
          यह डोर नहीं तोड़ो
          अनजाने जो धागे टूटे
          उनको फिर जोड़ो ।
-0-(7 मार्च, 2016)



9 comments:

  1. रहो प्रेम से सब मिल-जुलके,
    यह डोर नहीं तोड़ो
    अनजाने जो धागे टूटे
    उनको फिर जोड़ो ।
    काश ! लोग यही समझ लें तो यहीं, इसी धरती पर, स्वर्ग जैसा सुख हो जाएगा | बहुत अच्छी और सार्थक कविता है...| मेरी हार्दिक बधाई...|

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  2. शब्द अलग हैं भाव एक है ,
    जग को आज जरूरत है ,
    इतने सुंदर विचारों की ,
    दोनों किवताएं बड़ी सुशोभित हैं | श्याम हिन्दी चेतना

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  3. बहुत सुंदर विचार,और सुंदर कविता

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  4. सुंदर कविता।

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  5. सार्थक प्रासंगिक रचना। साधुवाद।

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  6. आप सबके प्रोत्साहन के लिए बहुत आभार

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  7. बहुत सार्थक व समसामयिक रचना।

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  8. आज ऐसी कविताओं की बेहद ज़रुरत है ताकि लोग सोचने को विवश हों. बेहद प्रासंगिक कविता. बधाई भैया.

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  9. बहुत सकारात्मक सोच वाली रचना। यथार्थ को उजागर करती।

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