रामेश्वर काम्बोज
‘हिमांशु’
कुछ लोग पहले तोलते हैं , फिर बोलते हैं। कुछ सिर्फ़ बोलते हैं,वह
सार्थक हो या निरर्थक , इससे उनका कुछ भी लेना-देना नहीं। वे फुँफकारते हैं, दुत्कारते
हैं; सुनते नहीं; क्योंकि उनके कान नहीं होते। कुछ और भी आगे होते हैं ,वे अपनी बात
का वज़न खो चुके होते हैं , इसलिए वे न तोलते
हैं, न बोलते हैं , वे सिर्फ़ भौंकते हैं। ऐसे लोग धन्य हैं; क्योंकि वे एक ही योनि
में दो-दो जन्मों का आनन्द ले लेते हैं। कोई
सुने न सुने , गुने न गुने । जो पैदा ही बोलने के लिए हुए हैं , तो उनको बोलना ही है।
इस तरह के बोलने वालों की श्रेणियाँ तय की जानी ज़रूरी हैं। गलती से अगर आपने फोन कर
दिया ,तो वे आपके कान गर्म होने तक (उनकी बातों से या फोन की गर्मी से) आपकी जान नहीं
छोड़ेंगे। अगर वे खुद फोन कर रहे हैं; तो अपनी बात आपके सामने पटककर बिदा हो जाएँगे।
कुछ कानून की
बात करते हैं ; लेकिन जब उन्हें मौका मिलता है , मर्यादा के पन्ने फ़ाडकर हवा में उछाल देते हैं। कुछ को जब मिर्गी का दौरा पड़ता है, तभी बोलते हैं । क्या बोलते
हैं ,इन्हें खुद भी पता नहीं। कुछ दिनों बाद ये सींग –पूँछ दबाकर गायब हो जाते हैं।जिह्वा की
मिर्गी के दौरे से पीड़ित इन लोगों के बारे में किसी कवि ने कहा है-
जिह्वा ऐसी बावरी , कह गई सरग पताल।
आपुन तो भीतर गई , जूती खात कपाल ।
अब खोंपड़ी जूती खाए या पुचकारी जाए , इनको फ़र्क नहीं पड़ता।इन बोलने
वालों में से कुछ ने दस्ताने पहन रखे हैं, धर्मनिरपेक्षता के ,बुद्धिजीवी के, मानवाधिकार
के । मानव अधिकार का मतलब किसी आम आदमी के अधिकार की चिन्ता से नहीं है। आम आदमी के
साथ जीना-मरना लगा ही रहता है।यही उसकी नियति है। इस आम आदमी को जो सरे –राह अचानक हलाक़ कर देता है, उसे न्याय मिलना चाहिए , उसे सज़ा नहीं
होनी चाहिए , उसके लिए आवाज़ उठानी चाहिए । उसके लिए लल्लू से लेकर बल्लू तक सभी गला
फ़ाड़ बहस करने लगते हैं।बेचारा आम आदमी तो प्राथमिकी लिखवाने से भी वंचित कर दिया जाता
है। दस्ताने पहनकर बात करने वाले लोगों के दस्ताने नहीं उतरवाइए । ऐसा करेंगे, तो इनके
खून –रंगे हाथ नज़र
आ जाएँगे। इनको बहुत से काम करने हैं । दुनिया को अहिंसा का सन्देश देना है,अखबारों
में नाम आना है, विवादों को हवा देनी है, हाय-हाय और मुर्दाबाद के नारे लगाने हैं ।
अगर इनका कोई सगा और बेकसूर मारा जाता ,तो इनकी ज़बान पर ताले लग जाते।जिनका कोई सगा
आतंकवाद की भेंट चढ़ा है, जिनका घर –बार और पूरा भविष्य बर्बाद हुआ है , उनसे
पूछा जाए कि फाँसी देना गलत है या सही ? करौन्दे की तो बात ही छोड़िए ,जिसको कभी झरबेरी
का काँटा भी न चुभा हो , उसके मुँह से साधु-महात्माओं जैसी बात अच्छी नहीं लगती। आम
जन की मौत या हत्या पर इन भौंकने वालों की आँखें नम नहीं होतीं। किसी क्रूरतम व्यक्ति
के मारे जाने पर इनका मानव-धर्म वाला ज़मीर
कैसे जाग उठता है ! इसके डी एन ए का परीक्षण होना चाहिए।
बीमार आदमी को दवाई दी जाती है , कुछ पथ्य ( परहेज़) भी बताया जाता
है । बोलने वालों को भी चाहिए वे सिर्फ़ भोंपू नहीं हैं ,ईश्वर ने उनको कान भी दिए हैं, जनमानस को भी समझें
और कुछ सुनना भी सीखें। यह उनको छूट है कि कोई उनके सगे सम्बन्धी को मारे ,तो चादर
ओढ़कर सो जाएँ । पुलिस को खबर न करें और न कोर्ट के चक्कर लगाएँ।क़ातिल पड़ोसी से प्रेम
जताने के लिए सीमा पर जाकर कैण्डिल जलाएँ, देश में सुरक्षा में तैनात जवान शहीद हो
जाएँ ,तो सहानुभूति के दो शब्द भी न कहें। हिंसा करने वाले की निन्दा न करें, बल्कि
उससे डरकर चुप रहें।
यह देश सबका है , लेकिन उनका नहीं है ,जो इस देश का कल्याण नहीं
सोचते। जो देश का कल्याण न सोचकर पूरी ताकत इसे कमज़ोर करने में लगाते हैं, जिनको अपना
घर भरने से ही फ़ुर्सत नहीं, जिनके पास अपने दाग धोने या उनको देखने का समय नहीं है,
वे भौंककर अपने फ़ेफ़ड़े कमज़ोर न करें। कुछ कहना है तो पहले तोल लें। कथ्य के साथ पथ्य
ज़रूरी है। अपनी बेहूदी बातों से , बचकानी हरक़तों से देश और समाज को कमज़ोर न करें ।
दो जून की रोटी जुटाने वाले का जीना हराम न करें , उसे जीने दें। उसे मज़हब की आग में
न झोंकें।इस देश का निर्माण बातूनी लोगों ने नहीं किया , कर्मशील लोगों ने किया है।
आग जहाँ लगती है , केवल उसी क्षेत्र को जलाती है, लेकिन बातों की आग पूरे समाज को तबाह
करती है। वाग्वीर घोड़े नहीं है , फिर भी इनको लगाम देना ज़रूरी है।
Ekdam sahi .... Baaton ki aag samaj ko tabah kar deti haI... Bahut hi sarthak lekh
ReplyDeleteबहुत सही।ऐसी तल्ख़ी हमारे दिल से कलम तक आनी ही चहिए।आपकी लेखनी को प्रणाम।
ReplyDeleteकथ्य और पथ्य के माध्यम से
ReplyDeleteआदरणीय आपने जिस तरह सही
तथ्य को अभिव्यक्ति दी है वह अत्यंत
सशक्त है और समाज के हित में बहुत
जरूरी भी। आपको सादर नमन ।
बहुत ही सुंदर, सशक्त एवं सार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteबातें चाहें तो फूल खिला दें, बातें चाहें तो आग लगा दें … सोच-समझ-तोल कर बोलने में ही सबकी भलाई है!
आपको एवं आपकी लेखनी को नमन !
~सादर
अनिता ललित
kathy aur tathy ke madhyam se samaj ke shubh chintak aur desh ke vikas , suraxa tatha usaka hit chahane vale swarthi varg ki apane apko nasht karake dusaron se vahvahi lutane ki giri hui mansikta ko dikha kar ajkal ki bagula bhakti ko ujagar kiya hai.desh ke karNdharon ke dimaaG ki nasen kholne ke liye aise lekhon ka prakashan hona desh aur usaki ikai samaj dono ke liye avashyak hai.bhai ji apko badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
एक-एक शब्द तथाकथित क्रूर ...अहिंसावादियों और धर्मनिरपेक्ष मानवताधिकार के झंडाबरदारों को आईना दिखाता है ....निःसंदेह ...
ReplyDelete"यह देश सबका है , लेकिन उनका नहीं है ,जो इस देश का कल्याण नहीं सोचते। जो देश का कल्याण न सोचकर पूरी ताकत इसे कमज़ोर लगाने में करते हैं, जिनको अपना घर भरने से ही फ़ुर्सत नहीं, जिनके पास अपने दाग धोने या उनको देखने का समय नहीं है, वे भौंककर अपने फ़ेफ़ड़े कमज़ोर न करें। कुछ कहना है तो पहले तोल लें। कथ्य के साथ पथ्य ज़रूरी है। अपनी बेहूदी बातों से , बचकानी हरक़तों से देश और समाज को कमज़ोर न करें । दो जून की रोटी जुटाने वाले का जीना हराम न करें , उसे जीने दें। उसे मज़हब की आग में न झोंकें।इस देश का निर्माण बातूनी लोगों ने नहीं किया , कर्मशील लोगों ने किया है.......बेहद दमदार ,प्रभावी !!
सादर नमन के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
यह लेख उन तथाकथित बुद्धिविलासियों की बुद्धिविलासिता पर करारा तमाचा है जो या तो निहित स्वार्थों की ख़ातिर या सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए मानवतावादी होने का ढोंग रचाने में राष्ट्रहित की ज़रा भी परवाह नहीं करते। कम्बोज महोदय की निर्भीक व सशक्त लेखनी को बारम्बार नमन। काश ! देश का मीडिया आपसे कुछ सीख ले पाता।
ReplyDeleteकरे वार ....कलम की पैनी धार ..... व्यंग्य की नोंक में ...एहसास तीखी सी चुभन का ...हर वाक्य चाबुक लगाए ढोंगियों को... आपकी कलम साबित करती है कि तलवार से अधिक ताकतवर कलम है | आपकी कलम को नमन ..
ReplyDeleteबहुत सही ज़बरदस्त लेख। आपकी प्रबल लेखनी को नमन।
ReplyDeleteआप ने इतना जबरद्स्त लेख लिख करारा बार किया है अपने को देश के हितेशी समझने वालों पर ।बहुत हिम्मत का काम है ।मगर जो ढीठ प्रकृती के प्राणी होते है उन्हें कुछ फर्क नही पड़ता बातों के किले खड़े करने की जगह कर्म शील होना कौन सिखाये उन्हें ।हर किसी की कलम में इतनी ताकत होनी ही चाहिये ।ताकि देश केलिये कुछ तो कर सकें ।ऐसी कलम और आप को सादर नमन ऐसी सशक्त रचना देते रहें ।समाज को राह दिखाने वाली ।
ReplyDeleteआप सबके आत्मीय प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत आभार ।
ReplyDeleteaise hi aashawadi bane rahen.....
ReplyDeleteआपने सच में समाज के ऐसे तथाकथित ठेकेदारों के मुँह पर एक करारा तमाचा मारते हुए उनको आईना भी दिखा दिया...कितने बदसूरत दीखते हैं ऐसे लोग...सीरत से...| आपका एक-एक शब्द बिलकुल सटीकता से वार करता है...| ऐसी सशक्त कलम को मेरा नमन...|
ReplyDelete