विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
1-माँ-
कभी वो हाथ
सुकोमल से
फेरती थी
मेरे सर पर
तो मैं कहता
माँ ! क्यों बिगाड़ती हो मेरे बाल
समझ नहीं पाता था
उसके भाव
पर, आज वो ही हाथ
सूखकर पिंजर हो गए
अब मैं चाहता हूँ
वो मेरे सर पर
फिर से फेरे हाथ
चाहे मेरे बाल
क्यों ना बिगड़ जाएँ
बस, ये ही तो अंतर है
बालपन में
और आज की समझ में |
पर अब माँ
बिगाड़ना नहीं चाहती
सरके बाल
वो चाहती है
मैं ,बैठूँ उसके पास
देना नहीं, लेना चाहती
मेरा हाथ अपने हाथ में
बिताना चाहती है कुछ पल
बतियाना चाहती मुझसे,
पा लेना चाहती है,
अनमोल निधि जैसे...
सुकोमल से
फेरती थी
मेरे सर पर
तो मैं कहता
माँ ! क्यों बिगाड़ती हो मेरे बाल
समझ नहीं पाता था
उसके भाव
पर, आज वो ही हाथ
सूखकर पिंजर हो गए
अब मैं चाहता हूँ
वो मेरे सर पर
फिर से फेरे हाथ
चाहे मेरे बाल
क्यों ना बिगड़ जाएँ
बस, ये ही तो अंतर है
बालपन में
और आज की समझ में |
पर अब माँ
बिगाड़ना नहीं चाहती
सरके बाल
वो चाहती है
मैं ,बैठूँ उसके पास
देना नहीं, लेना चाहती
मेरा हाथ अपने हाथ में
बिताना चाहती है कुछ पल
बतियाना चाहती मुझसे,
पा लेना चाहती है,
अनमोल निधि जैसे...
-0-
2-गुनगुनी सी धूप में
जनवरी की गुनगुनी सी धूप में
क्या निखार आया है तेरे रूप में
जनवरी की गुनगुनी सी धूप में
क्या निखार आया है तेरे रूप में
थोथा -थोथा उड़ गया है देखिए
भारी दाना रह गया है सूप में
भारी दाना रह गया है सूप में
रात रानी बनी दिन राजा हुए
सुबह-शाम दोनों बने प्रतिरूप में
सुबह-शाम दोनों बने प्रतिरूप में
ओस की बूँदें मोती सी लगे
धुँध छाई प्रीति के स्वरूप में
धुँध छाई प्रीति के स्वरूप में
अलग-अलग लबादे ओढ़े हुए
आदमी कैसा बना बहुरूप में
आदमी कैसा बना बहुरूप में
कैसा उड़ रही 'व्यग्र' पानी से धुँआ
आग जैसे लगी हो सारे कूप में
आग जैसे लगी हो सारे कूप में
-0-
विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र', कर्मचारी कालोनी,गंगापुर सिटी, (राज.)322201, मोबा : 9549165579
ई-मेल :-vishwambharvyagra@gmail.com
विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र', कर्मचारी कालोनी,गंगापुर सिटी, (राज.)322201, मोबा : 9549165579
ई-मेल :-vishwambharvyagra@gmail.com
सुन्दर रचनाएँ, व्यग्र जी बधाई।
ReplyDeleteसुंदर एवम् भावपूर्ण रचनाओं हेतु विश्वम्भर पाण्डेय व्यग्र जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुंदर कविताएँ! 'माँ' ... मन को छू गई..
ReplyDeleteहार्दिक बधाई व्यग्र जी!!!
~सादर
अनिता ललित
मन को मोहनें वाली रचनाएँ ...बहुत-बहुत बधाई व्यग्र जी आपको !!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ... मनभावन रचनाएँ !
ReplyDeleteबहुत बधाई 'व्यग्र' जी !!
बहुत सुंदर कविताएँ......व्यग्र जी बधाई।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति!!नमन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति खास तौर पर माँ पर । व्यग्र जी बधाई स्वीकारें ।
ReplyDeleteआदरणीय व्यग्र जी--- बहुत ही अच्छी कवितायेँ हैं आपकी | खासकर माँ पर रचना भावुक कर देने वाली है | सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक शुभकामनाएं----------
ReplyDeleteवक्त कैसे इंसान की इच्छाओं और भावनाओं को बदल देता है, 'माँ' में इसका बहुत सूक्ष्म चित्रण कर दिया है आपने...| बरबस छू गई मन को...| दूसरी कविता भी बहुत अच्छी है |
ReplyDeleteमेरी बहुत बधाई...|