भारत भूमि(माधव मालती छन्द)
भोर में फूटी किरन, है कर रही जग में उजाला।
खिल रहा है मन कमल,ये देख अम्बर पथ निराला।
भीगता नभ छोर है, यह भीगती धरती विमल भी
धार अमृत बह रही,यह भीगता है मन कमल भी
खेत में उपजी फसल,बागों में तितलियाँ झूमती।
देख लो आकाश को,ये इमारतें सभी चूमती।
पंछियों के नीड़ से,अब उठ रही परवाज देखो।
जिंदगी के सफर का ,अब हो रहा आगाज़ देखो।
जन्म सबका एक है,जीवन न कोई भी छीनता।
जब एक सा अंजाम, बोलो है कहा फिर भिन्नता।
दिव्य भारत भूमि का,अब जयगान चारों ओर है।
ज्ञान के आकाश का ,तू पावन उभरता छोर है।
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मन को छू गयी यह रचना, सधी हुई लेखनी को नमन। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।बधाई पूनम जी।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/01/2019 की बुलेटिन, " बढ़ती ठंड और विभिन्न स्नान “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत खूब ! हार्दिक बधाई पूनम जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...बहुत बधाई पूनम जी।
ReplyDeleteBahit khub bahut bahut badhai
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ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना...बहुत बधाई पूनम जी।
बहुत प्यारी रचना...बधाई हो आपको
ReplyDeleteShukriya aap sabhi ka
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