नन्हा भरतू और भारतबन्द
डा कविता भट्ट
(दर्शन शास्त्र विभाग,हे०न०
ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड)
सुबह
से शाम तक, कूड़े से प्लास्टिक-खिलौने बीनता नन्हा भरतू
किसी
कतार में नहीं लगता, चक्का जाम न भारत बंद करता है
दरवाजा
है न छत उसकी वो बंद करे भी तो क्या
वो
तो बस हर शाम की दाल-रोटी का प्रबंध करता है
पहले
कुछ टिन-बोतलें चुन जो दाल खरीद लेता था
अब
उसके लिए कई ग्राहकों को रजामंद करता है
बचपन
से सपने बुनते- बैनर इश्तेहार बदलते रहे
गिरे
बैनर तम्बू बना, सर्द रातों में मौत से जंग करता है
सड़क
पर मिले चुनावी पन्नो के लिफाफे बनाकर
मूँगफली-सब्जी-राशन वालों से रोज अनुबंध करता है
कूड़े
की जो बोरी नन्हे कंधे पर लटकते-लतकते फट गई
बस
यही खजाना उसका, टाँके से उसके छेद बंद करता है
इतनी
बोतलें- हड्डियाँ कूड़े में, यक्ष प्रश्न है- उसके जेहन में
बेहोशी-मदहोशी
या नुक्कड़ की हवेली वाला आनंद करता है
निश्छल
भरतू पूछ बैठा, कूड़े में नोट? आखिर क्या माजरा है?
तेरे
सवाल का पैसा नहीं मिलना, अम्मा बोली- काहे दंद-फंद करता है ?
एक
सवाल लाखों का उनका, तेरे से क्या उनकी क्या तुलना?
बापू
तेरे बूढ़े हो
गए हैं अब
उम्र
ढली कूड़े में, तू क्यों अपना धंधा मंद करता है
इसीलिए
नन्हा भरतू कूड़े, दाल और रोटी में ही खोया है
किसी
कतार में नहीं लगता, चक्का जाम न भारत बंद करता है।
वाहहह ..क्या बात..कितनी खूबसूरती से शब्द चयन करके सार्थक संदेश ...अभिव्यक्ति बेहतरीन
ReplyDeleteकविता जी मार्मिक सार्थक कविता ....देश में कितने भरतू मर मर के जी रहे हैं
ReplyDeleteBahut bahut badhiya kavita ji...ek satik kavita me aapne patra ka naam bhi bahut sahi liya h..
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना कविता जी....हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteकूड़ा कचरा बीन कर जीवन जी रहे न जाने कितने भरतुयों की यह दास्ताँ है ।आकाश ओढ़ जो ठिठुरती रातें बितातें हैं । दिल कम्बाऊं रचना है यह । पर प्रशासन की आँख नहीं खुलने वाले बलैक मणि वाले उन्हें अपनी ओर लगाये रखेंगे । सुन्दर एवं सामयिक रचना हेतु हार्दिक बधाई कविता जी ।
ReplyDeleteअत्यंत मर्मस्पर्शी एवं सामयिक कविता !
ReplyDeleteइस सुंदर सृजन हेतु आपको बहुत बधाई कविता जी !!!
~सादर
अनिता ललित
सामयिक व उम्दा रचना !
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (30-11-2016) के चर्चा मंच "कवि लिखने से डरता हूँ" (चर्चा अंक-2542) पर भी होगी!
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सामयिक प्रश्न बहुत सशक्त रूप से उठाती भावपूर्ण कविता, कविता जी !
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई आपको !
कविता जी सामयिक रचना के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteमार्मिक ,सार्थक एवं सामयिक कविता ,कविता जी ! हार्दिक बधाई 11!
ReplyDeleteसुन्दर एवं सामयिक रचना के लिए हार्दिक बधाई कविता जी ।
ReplyDeleteविशिष्ठ अंदाज में सामायिक प्रश्नो के स्वत: हल खोजती बेहतरीन रचना बधाई आपको आदरणीया रचना जी ।
ReplyDeleteविशिष्ठ अंदाज में सामायिक प्रश्नो के स्वत: हल खोजती बेहतरीन रचना बधाई आपको आदरणीया रचना जी ।
ReplyDeleteक्षमा चाहती हूँ बहुत विलम्ब से अपनी प्रतिक्रिया हेतु. आप सभी के प्रोत्साहन से कुछ लिख लेती हूँ, आप सभी को रचना अच्छी लगी इसके लिए आप सभी को कोटिश: धन्यवाद
ReplyDeleteबेहद उम्दा...| दिल कचोट जाता है जब ऐसा कुछ पढ़ते हैं...| आपको बहुत बधाई...|
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