1-क्षणिकाएँ - शशि
पाधा
1
अब
ना वो कौड्डियाँ
ना गीट्टियाँ
ना परांदे
ना मींडियाँ
ना टप्पे
ना रस्सियाँ
ना इमली
ना अम्बियाँ
कहाँ गई
वो लडकियाँ !!!!!!
2
आज फिर
बचपन आ बैठा
सिरहाने
और मैं
झिर्रियों से झाँकती
धूप को
मुट्ठियों में
भरती रही ।
3
हवाएँ
तेज़ चलती रही
सर्दी
बदन चीरती रही
धूप बदली की ओट
छिपती रही
और यह
इकलौता फूल
सूखी टहनी पर
इठलाता रहा
कितना जिद्दी है ना वो
मेरी तरह ।
-0-
*कौड्डियाँ—डोगरी
भाषा में कोड़ियों के लिए प्रयुक्त शब्द
-0-
2-आवारा-डॉ. मधु
त्रिवेदी
मैं बन जाऊँ पंछी आवारा
आवारा ही रहना चाहूँ
मद मस्त चाह है मेरी
नील गगन में ही रहना चाहूँ
जब याद आये धरती
इस पर रहने वालों की
तो मिलने चला आऊँ
देख सुन्दर धरती यही बस जाऊँ
इतने सुंदर लोग यहाँ के
पर बँधन में नहीं बँधना
आवारा हूँ
आवारा ही रहना चाहता हूँ
आवारा ही रहना चाहूँ
मद मस्त चाह है मेरी
नील गगन में ही रहना चाहूँ
जब याद आये धरती
इस पर रहने वालों की
तो मिलने चला आऊँ
देख सुन्दर धरती यही बस जाऊँ
इतने सुंदर लोग यहाँ के
पर बँधन में नहीं बँधना
आवारा हूँ
आवारा ही रहना चाहता हूँ
बैठ डाल पात पर
मीठे फल कुतरता
हर गली मुहल्ले और शहर
दुनियाँ दूर देश की सैर करता
दुनिया में डोल -डोल
सुंदर- सुंदर देशों को देख आऊँ
ना कोई कुछ कहने वाला
न कोई कुछ सुनने वाला
मन मर्ज़ी करने वाला
रोक -टोक ,मान -मर्यादा की
न मैं चिन्ता करने वाला
आवारगी में रहता मैं हर वक्त
ना अपनी चिंता करूँ
ना करूँ किसी ओर की
मीठे फल कुतरता
हर गली मुहल्ले और शहर
दुनियाँ दूर देश की सैर करता
दुनिया में डोल -डोल
सुंदर- सुंदर देशों को देख आऊँ
ना कोई कुछ कहने वाला
न कोई कुछ सुनने वाला
मन मर्ज़ी करने वाला
रोक -टोक ,मान -मर्यादा की
न मैं चिन्ता करने वाला
आवारगी में रहता मैं हर वक्त
ना अपनी चिंता करूँ
ना करूँ किसी ओर की
मिले जन्म धरती पर मुझे
तोता मुझे बनाना
बैठ जाऊँ- ऊँची डाल
फिर न बुलाना
मैना से ब्याह रचाऊँ
ना कोई दीवार जाँति-पाँति की हो
ना कोई भेदभाव हो
न कोई ढोंग- दिखावा हो
न मजहब के नाम पर
कोई खून ख़राबा हो
बस एक इन्सानियत का रिश्ता हो
जीवन का अटूट बन्धन हो
तोता मुझे बनाना
बैठ जाऊँ- ऊँची डाल
फिर न बुलाना
मैना से ब्याह रचाऊँ
ना कोई दीवार जाँति-पाँति की हो
ना कोई भेदभाव हो
न कोई ढोंग- दिखावा हो
न मजहब के नाम पर
कोई खून ख़राबा हो
बस एक इन्सानियत का रिश्ता हो
जीवन का अटूट बन्धन हो
-0-
3-मुश्किलों को देखकर- डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा
‘अरुण’
मुश्किलों को देख कर जो
हारता है।
दुश्मन है अपना,वो खुद को मारता है।
कर्मवीर चलते सदा,लेके सरपे कफ़न,
कमबख्त है जो मुश्किलों से हारता है।
जिसको मिली हिम्मत वही आगे चला,
जो है बुज़दिल वो तो बहाने मारता है।
डरने वाला डूबता है नाव के संग भी,
साहसी तो सब को लेकिन तारता है।
मंज़िल हमेशा ही मिली बस वीर को,
जो डरा वो तो 'अरुण' नित हारता है।
-0-पूर्व प्राचार्य,74/3,न्यू नेहरू नगर,रुड़की-247667
-0-
4-भोर-भोजपुरी गीत
श्वेता राय
चिरईंन के बोली मचावे ला शोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर
ऊषा अइलिन लेहले भाँवर।
शोभे उनकर रूपवा साँवर।
ललकी टिकुलिया छिटकावे अँजोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर
राह चनरमा गई लें भुलाइल।
जोन्हीं सगरी फिरत लुकाइल।
शीतल बयरिया बहे ला झक झोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर
साजल बाजल सगरी नगरिया।
महकल फुलवा भर के डगरिया।
दिन दुपहरिया लागे ला चित चोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर
पायल कनिया रुनझुन बाजे।
घरवा दुअरवा
निम्मन साजे।
मन्दिर के घंटी बाजे ला पुरजोर
किरनियाँ! लावे ले जब भोर
-0-
अब
ReplyDeleteना वो कौड्डियाँ
ना गीट्टियाँ
ना परांदे
ना मींडियाँ
ना टप्पे
ना रस्सियाँ
ना इमली
ना अम्बियाँ
कहाँ गई
वो लडकियाँ !!!!!!
आ. शशि जी बहुत सुंदर सृजन ...सच में बहुत चीज़े छूट गई हैं इस नई पीढ़ी से
मधु जी बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीय अरुण जी प्रेरणादायक रचना.. सादर नमन सर
ReplyDeleteश्वेता जी बहुत सुंदर मनभावन गीत
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएँ ,गीत और कविताएँ 👌👍
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को ख़ूब-ख़ूब बधाई 💐💐
सभी रचनाएँ गागर में सागर - सी हैं
ReplyDeleteबधाई .
शशि जी की क्षणिकाएँ,सुनीता जी की सुग्गा बन दूर-दूर तक उड़ने की चाह,श्वेता जी का प्रात:काल के कलेवर में पूरी तरह से लिपटा भोजपुरी गीत और शर्मा जी की प्रेरक रचना सभी अनुपम हैं,रचनाकारों को बधाई |
ReplyDeleteवाह शशि जी बचपन में पहुँचा दिया - न गीट्टियाँ न मींडिया ... बहुत अच्छा लगा आवारा पंछी जी भा गया अरुण जी की रचना प्रेणना दायक है शाश्वत सत्य से परिचय कराती - डरने वाला डूबता है नाव के संग भी / साहसी तो सबको लेकिन तारता है । श्वेता जी आप की भोजपुरी शब्दावलि वाली कविता भी बड़ी मधुर और भावपूर्ण है - चिरईंन के बोल मचावे ला शोर/किरनियाँ लावे ले जब भोर ।सब को मेरी हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत, क्षणिकाएँ, कविताएँ। आप सभी रचनाकारों को बहुत बधाई!
ReplyDeleteसच में शशि जी आपकी क्षणिकाओं ने बचपन की यादों को तरोताजा कर दिया |डॉ मधु जी आपके द्वारा रची आवारा पंछी के मन के भाव मन को छू गए |डॉ अरुण जी का भी सुन्दर सृजन है |श्वेता जी का भोजपुरी भाषा में रचा खूबसूरत गीत है आप सभी रचनाकारों को ढेर सी शुभकामनाएं |
ReplyDeleteAap sabhi rachnakaro ko hardik badhayi
ReplyDeleteAap sabhi rachnakaro ko badhayi
ReplyDeleteEak se badhkar eak rachnayen!!! sabhi ko hardik badhai...
ReplyDeleteशशि जी...कमाल...!
ReplyDeleteमधु जी, अरुण जी...बहुत सुन्दर रचनाएँ...|
श्वेता जी, ये भोजपुरी पंक्तियाँ अपनी मिठास में सराबोर कर गई...|
आप सभी को बहुत बधाई...|