1-भोर प्यारी
तुम सुहानी
श्वेता राय
श्वेता राय |
भोर प्यारी
तुम सुहानी मैं प्रखर दिनमान हूँ।
साँझ बनकर
तुम ढलो जब दीप का प्रतिमान हूँ।।
दीप्ति कंचन
तन तुम्हारा, हृदय गंगा धार है।
मन महकता बन
चन्दनी,प्रेम का अभिसार है।।
आभ हीरक तुम
प्रिये मैं, विधु जनित मुस्कान हूँ।
साँझ बनकर
तुम ढलो जब दीप का प्रतिमान हूँ।।
लालिमा ललना
तुम्हारी, शोभती बन कर किरण।
लग रहे चंचल
नयन ये, भागते वन में हिरण।।
धार हो सरि
की सजल तुम, मैं जलधि अभिमान हूँ।
साँझ बनकर
तुम ढलो जब दीप का प्रतिमान हूँ।।
देख कर तेरी
हँसी को, झूमते हैं बाग़ वन।
मधु छलकता
है अधर से, देह चन्दन का सदन।।
राग सरगम से
सजी तुम, मैं प्रकृति का गान हूँ।
साँझ बनकर
तुम ढलो जब दीप का प्रतिमान हूँ।।
-0-विज्ञान
अध्यापिका,देवरिया,उत्तर प्रदेश-274001
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2-प्रेम और
तुम
श्वेता राय
प्रेम का प्यारा
कुसुम जब, मन धरा कुसुमित हुआ।
हो गया सुरभित
जगत ये, मौन भी मुखरित हुआ।।
कामनाएं मन
गगन पर, तारिकाएँ बन गईं।
बन गईं कुछ
फूलतारा, चाँदनी सम ठन गईं।।
खुल गए दृग-
द्वार के पट, कंठ उर कोकिल हुआ।
बिन तुम्हारे
एक पल भी, प्रिय सुनो! बोझिल हुआ।।
तितलियों के
पंख जैसे, स्वप्न अंतस में पले।
बिन कहे कुछ
बिन सुने कुछ, प्रीत में छुप के ढले।।
सब दिशाएं
झूमती थीं, सुन भ्रमर के गान को।
नाचती पागल
पवन थी, सुन पिपिहरी तान को।।
क्या हुआ जो
भीत के क्षण, पास आ जुड़ने लगे।
फूल से सुरभित
जगत् में, धूल बन उड़ने लगे।।
थक गए क्यों
भ्रमर सारे, शांत क्यों ये जग हुआ।
स्नेह पगती
वर्तिका को, आँधियों ने क्यों छुआ।।
सह रहा मन
ताप भीषण, झेल कर हर वार को।
माँगता अब
जेठ से क्यों, फागुनी अधिकार को।।
सावनी मनुहार
को,प्रेम के संसार को
माँगता अब
जेठ से क्यों, प्यार ही बस प्यार को...
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Shweta Ji kavita men klpana ki mithas hai, Ek vigyaan kii shikshika ke hridy men itni komltaa is rchna men spasht nikhar kar aayee hai. Ati sunder se bhi adhik sunder. Shiam Tripathi Hindi Chetna
ReplyDeleteShwetaa ji , aapki rachnaye sundar,, badhayi evam shubhkamna
ReplyDeleteShweta ji aapki rachnaye bahut sundar,, badhayi evam shubhkamna
ReplyDeleteश्वेता जी बहुत मनभावन सुंदर रचनाएँ ..हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletebahut sundar geet hain hardik badhai manmohak prem abhivyakti
ReplyDeleteसुन्दर रचनायें श्वेता राय जी । शुभ कामनायें ।
ReplyDeleteBhut bhaav bhari Rachana bhut bhut badhai'
ReplyDeleteश्वेता जी आपकी रची दोनों ही रचनाएं अत्यधिक सुन्दर है साहित्यिक शब्दों में बंधकर अनुपम छटा प्रस्तुत कर रही हैं हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteअति सुन्दर रचनाएँ हैं श्वेता जी बहुत बधाई!
ReplyDeleteBahut sundar bhav bahut bahut badhi...
ReplyDeleteमन को मुग्ध करने वाली रचनाएँ । अकेले में बैठकर पढ़ते पढ़ते खो गए कोकिल कंठ की पिपहरी तान में । बहुत बधाई आपको रेनू जी
ReplyDeleteश्वेता जी.. बहुत मनभावन अति सुन्दर रचनाएँ .बहुत बधाई.. .हार्दिक शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-12-2016) को "फकीर ही फकीर" (चर्चा अंक-2547) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब !!
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचनाएँ...मेरी बधाई...|
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