पथ के साथी

Monday, May 2, 2016

634

1-आँसू छंद : डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
जब यादें संग तुम्हारी
मैं हँसती ,मुसकाती हूँ
तुम दे जाते हो पीड़ा
मैं उसको भी गाती हूँ ।
2
सुख-दुख समभाव मुझे सब
गम ख़ुशियों का डेरा है
अब लेश न मुझमें मेरा
जो शेष बचा तेरा है ।
3
ये कड़ी धूप छाया दे
कंकड़ -कलियाँ राहों में
इतने निष्ठुर मत होना
संगीत सुनो आहों में ।
4
मिलना तो मुझको वो ही
जो क़िस्मत का लेखा है
सीपी या रजकण आगे
बूँदों ने कब देखा है ।
5
मैं गिरती हूँ उठती हूँ
लहरों के संग नदी सी
बस मूक न सह पाऊँगी
इस बीती त्रस्त सदी सी ।
6
पूजन-वंदन कब चाहा
हाँ ! मर्यादा रहने दो
मत रोको पथ मेरा भी
अविरत ,अविरल बहने दो
7
इतना चाहा पूरा हो
हर सुंदर स्वप्न तुम्हारा
ओ प्रेम पथिक यूँ तुमपर
सर्वस्व लुटा मन हारा ।
8
निर्मम दुनिया जीने का
आधार तुम्हीं से मेरा
मन के सच्चे मोती हो
शृंगार तुम्हीं से मेरा ।
-0-
2-दोहे-आभा सिंह
1
नदिया दुबली हो रही, जल जैसे आभास।
नेह सरसता खो रही,उचट रहा विश्वास ॥
2
गरमी चैन बुहारती,धूप बनी मुँहजोर ।
हलक सुखा बेरहम,लू-लपटें झकझोर
 3
गरमी का कर्फ़्यू  लगा,सूनी गलियाँ ,बाट।
सुबह दुपहर घूम रही,ले आँधी की हाट ॥
4
गरमी की थीं छुट्टियाँ,ख़ूब मनाई साथ ।
गाने गप्पें हुड़दंग,और ताश के हाथ ॥

-0-

11 comments:

  1. ज्योत्स्ना जी बहुत सुन्दर भावों में सजे छन्द रचे हैं और आभा जी ने भी पानी की त्रासदी और ग्रीष्म ऋतु पर दोहो की रचना की है वह अतुलनीय है मेरी ओर से आपदोनों को बधाई और शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  2. ज्योत्स्नाजी ,सुंदर भावपूर्ण छंद
    आभाजी ग्रीष्म का वर्णन करते सुंदर दोहे
    दोनों को बधाई

    ReplyDelete
  3. ग्रीष्म ऋतु का मोहक चित्र प्रस्तुत करते सुन्दर दोहे ..बहुत बधाई आभा दीदी !

    मेरी रचनाओं को यहाँ स्थान देने के लिए हृदय से आभार भैया जी !

    ReplyDelete
  4. जब यादें संग तुम्हारी
    मैं हँसती ,मुसकाती हूँ
    तुम दे जाते हो पीड़ा
    मैं उसको भी गाती हूँ ।
    bahut sunder

    गरमी चैन बुहारती,धूप बनी मुँहजोर ।
    हलक सुखाए बेरहम,लू-लपटें झकझोर
    bahut khoob
    rachana

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर भावोंसे भरे आँसू छंद और गर्मी की कहानी कहते दोहे|ज्योत्स्ना जी व आभा जी बधाई|
    पुष्पा मेहरा

    ReplyDelete
  6. आपदोनों की मर्मस्पर्शी रचनाएँ हैं .
    ज्योत्स्ना जी , आभा जी बधाई

    ReplyDelete
  7. सुख-दुख समभाव मुझे सब
    गम ख़ुशियों का डेरा है
    अब लेश न मुझमें मेरा
    जो शेष बचा तेरा है ।
    dard ka itna sundar roop jyotsna ji !
    गरमी का कर्फ़्यू लगा,सूनी गलियाँ ,बाट।
    सुबह दुपहर घूम रही,ले आँधी की हाट ॥
    garmi ka ye nazara kitna sajeev hai rachana ji!
    bahut- bahut badhai aap donon ko !

    ReplyDelete
  8. garmi ka ye nazara kitna sajeev hai abha ji!bahut -bahut badhai!

    ReplyDelete
  9. ज्योत्स्नाजी, आभाजी बहुत सुन्दर भाव।
    आप दोनों को बधाई।

    ReplyDelete
  10. इस प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हृदय से आभार !

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

    ReplyDelete
  11. बहुत भावप्रवण हैं ये आँसू छंद...और उम्दा दोहे...|
    आप दोनों को मेरी हार्दिक बधाई...|

    ReplyDelete