मैं लुटेरा
8 बजे -18 जनवरी-2018-
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मैं लुटेरा था सदा ही
आज भी बदला नहीं हूँ
लूटने निकला ख़ज़ाना
जो छुपा रक्खा है तुमने
सबकी नज़रों से बचाया
राज़ है सबसे छुपाया
कब भला किसको बताया!
सुना है- तुम्हारे पास गहरा
दर्द का दरिया अनोखा है
सुना है-जब दिया किसी ने
वह दिया है सिर्फ़ धोखा है
तुम्हारे पास बहुत सारे
दर्द के ही ख़त आए हैं
उन पर सभी ने इल्ज़ाम के
दस्तख़त बनाए हैं
चुपचाप रोकर दु:ख छुपाया
यही तेरी तो रियासत है
निश्छल मन को वे समझे
कि वह कोई सियासत है।
तन का हर इक पोर तेरा
दर्द की ही दास्ताँ कहता
सोते और जागते भी
सिर्फ़ यह दर्द ही सहता
सुना है -आँसुओं
का पलकों पर
सजा इक आशियाना है
सुना है अधरों का झुलसा
तुम्हारा हर तराना है
तुम्हें कोमल समझकरके कभी
जो तोड़ना चाहा
किसी मनचाहे मार्ग पर तुम्हें
जो जोड़ना चाहा
तुम्हें मंजूर नहीं था कभी
किसी का झूठ, छल
-सम्बल
तुम्हें मंजूर नहीं था
फ़रेबों से भरा आँचल।
चैन की साँस कब ली थी
नहीं तुझको पता अब तक
मिला था दण्ड तो तुमको
थी गैरों की ख़ता अब तक
मैं तो हूँ बहुत लोभी
मिला है आज ही मौका-
‘दर्द का दरिया ,दर्द के
ही ख़त
दु:ख सारे,आँसुओं
का आशियाना
झुलसे तराने,हर
पोर की पीड़ा’
मैं लूटने आया हूँ।
नहीं रोको ,
मुझे मेरे प्रिय
मैं यह सह नहीं सकता
तुम्हारे दर्द को लूटे बिना
मैं रह नहीं सकता
मैं नहीं पराया हूँ
सिर्फ़ छाया तुम्हारी हूँ
झेलती जो पीर
वह काया तुम्हारी हूँ
व्याकुल जो हुआ करते
वही मैं प्राण तेरे हूँ
इसलिए मन-प्राण से हरदम
मैं तुमको ही घेरे हूँ।
इसलिए
सबकी नज़रों से बचाया
दर्द जो सबसे छुपाया
उसी को लूटने आया
मुझे मत रोकना प्रिय !
अब नहीं
टोकना प्रिय !
-0-
वाह! भैया जी! बहुत ही ख़ूबसूरत कविता!
ReplyDeleteकहाँ मिलते, जहाँ में अब,
कहीं ऐसे लुटेरे
हों अपने या पराए सब
बनाएँ दर्द के घेरे ...
~सादर नमन आपको एवं आपकी लेखनी को
अनिता ललित
कितनी सुंदर भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteक्या कहूँ ... निः शब्द हूँ
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण सुंदर कविता । नमन आपकी लेखनी को भैया जी 👌👌
bahut hi khubsurati se likhi bhawnao se ot prot kavta..
ReplyDeletebahut bahut mangalkamnaye sir..
वाह..वाह.. तुम्हारे दर्द को लूटे बिना मैं रह नहीं सकता..अद्भुत व्यञ्जना।बहुत सशक्त कविता भाई साहब।भावुक मन की सहज अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteक्या कहूँ ... निः शब्द हूँ
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण सुंदर कविता । नमन आपकी लेखनी को भैया जी 👌👌
सभी सहृदय साथितों का बहुत -बहुत आभार ।
ReplyDeleteबेहद भावुक कविता. 'दर्द को लूटने आया' गज़ब लिखा आपने भैया. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिए.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteक्या कहूँ ... निः शब्द हूँ
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण सुंदर कविता । नमन आपकी लेखनी को भैया जी 👌👌
ReplyDeleteमैं लूटने आया हूँ।
नहीं रोको , मुझे मेरे प्रिय
मैं यह सह नहीं सकता
तुम्हारे दर्द को लूटे बिना
मैं रह नहीं सकता
मैं नहीं पराया हूँ
सिर्फ़ छाया तुम्हारी हूँ
झेलती जो पीर
वह काया तुम्हारी हूँ
अति सुन्दर भाव ! सच्चे प्रेम की भावपूर्ण कविता नें भावुक तो किया ही है पर मन मोह भी लिया.. नमन आपकी लेखनी को आदरणीय !
बहुत भावपूर्ण रचना बड़े भैया🙏😊
ReplyDeleteगहन एवं भावपूर्ण, हार्दिक बधाई आदरणीय श्री काम्बोज जी को। अशेष शुभेच्छा।
ReplyDeleteभैया, इतनी सारी संवेदना, करुणा और उस पर सांत्वना-आश्वासन की दुआएँ! बहुत कुछ कह गयी यह रचना| आपकी कलम को साधुवाद|
ReplyDeleteसबकी नज़रों से बचाया
ReplyDeleteदर्द जो सबसे छुपाया
उसी को लूटने आया
मुझे मत रोकना प्रिय !
अब नहीं टोकना प्रिय !
"मैं लुटेरा" बहुत संवेदनशील और भावपूर्ण अभिव्यक्ति । बधाई आ. हिमांशु भाई ।
बहुत सुंदर, गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनि:शब्द!!
ReplyDeleteमैं लुटेरा था सदा ही
ReplyDeleteआज भी बदला नहीं हूँ
वाह ! इस कविता को जितनी बार पढ़ा, लगा जैसे फिर एक नई रचना, एक नई संवेदना से रूबरू हो रही हूँ...| फिलहाल तो तारीफ़ के लिए उपयुक्त शब्द खोज रहे...| बस, अप्रतिम !