1-देर कर दी...
डॉ .जेन्नी
शबनम
हाँ ! देर कर दी मैंने
हर उस काम में जो मैं कर सकती थी
दूसरों की नज़रों में
ख़ुद को ढालते-ढालते
सबकी नज़रों से छुपाकर
अपने सारे हुनर
दराज में बटोर कर रख दिए
दुनियादारी से फ़ुर्सत पाकर
करूँगी कभी मन का।
अंतत: अब
मैं फिजूल साबित हो गई
रिश्ते सहेजते-सहेजते
ख़ुद बिखर गई
साबुत कुछ नहीं बचा
न रिश्ते ,न मैं ,न मेरे हुनर।
मेरे सारे हुनर
चीख़ते-चीख़ते दम तोड़ गए
बस एक दो जो बचे हैं,
उखड़ी-उखड़ी साँसें ले रहे हैं
मर गए सारे हुनर के क़त्ल का इल्ज़ाम
मुझको दे रहे है
मेरे क़ातिल बन जाने का सबब
वे मुझसे पूछ रहे हैं।
हाँ ! बहुत देर कर दी मैंने
दुनिया को समझने में
ख़ुद को बटोरने में
अर्धजीवित हुनर को
बचाने में।
हाँ ! देर तो हो गई
पर सुबह का सूरज
अपनी आँच मुझे दे रहा है
अँधेरों
की भीड़ से
खींच कर मुझे
उजाला दे रहा है।
हाँ ! देर तो हो गई मुझसे
पर अब न होगी
नहीं बचा वक़्त
मेरे पास अब
जो भी बच सका है
रिश्ते या हुनर
सबको एक नई उम्र दूँगी
हाँ ! अब देर न करूँगी।
-0-
-0-समीक्षा
चाँद मुट्ठी में कर ले
समोद सिंह चरौरा
इस साझा काव्य संग्रह के सम्पादक श्री
नवीन गौतम जी ने अपने हुनर से देश के कोने- कोने से लेखनी के धनी प्रबुद्धजनों को तलाशकर व तराशकर
उनकी कलम से निकली काव्य-धाराओं के जल से इस काव्य संग्रह को सिंचित किया है ।..वैसे तो सभी मित्रों ने
अपनी विशेषता से पुस्तक को विशेष
बनाने के लिए अलग अलग विधाओं में व अलग
अलग विषयों पर संदेशात्मक रचनाओं से सकारात्मक सन्देश देने की पूरी कोशिश की है
.लेकिन कुछ मित्रों की विशेष संदेशात्मक रचनाओं में आप के साथ जरूर साझा करना
चाहूँगा ..जैसे कि नवीन जी की .कुण्डलिया छंद में लिखी ये रचना..
कहती कन्या कोख में, क्यों करती है शोक !
आने दे जग में मुझे, माँ मुझको मत रोक !!
...और
इसी क्रम में आदरणीय अरविन्द पाराशर जी के सभी दोहे बहुत अच्छे हैं और भुजंगप्रयात
छंद में लिखा यह गीत...
जहाँ वंचनाएँ सदा नाचती हों !
जहाँ वासनाएँ सदा बाँधती हों !!
इसके बाद .बेहद सुंदर भाव व् संदेशों
से भरपूर. रेनू शर्मा रेनुजा .जी की चौपाइयाँ,
कुण्डलिनी, दोहा, रोला, सवैया, पञ्चचामर, गीतिका, हरिगीतिका, सार, विधाता, ताटंक, और मनमोहक घनाक्षरी छंद.और कमाल का कुकुभ
यत्न किया हो कितना भी पर !
मिट्टी में तो मिलना है..!!
पुस्तक का एक सबसे अच्छी रचना जो
जितेंद्र नील जी की कलम से निकली .वैसे तो मैं नील जी के लेखन से भली-भाँति परिचित हूँ मगर आल्ह
छंद में लिखी यह
रचना वाकई...लाजवाब है-
माँग रही है भारत माता ,
तुमसे अपना ये सम्मान !!
अभी बात करता हूँ छोटी बहन गुंजन की
.गुंजन का लेखन वाकई काबिले तारीफ़ है इसमें कोई शक नहीं मैने कभी भी गुंजन को
नवांकुर नहीं माना गुंजन जी की प्रत्येक रचना चाहे वह किसी भी छंद में लिखी हो, एक मजे हुए कवि की रचना प्रतीत
होती है ..इस पुस्तक में लिखे सभी कुण्डलिया छंद बेहद शानदार .जैसे कि
..क्षणभंगुर
इस देह पर, करो
नहीं तुम नाज!
दंभी ....
और.
तीखी वाणी बोलकर, खूब तरेरे नैन !
आदरणीया सुनंदा झा जी के काव्य को
नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता ।उनकी एक सुंदर रचना जो सार छंद में लिखी है.उससे आपको रूबरू कराता
हूँ -
.सुन
ओ ! काले बादल जाकर, भैया से यह कहना !
राखी का धागा ले बहना, रस्ता देखे बहना !!
....मुझे
लगा जैसे मुझसे कह रही हों .....
अब बात आती है ऐसे कवि की जो मनमौजी
हैं मनमौजी थे और मनमौजी ही रहेंगे .मनोज जी की सभी दिल की गहराइयों से हास्य का
पुट लेकर निकली हुई रचनाओं के साथ साथ ओज से भरपूर सृजन वाकई कमाल का है मनोज जी
की सभी रचनाएँ मार्मिक व हास्य से भरपूर हैं .
जैसे...
बीवी संग तकरार में, हँसते रहो हजूर !
सुबह,
दोपहर, शाम को, खाओ साथ खजूर !!
....अभी
और भी काफी कुछ बाकी है..लिखने को मगर ज्यादा न लिखते हुए मैं इतना ही कहूँगा..कि श्री
सुशील तिवारी जी..,श्री सत्येंद्र सिंह जी,..श्री सतीश द्विवेदी जी,
श्री सुरेश अग्रवाल जी,
श्री महेश यादव जी, आशा रानी जी, प्रह्लाद सोनी जी,
रंगनाथन शुक्ल जी,
अल्का चन्द्रा जी,
अंकुर शुक्ला व् विनोद गंगावासी जी की सभी रचनाएँ इस पुस्तक की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं ! मुझे
उम्मीद है की ये पुस्तक पाठक के दिल पर अपनी छाप छोड़ेगी ।
-0-
"देर कर दी ..." जेन्नी जी आपने इस कविता में नारी जीवन की व्यस्तता का सही चित्र खींचा ।नारी अपनी जीजिविषा के बल पर कभी आशा का दामन नहीं छोड़ सकती ।भले वह सोचे , करूँगी कभी मन की ,वक्त जाने कहाँ चला जाता है ।जब उम्मीद का दामन वह नहीं छोड़ती तब कुछ न कुछ कर ही गुजरती है । बड़िया सकारात्मक सोच को सलाम ।
ReplyDeleteसमोद जी की समीक्षा "चाँद मुट्ठी में करले " देश भर के चुने हुये रचनाकारों की रचनायें पढ़ने को प्रेरित करती है ।
aapke hridya se niklii bhaavuktaa se aisaa prteet hotaa hai jaise ki kisii chitrkaar ne jeevn kii achchii tasveer bnaa dee hai | jismen jeevn ke sabhii rng , ras ko gholkr
ReplyDeletehridya ka pitara kohol diyaa hai. Kavita bdii hi maarmik aur hridy ko sparsh krne vaalii hai. Jeevn ka ktu satya aur ant men aashaa kii kirne bhii. Shiam Tripathi Hindi Chetna
धन्यवाद सहज साहित्य ...हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत ही शानदार, लाजवाब, उत्तम समीक्षा की आपने भैया 👍👍👍👌👌👌
Deleteसभी रचनाकारों की तरफ से आपका बहुत बहुत आभार ☺☺
बहुत ही शानदार, लाजवाब, उत्तम समीक्षा की आपने भैया 👍👍👍👌👌👌
Deleteसभी रचनाकारों की तरफ से आपका बहुत बहुत आभार ☺☺
जेन्नी जी आपकी कविता बहुत सुंदर है|
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
साँझा काव्य संग्रह "चाँद मुठी में कर ले" की समीक्षा को सहज साहित्य में स्थान देने के लिए आ0 कम्बोज भैया आपका कोटि कोटि दिल से आभार ..../\...
ReplyDeleteआदरणीया जेन्नी जी आपको अनेकानेक बधाई अप्रितम कविता हेतु ..��������
सादर
गुंजन अग्रवाल
शानदार पोस्ट ... बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर .... Thanks for sharing such a nice article!! :) :)
ReplyDeleteउत्तम समीक्षा...साधुवाद, समोद जी.
ReplyDeleteधन्यवाद, सहज साहित्य.
जेन्नी शबनम जी हक़ीक़त से लवरेज़ आपकी कविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteसाँझा काव्य संग्रह 'चॉंद मुठ्ठी में कर लो' की समीक्षा के लिए सामोद जी को बहुत बधाई ।
रेणु चन्द्रा
aadarneeyaa, Jenni ji ko hardik badhayi sundar srijan ke liye
ReplyDeleteaadarneey, Charora ji, hardik shubhkamanayen naveen kavya sangrah ke liye.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुन्दर ,मन में उतरती कविता ..बहुत बधाई डॉ. जेन्नी जी !
ReplyDeleteसार्थक समीक्षा के लिए आदरणीय समोद जी को हार्दिक बधाई !!
बहुत सुन्दर कविता जेन्नी जी बहुत बधाई।
ReplyDeleteसमोद जी सार्थक समीक्षा के लिए आपको बहुत बधाई।
Der kar di rachna bahut pasand aayi hardik badhai,samiksha bhi bahut achhi hai samikshak or lekhak dono ko meri bahut bahut badhai...
ReplyDeleteDr Shabnam ji...dil chu gya apka srijan..Naari mann ko Khubsurti se Darshata
ReplyDeleteSrijan Anupam hai...
Chand Muthi mein...Book ki Samikhsha...Bahut Khub...Badai...Charora Sir g
ReplyDeleteChand Muthi mein...Book ki Samikhsha...Bahut Khub...Badai...Charora Sir g
ReplyDeleteजेन्नी जी पता नहीं क्यों आपकी कविता में मैं खुद को देख रही हूँ। हर उस नारी की कहानी है जो समाज व परिवार के लिए अपने सपनों को आहूत कर देती हैं। तभी तो सहज ही जुड़ गये पाठक आपकी कविता से।
ReplyDeleteचरोरा जी को बधाई समीक्षा पर।
बहुत सुन्दर कविता जेन्नी जी बहुत बधाई।
ReplyDeleteसमोद जी सार्थक समीक्षा के लिए आपको बहुत बधाई।
जेन्नी जी की देर कर दी नारी विमर्श की सुन्दर कविता । बधाई ।सार्थक पुस्तक समीक्षा के लिये चरोराजी को बधाई ।
ReplyDeleteसस्नेह विभा रश्मि
जेन्नी जी, आपकी कविता हर औरत की गाथा है...| मन को छूने वाली इतनी सुन्दर रचना के लिए बहुत बधाई...|
ReplyDeleteपुस्तक समीक्षा बहुत सार्थक है, बहुत बधाई...|