1-सब तो न किताबें कहतीं हैं.....
भावना सक्सैना
इतिहास गवाह तो होता
है घटनाओं का
लेकिन सारा कब कलम
लिखा करती हैं?
जो उत्कीर्ण पाषाणों
में, सब
तो न किताबें कहतीं हैं,
सत्ताएँ सारी ही स्वविवेक से, पक्षपात
करती हैं।
किसके लहू से रँगी शिला, किसका
कैसे मोल हुआ
अव्यक्त मूक कितनी
बातें, धरती
में सोया करती हैं।
निज स्वार्थ लिए कोई, जब
देश का सौदा करता है
उठा घात अपनों की, धरती
भी रोया करती है।
मीरजाफर- सा कायर जब घोड़े बदला करता है
दो सौ सालों तक धरती, बोझा
ढोया करती है।
ऐसा बोझा इतिहास रचे, सच्चे नायक खो
जाते।
मिथ्या कृतियाँ सूरमाओं की सत्ता नकारा करती हैं।
आज़ादी का श्रेय
अहिंसा लेती जब
साहसी वीरों के बलिदान
हवि होते हैं
नमन योग्य जिनके चरणों
की धूलि
स्मृतियां भी उनकी खो
जाया करती है।
कुटिल कलम इतिहास कलम
करती जब
खून के आँसू पत्थर भी रोया करते है
लिखने वाले लिख तो
देते हैं निराधार
युगों युगों पीढ़ियाँ, भ्रमित
हुआ करती हैं।
-0-
2-फगुआ पैठ गया मन में
रश्मि शर्मा ,राँची
2-फगुआ पैठ गया मन में
रश्मि शर्मा ,राँची
रश्मि शर्मा ,राँची
फगुनौटी बौछारों में
पछुवा बनी सहेली जैसी
तन सिहरन पहेली जैसी
और, फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में
।।
परबत ने संकेत दिए
टेसू से, उड़ते बादल को
पागल परबत को भिगा गए
जैसे नेह भिगो दे ,आँचल को
पेड़- पेड़ पर टाँक गया
फूलों के गुलदस्ते कोई
मौसम की बहारों में ।।
और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में
।।
धूप चदरिया बिछा गई है
गॉव की अमराई में
अबीर बरसती रही रातभर
ओस बन बनराई में।
अमलतास से पीले दिन में
नशा घुल गया आँखों में
मद - रस, अधर छुहारों में ।।
और ,फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में
।।
मन की आस का छोर नहीं
बढ़ती जाती है निस दिन
परदेसी का ठौर नहीं
प्यास हिया बुझे किस
दिन
अकथ पहेली से परिणय का
गीत रचुँ मैं कब तक ,
चक्षु नदी के किनारों
में ।।
और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में
।।
फगुनौटी बौछारों में
पछुवा बनी सहेली जैसी
तन सिहरन पहेली जैसी
और, फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में
।।
.०.
कुटिल कलम इतिहास कलम करती जब
ReplyDeleteखून के आँसू पत्थर भी रोया करते है
लिखने वाले लिख तो देते हैं निराधार
युगों युगों पीढ़ियाँ, भ्रमित हुआ करती हैं।
वाह भावना जी, सुन्दर सृजन हेतु बधाई एवं शुभकामना
परदेसी का ठौर नहीं
प्यास हिया बुझे किस दिन
अकथ पहेली से परिणय का
गीत रचुँ मैं कब तक ,
चक्षु नदी के किनारों में ।।
रश्मि जी सुन्दर रचना हेतु बधाई एवं शुभकामना
धन्यवाद कविता जी
Deleteआज़ादी का श्रेय अहिंसा लेती जब
ReplyDeleteसाहसी वीरों के बलिदान हवि होते हैं
नमन योग्य जिनके चरणों की धूलि
स्मृतियां भी उनकी खो जाया करती है।
समय को चेताती सुंदर रचना भावना जी
परबत ने संकेत दिए
ReplyDeleteटेसू से, उड़ते बादल को
पागल परबत को भिगा गए
जैसे नेह भिगो दे ,आँचल को
पेड़- पेड़ पर टाँक गया
फूलों के गुलदस्ते कोई
मौसम की बहारों में ।।
सुंदर फागुनी रचना
धन्यवाद
Deleteभावना जी बहुत सुन्दर रचना है कुटिल कलम इतिहास कलम करती जब....बहुत प्रभावपूर्ण पंक्तियाँ हैं |रश्मि जी आपकी कविता ने भी मन मोह लिया |आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteधन्यवाद ...हम दोनों की तरफ से।
Deleteकुटिल कलम इतिहास कलम करती जब
ReplyDeleteखून के आँसू पत्थर भी रोया करते है
लिखने वाले लिख तो देते हैं निराधार
युगों युगों पीढ़ियाँ, भ्रमित हुआ करती हैं।
भावना जी भावना जी बहुत ओज पूर्ण आल्हा । बधाई।
पेड़- पेड़ पर टाँक गया
फूलों के गुलदस्ते कोई
मौसम की बहारों में ।।
फागुन की प्यारी कविता रश्मि जी बधाई लें ।
सनेह विभारश्मि
लिया धन्यवाद। आपको भी धन्यवाद
Deleteभावना जी की कविता बहुत ही भावप्रवण है,इस स्वपोषित समाज और सामाजिक व्यवस्था में इतिहास तो अपनी वास्तविकता जानने के लिए
ReplyDeleteतरसेगा ही|रश्मि जी फगुनाहट मन को भा गई|दोनों रचनाकारों को बधाई|
पुष्पा मेहरा
शुक्रिया
DeleteDono rachnayen bahut bhavpurn hain meri hardik badhai...
ReplyDeleteसुंदर एवं प्रभावी रचनाएँ दोनों ... हार्दिक बधाई भावना जी व रश्मि जी !!!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
ReplyDeleteसभी मित्रों की उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए बहुत आभारी हूँ।
सादर, भावना
रश्मि जी बहुत सुन्दर बौछारे। बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर ,सशक्त भाव भरी रचना भावना जी ..बहुत बधाई !
ReplyDeleteफागुन का मनभावन चित्र उकेरती रचना रश्मि जी ..हार्दिक बधाई !
भावना सक्सैना जी बहुत सुन्दर कविता है । ओजपूर्ण -कुटिल कलम जब इतिहास कलम करती .... हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteरश्मि जी आप की फागुन के रंग बिखेरती कविता बड़ी मधुर लगी । बहुत बहुत बधाई
Dr Bhawna ji Apki Anmol Bhavnaye..Kamal ki hai...
ReplyDeleteRashmi ji ..Manmohak Geet
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआप सभी और सहज साहित्य में स्थान देने के लिए रामेश्वर काम्बोज जी का हार्दिक धन्यवाद और आभार।
ReplyDeleteभावना सक्सैना बहुत ओजपूर्ण कविता है । हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteरश्मि जी आप की रंग बिखेरती कविता के लिए बहुत बहुत बधाई
कुटिल कलम इतिहास कलम करती जब
ReplyDeleteखून के आँसू पत्थर भी रोया करते है
लिखने वाले लिख तो देते हैं निराधार
युगों युगों पीढ़ियाँ, भ्रमित हुआ करती हैं।
बहुत सटीक बात लिखी है...| बहुत बधाई...|
रश्मि जी, बहुत सुन्दर रचना...| हार्दिक बधाई...|