बिम्ब
पुष्पा मेहरा
इस
जग- दर्पण के
टूटते
–बिखरते से टुकड़ों -बीच
देखते
–देखते ही प्रत्यक्ष होते अनेक दृश्य
मेरी
आँखों में समा रहे हैं –
काँस
के फूलों से घिरे( आतंकी ) बादलों के,
कैशमिलान
के छोटे –बड़े ऊन के गोलों की तरह
अनसुलझे
प्रश्न- बटों के,
बहती
नदी की रुकने का संकेत देती धारा सी-
सिकुड़ती-सहमती
नव यौवनाओं के
होंठों की लुटी- पिटी मुस्कान के, जो
हबश
की नदी की हरहराती बाढ़ में
न
जाने कबसे डूबती रही है |
फूलों
की खुशबू दबा सोई
-अनखिली
कलियों की सूखी पंखुरियों के ,
जिन्हें
देख मेरे ज़ेहन में ,
एक
और भयावह पर सत्य बिम्ब ,समाने लगा है जिसमें
रातों
को घेरे रहता है एक निर्मम सन्नाटा कि
हरसिंगार
खिलते ही झर जाता है ,
समवेदनाएँ
जागने से पहले ही उजाड़ के
क्षत-
विक्षत कर फ़ेंकीं जा रहीं है |
शहरों
में आवारा कुत्तों का जमघट
भावी
संततियों- खातिर पार्कों की क्यारियाँ
उजाड़
रहा है ,
टिटिहरी
अंडे सेने की जगह तलाश रही है ,
तिजोरियों
में बंद धन धनाढ्यों की नींदे
खरीद
चुका है |
पूर्वजों
की गाढ़ी कमाई से गढ़े घर
जिनमें
कभी आत्मीयता ,प्यार और विश्वास
चन्दन
की खुशबू सा बसता था आज
हवाओं
के बदलते रुख़ उन्हें शिरोमूल से
ढहाने
में लगे हैं |
इन
नाना दृश्यों के बीच फँसी मैं राह खोज
एक
ऐसा गढ़ रचने की कल्पना में डूबी हूँ ,
जिसकी
दीवारों की ईंट– ईंट में ,
जिसके
आँगन –आँगन में एक अखंडित
दर्पणहो ,
विश्वास-
स्नेह की तरलता हो और हो
अटूट
रिश्तों की सघन छाया ,
ना
भय हो , ना हिंसा हो ,
ना
ही ईर्ष्या – द्वेष हो , यदि
दर्पण
में कोई बिम्ब हो तो अशक्त काँधों पर
किसी
सशक्त के हाथ का हो,
गूँज
में कोई गूँज हो तो
बस
एक आत्मीयता भरे
मृदु
स्पर्शों के छुअन की ध्वनि की ही हो |
-0-pushpa .mehra @ gmail .com
बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteहृदयतल को छूने वाली सुन्दर कविता ।बधाई पुष्पा मेहरा जी
ReplyDeletesundar bhaav poorn prastuti !
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना हार्दिक बधाई पुष्पा जी !!!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
बहुत सुन्दर रचना, पुष्पा जी, शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण रचना । बधाई पुष्पा जी !
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ReplyDeleteइस अत्यंत भावपूर्ण रचना के सृजन पर पुष्पा जी आपको हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteबहुत भावप्रवण रचना...हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण रचना .. .हार्दिक बधाई पुष्पा जी !
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteअनेक सुन्दर बिम्बों से सजी बहुत ही भावप्रवण,सार्थक और सुन्दर रचना के लिए पुष्पा जी को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteसुरेन्द्र वर्मा
सर्वप्रथम मैं भाई कम्बोज जी की आभारी हूँ जिन्होंने अपने उत्कृष्टतमब्लॉग में मेरी कविता को स्थान दिया उसके बाद मैं अपने साथी रचनाकारों के साथ ही श्रद्धेय वर्मा जी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करती हूँ जिनकी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया ने मेरा मनोबल बढ़ाया है|
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
bahut sundar hardik badhai...
ReplyDeleteअपने ब्लॉग'deep'में 'सहज साहित्य' और मेरी कविता को स्थान देने हेतु ई. प्रदीप साहनी जी का आभार |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा