डॉ.कविता भट्ट
घबरा के देखा मैं अस्पताल के सामने खड़ी थी
उसी समय नर्स ने रजिस्टर देखकर पुकार लगाई
‘हिन्दी’ नाम की औरत के साथ कौन आया है भाई
आस-पास मेरे तथाकथित भाई- बहन चिल्ला रहे थे
‘आईसीयू में हमारी बुढ़िया माँ है’ ऐसा बता रहे थे
जिसे हमारे पूर्वज वर्षो पहले ओल्ड-एज होम छोड़ आए थे
वही के कर्मचारी आज सुबह ही उसे अस्पताल लाए थे
ऑक्सीजन लगी बुढ़िया कभी भी मर सकती थी
अपनी वसीयत ओल्ड एज होम के नाम कर सकती थी
समझी नहीं फटेहाल बुढ़िया को माँ क्यों बता रहे थे
घड़ियाली आँसुओ से मेरे भाई बहन क्या जता रहे थे
वहीं जींसटॉप
में “इंग्लिश” नामक औरत मुस्करा रही थी
जो कई सालों से खुद को हम सबकी माँ बता रही थी
क्या है, गड़बड़ झाला मुझे समझ ही नहीं आया
और मैंने पास खड़े डॉक्टर से माज़रा पुछवाया
सौतन है वो तुम्हारी माँ की जिसने साजिशन डेरा जमाया
है
डॉक्टर बोला इसी ने तुम्हारी माँ को ओल्डएज होम
भिजवाया है
पर मुझे लगा की डॉक्टर को भी अधूरी जानकारी थी
मात्र सौतन की नहीं, वो हम सबकी साजिश की मारी थी
लोरियाँ याद रही हमें लेकिन हम माँ को भूल गए
अपनी माँ की कुटिल सौतन के गले में ही झूल गए
मैं पास गई माँ के, नर्स खड़ी थी वार्ड के दरवाजे
खोलकर
पोते पोतियों से मिलवाओ बीमार माँ रो पड़ी ये बोलकर
मैंने कहा वो अमेरिका तो कुछ इंग्लैण्ड में पढ़ रहे है
लेकिन वो तुम्हारी चिंता छोड़कर आपस में ही लड़ रहे हैं
खुद को अलग अलग परिवारों का बता रहे हैं
तुम्हारी भावी पीढ़ी हैं ऐसा कहने में घबरा रहे हैं
माँ बोली उनके साथ मुझे रखो मैं उन्हें दुलार दूँगी
सहला के जीवन, रंग, रस और संस्कार उपहार दूँगी
मेरी ममता और लोरियों का कर्ज चुकाओगे क्या
ओल्ड एज होम से वापस मुझे ले जाओगे क्या
मेरे जवाब के लिए अब भी वह बिस्तर पे पड़ी है
मेरे उत्तर की प्रतीक्षा में उसकी धड़कन बढ़ी है
मैं निरुत्तर कभी अपने तमाशबीन भाई बहनों को देखती
हूँ
कभी अपनी बीमार माँ को देख जोरों से चीखती हूँ-...
क्या हम उसे घर ला सकेंगे...
या
उसे तड़पते हुए मरने देंगे ?
(दर्शन शास्त्र विभाग,हे०न०
ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड)
वाह ! अद्भुत … डॉ.कविता भट्ट को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई कविता जी!!!
~सादर
अनिता ललित
हिन्दी की दयनीय स्थिति को बहुत अच्छे रूपक के साथ अभिव्यक्त करने पर हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteeak anokhe hi dhag mein abhivyakt kiya hai aapne is kavita ko .....hindi ki dayneey stthi ko sunderta se abhvyakt karne ke liye bahu -bahut badhai kavita ji .
ReplyDeleteआप सभी का आभार एवं धन्यवाद
ReplyDeleteलेकिन मेरा लिखना तभी फलीभूत होगा जब इस पर एक व्यापक चर्चा छिड़ जायेगी
भावना भट्ट जी हिन्दी की स्थिति बताता कवितामय रूपक लिखकर आपने समाज के सामने बहुत ही सुन्दर ढ़ग से हिन्दी के प्रति जो लोगों का ध्यान आकर्शित किया है काबिले तारीफ से भी बड़कर काम किया है ।हम सब को अपनी राष्ट्र भाषा व मातृ भाषा के प्रति स्वम् ही जागरूक होने की जारूरत है ।विदेशी भाषा बोलने पढ़ने सीखने में कोई खराबी नही लेकिन अपनी भाषा के प्रति मान सम्मान भी जारूरी है । हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छे रूपक के साथ एक शोचनीय मुद्दे को अभिव्यक्ति दी है कविता जी...बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....कविता जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeletesundar abhivaykti...hardik badhai...
ReplyDeleteकविता जी दयनीय दुर्दशा का प्रभावी प्रस्तुति ,बधाई !
ReplyDeleteअपनों में उपेक्षा झेलती हिंदी पर मार्मिक रचना .... हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteमाँ बोली उनके साथ मुझे रखो मैं उन्हें दुलार दूँगी
ReplyDeleteसहला के जीवन, रंग, रस और संस्कार उपहार दूँगी
मेरी ममता और लोरियों का कर्ज चुकाओगे क्या
ओल्ड एज होम से वापस मुझे ले जाओगे क्या
bahut sunder prashan
ekdam darshnik kavita badhai
rachana
कविता जी बहुत ही ह्रदय स्पुर्शी कविता है हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआप सभी स्नेही जनों को धन्यवाद एवं आभार
ReplyDeletebahut shaandar kavita hai
ReplyDeleteधन्यवाद रहमान साहब
ReplyDeleteसमसामयिक विषय है हिंदी की दुर्दशा के लिए हम सब भी जिम्मेदार हैं हृदयश्पर्शी कविता है कविता की एक उत्कृष्ट कविता के लिए कविता को बधाई
ReplyDeletebahut sunder kavita ji ki kavita
ReplyDeleteबहुत बड़ा सवाल उठा दिया है अपने अंत में...पर जहाँ तक मेरा मानना है, हम सब जैसे लोग कभी अपनी इस माँ को मरने नहीं देंगे...और वो दिन भी दूर नहीं, जब इस माँ की दुर्दशा ख़तम होकर वह अपनी पुरानी समृद्ध अवस्था वापस हासिल कर लेंगी...|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...हार्दिक बधाई...|
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभव्यक्ति ।प्रशंसनीय, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteकमाल कटाक्ष
ReplyDeleteआप सभी को हार्दिक आभार।
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