पथ के साथी

Sunday, December 3, 2017

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 परिवर्तन की बेला है?
शरद सुनेरी
  
सच लटक रहा है खूँटी पर!
मूल्य फोड़ते  अब माथा!
रो-रो हर पल दोहराता है
बीते कल की गौरव गाथा!
जब गला घोंटकर रिश्तों ने
अपनों के दिल से खेला है।
ये परिवर्तन की बेला है?

कुछ सिक्कों की झनकारों में
अस्मत-इज़्ज़्त जब बिकते हैं
कलदारों की चमकारों में
ना दर्द जगत के दिखते हैं
इस युग की दानवताओं को
बेबस मानव ने झेला है
ये परिवर्तन की बेला है?

अधनंगे अंगों मे सिमटी
सभ्यता यहाँ सिंगार बनी
मदिरा, अधरों को छू-छूकर
दुनिया में शिष्टाचार बनी
आधुनिकता की चकाचौंध,
अय्याशों का मेला है।

ये परिवर्तन की बेला है?

2 comments:

  1. आदरणीय/आदरणीया आपको अवगत कराते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि हिंदी ब्लॉग जगत के 'सशक्त रचनाकार' विशेषांक एवं 'पाठकों की पसंद' हेतु 'पांच लिंकों का आनंद' में सोमवार ०४ दिसंबर २०१७ की प्रस्तुति में आप सभी आमंत्रित हैं । अतः आपसे अनुरोध है ब्लॉग पर अवश्य पधारें। .................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"


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  2. सत्य का उजला दर्पण है ये रचना ..शरद जी को बहुत - बहुत बधाई !

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