1-ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है
- मंजूषा मन
दुःख मिला जो हमें
अंतहीन है,
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।
जीवन लगता अब मशीन है,
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।
जर्जर हुई है
मन की हर दीवार,
टूट गए हैं अब
सारे द्वार,
छाया है हर ओर
घनघोर अँधेरा,
कहीं दिखाई न देता है
कोई सवेरा,
दिल का माहौल ग़मगीन है
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।
मंज़िल कहाँ है, ये नहीं पता
अपने भी रहते है
सदा हमसे खफा,
तरसे हैं हम
इक इक ख़ुशी के लिए,
पाया भी क्या है
ज़िन्दगी के लिए,
हासिल तेरह न पाया तीन है
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है
छूटा जो हाथो से
ग़म न किया,
जीवन का हर पल
हँस - हँसकर जिया
सहे दर्द
न कभी आँसू बहाए
नहीं कभी
ये कदम डगमगाए
निकाला कोई मेख न कोई मीन है
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।
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2-औरों की खुशियों में (सार या ललित छंद )
सुनीता काम्बोज
एक बार गर गई, लौटकर,आती नहीं जवानी
माटी में माटी मिल जाए,फिर पानी में पानी ।
माटी में माटी मिल जाए,फिर पानी में पानी ।
सबको इक दिन जाना होगा,जो दुनिया में आया
हँसकर रोकर हर मानव ने,जीवन का सुर गाया ।
हँसकर रोकर हर मानव ने,जीवन का सुर गाया ।
ज्ञानी है कोई इस जग में, है कोई पाखण्डी
कोई सरल बड़ा ही मिलता,कोई बड़ा घमण्डी ।
कोई सरल बड़ा ही मिलता,कोई बड़ा घमण्डी ।
इस दुनिया में कुछ लोगों को ,अपना आप सुहाता
जो उनकी अच्छाई गिनता ,केवल वो ही भाता ।
जो उनकी अच्छाई गिनता ,केवल वो ही भाता ।
रंग- बिरंगे सजे खिलौने ,दुनिया लगती मेला
कोई जीता भीड़- भाड़ में,कोई रहा अकेला ।
कोई जीता भीड़- भाड़ में,कोई रहा अकेला ।
सारा जीवन धन के पीछे ,फिरते हैं बौराए
जितना मिलता कम पड़ता है, हाय हाय! चिल्लाए ।
जितना मिलता कम पड़ता है, हाय हाय! चिल्लाए ।
औरों की खुशियों में खुशियाँ , जिसने
ढूँढी ,पाई
रहता नहीं कभी वह प्यासा, मिट जाती तन्हाई ।
रहता नहीं कभी वह प्यासा, मिट जाती तन्हाई ।
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मंजूषा जी जिंदगी नमकीन है ,गमगीन है मशीन है..पर हमें लगता है फिर भी हसीन है ...बेहतरीन ,बधाई
ReplyDeleteसुनीता जी, सच कहा...अगर दूसरों को थोड़ी सी खुशी हमारी वजह से मिल जाए तो सच में जीवन सार्थक हो जाए...उम्दा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया पूर्णिमा जी ...शुभ सुप्रभात
Deleteमंजूषा जी जिंदगी नमकीन है ,गमगीन है मशीन है..पर हमें लगता है फिर भी हसीन है ...बेहतरीन ,बधाई
ReplyDeleteसचमुच बहुत ही ख़ूबसूरत रचनाएँ हैं दोनों, जिंदगी के रूप-रंग से सजी हुई !
ReplyDeleteइस सुंदर सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई मञ्जूषा 'मन' जी एवं सुनीता काम्बोज जी !
~सादर
अनिता ललित
सादर धन्यवाद प्यारी सखी
Deleteदुख-सुख जीवन के अभिन्न अंग हैं । जीवन मीठी - कड़वे अनुभवों का नाम है । भोजन में नमक आवश्यक तत्व होता है। ये स्वाद भी प्रतीकात्मक रूप से जीवन का नमक ही हैं । मंजूषा मन जी ने सुन्दर शब्द संयोजन से ये सच उजागर कर दिया है । कविता दार्शनिक भाव की है । सार्थक है । बहुत बधाई ।
ReplyDeleteदूसरी कविता सार छंद की सुंदर रचना है ।सुनीता काम्बोज जी जीवन की व्याख्या की है । दार्शनिक भाव की सुन्दर रचना है । त्यागमय जीवन तब ही सार्थक है उसमें जब परहित की बात समाई हो । ये साधुभाव कबीर जैसा है । सुखमय जीवन का हल भी अंतिम पंक्तियों में दे दिया है । ललित रचना के लिए सुनीता जी को बधाई ।
बहुत बहुत शुक्रिया विभा जी ...सादर नमन
Deleteसबको एक दिन जाना है,यह कटु सत्य है परन्तु फिर भी लोग यह समझने की कोशिश नहीं करते वे इसी प्रकार अपने को धोखा देते है जैसे बिल्ली को देखकर कबूतर आँखें बंद कर अपने को धोखा देता है और बिल्ली का शिकार बन जाता है.
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ सार्थक हैं और सोचने को बाध्य करती है कि हम कहाँ जा रहे हैं.
सादर आभार आदरनीय
Deleteसादर धन्यवाद आदरणीय
Deleteदोनों ही रचनाएं सुन्दर, सार्थक !
ReplyDeleteमंजूषा जी, सुनीता जी बहुत बधाई।
सादर धन्यवाद कृष्णा जी
Deleteमंजूषा जी बहुत खूब ..ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है .सुन्दर सृजन के लिए बधाई
ReplyDeleteमंजूषा जी बहुत ही खूब......जिन्दगी वास्तव में ही है नमकीन ........सुन्दर सृजन ।सुनीता जी आपने जीवन के सत्यों को ललित छंद में बखूबी प्रस्तुत किया है। आप दोंनो को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteज़िंदगी नमकीन है, फिर भी हसीन है, इसलिए खुशी-खुशी जीना ही बेहतरीन है...| बहुत सुन्दर रचना, बधाई...|
ReplyDeleteसुनीता जी, जिसने दूसरों की खुशियों में खुश होना सीख लिया, वह अकेला या दुखी रहा ही कब...| बहुत सुन्दर...मेरी बधाई...|
बहुत ख़ूबसूरत 'नमकीन ज़िंदगी ' ...हार्दिक बधाई मंजूषा जी !
ReplyDeleteसुन्दर बातों से सजे बहुत सुन्दर सार छंद सुनीता जी ....बहुत-बहुत बधाई !!
दुःख मिला जो हमें
ReplyDeleteअंतहीन है,
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।
जीवन लगता अब मशीन है,
ज़िन्दगी फिर भी नमकीन है।
मंजूषा जी निराशात्मक सुंदर रचना है बधाई .
औरों की खुशियों में खुशियाँ , जिसने ढूँढी ,पाई
रहता नहीं कभी वह प्यासा, मिट जाती तन्हाई ।
इन पंक्तियों में सुन्दर संदेशात्मक सार छंद सुनीता जी ....बहुत-बहुत बधाई !!
मंजूषा जी और सुनीता जी आप दोनों की रचनाएं जीवन की सच्चाई पर आधारित हैं .भावों ने प्रभावित किया है ।आप दोनों की कलम यों ही चलती रहे अनेक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना मंजूषा जी !बधाई हो।जीवन को नमकीन बताया।सटीक और अलग ही अहसास जीवन के प्रति नमकीन से आ गया है।खट्टे मीठी तीखे कड़वे अनुभवों से गुज़रने के बाद भी मनुष्य उसे फीका कहाँ होने देता है।जीवन जीने की हसरत बनी ही रहती है। सशक्त अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसुनीता जी हार्दिक बधाई हो।बहुत सशक्त रचना नश्वर जीवन की सच्चाई की अभिव्यक्ति !🙏
ReplyDelete'जीवन की सार्थकता दूसरों के लिए जीने में है ' की प्रेरणा देती सार गर्भित संदेश प्रसरित कर रही
है।
सुनीता जी आपने जिस भावप्रवणता से नश्वर जीवन को सार्थक बनाने के लिए प्रेरित किया है,वह
ReplyDeleteबहुत ह्दय में परोपकार की भावना जगाता है।हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
दोनों रचनाएँ बहुत ही खूबसूरत ,जीवन के यथार्थ की अभिव्यक्ति | बहुत बहुत शुभकामनायें सुंदर रचनाओं के लिए .....
ReplyDelete'नमकीन ज़िंदगी ', सार छंद ....दोनों ही रचनाएं बहुत सुन्दर, सार्थक
ReplyDeleteमंजूषा जी, सुनीता जी ...बहुत-बहुत बधाई !!
वाह क्या बात है। नमकीन जिन्दगी... बधाई सुनीता जी...
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