पथ के साथी

Thursday, November 9, 2017

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जन्म दिवस  पर  ही प्रश्न है
डॉ. कविता भट्ट
हे. न. ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय,
 श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखंड

आज फिर  से बधाई-शुभकामनाओं का शोर चला है  
घोषणा, भाषण,भीड़ और पुष्पगुच्छ का दौर चला है  

जन्म दिवस  पर खड़ा प्रश्न हैं  
विकल सत्ता के घर जश्न हैं
केवल  झुनझुनों में घिरा है
कब सँभला ,जो  आज गिरा है
तार-तार उत्तर का आँचल, कहाँ इसका छोर चला है 
चोट और झटकों पर झटके, हर आँसू झकझोर चला है 
पहाड़ियों के दुखी नगर को 
चढ़ती उतरती इस डगर को
अब कुछ समझ आता नहीं है
कोई सपन भाता नहीं  है
 पोथी-रोटी-दवा न मिली, ये जाने किस ओर चला है 
 नशे के  अँधियारे में, छोड़  ये उजली भोर चला है   । 

17 comments:

  1. कई प्रश्न उठाती हुई सुंदर कविता।

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  2. सुंदर सटीक रचना। बहुत बधाई कविता जी।

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  3. वाह, सुंदर रचा !!

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  4. उत्तरांचल के जिस्म पर कई घाव पीरते हैं ।प्रकृतिक आपदा भी आई ।उसका दोहन भी हुआ । नशे की चपेट में रहा । अंधेरों से निकल भोर की ओर चलें । कविता अपनी धरती के दुख- सुख से जुड़ी है । बहुत संवेदनशील कविता । बधाई ।

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  5. बिलकुल सटीक और उम्दा रचना
    हार्दिक बधाई कविता जी

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  6. बहुत सार्थक मसला उठाया है आपने अपनी रचना के माध्यम से...। बहुत बधाई इस रचना के लिए

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  7. हार्दिक धन्यवाद, सभी शुभेच्छुओं का।

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  8. कविता जी बहुत ही विचारणीय कविता है उत्तराखण्ड के दर्द को जताते हुये । शासक जाने कब उसकी पीड़ा समझेंगे ।
    बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिये ।

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  9. बहुत बहुत बधाई हो Ma'am

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  10. उत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई प्रिय सखी ।

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  11. बहुत ही सुन्दर तरीके से उत्तराखंड की पीड़ा को दर्शाया है आपनें
    कविता जी ...ये पीड़ा दूर होगी ही इसी आशा के साथ तहे दिल से शुभकामनाएँ आपको उत्तराखंड के सुन्दर भावी भविष्य के लिए !!

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  12. विचारणीय कविता जन्म एवं कर्म भूमि को समर्पित,आपकी लेखनी की महक महकती रहे यही मेरी तरफ से आपको शुभकामनाएं

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  13. सुन्दर ,सामयिक , सशक्त रचना ..हार्दिक बधाई कविता जी !

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  14. आप सभी आत्मीय जनों का हार्दिक आभार

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  15. कविता जी आज आपकी रचना पढ़ी, सुन्दर और सशक्त रचना है हार्दिक बधाई |

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