पथ के साथी

Sunday, June 28, 2015

चटकती है चट्टानें



1-रचना श्रीवास्तव
1
पर्वत का
वृक्षों से है प्रेम अटल
होतें है जुदा तो
सूखते हैं पेड़
टूटता है दिल पर्वत का
शायद इसीलिए
चटकती है चट्टानें
होता है भूस्खलन
-0-
2-सुनीता अग्रवाल
1-इच्छाएँ

इच्छाओ की कलम से
लिखी किताब जिंदगी की
भरती नही
-0-
2-भूख

भूख
बन जा इबादत
या की हवस
तृप्त न होती
-0-
3-कतरन
उनसे पूछिये
कतरनों का मोल
जिनके हिस्से आती हैं
उतरन केवल
-0-
4-मोमबत्तियाँ


हर हादसे के बाद

जल उठती है मोमबत्तियाँ

पर पिघला नही पाती

इंसानियत और न्याय की धमनियों में जमे

रक्त के थक्के को

हताश,बुझी मोमबत्तियाँ

करने लगती है इन्तजार

फिर किसी कली के मसले जाने का
-0-

9 comments:

  1. bahut khoob rachna ji! aapne parvton v vrikshon ke dard ko badi hi sunderta se darshaya hai...chattanon ki chatkan ke swar sunai de rahe hai .......naman ke saath -saath badhai is pyaari rachna ke liye.
    bahut badhiya sunita ji !sabhi rachnayen aaj ke samay ki sachchai se rubru karatee hai par "katran " lajvaab.............
    उनसे पूछिये
    कतरनों का मोल
    जिनके हिस्से आती हैं
    उतरन केवल । aap donon hi rachnakaaron ki lekhni ko naman!

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  2. rachana ji pahaDon ke dard ki abhivyakti karati xaNika bahut hi achhi likhi hai,sunita ji apake dvara rachi xaNikayen bhukh,kataran aur mom batiyan bahut hridayshparshi hain. rachana jiva sunita ji badhai.
    pushpa mehra.

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  3. रचना पहाड़ और पेड़ो के रिश्ते की सुन्दर भावाभिव्यक्ति इस्के जरिये इंसानी रिश्तो की अहमियत भी समझा दी आपने :) बधाई कम्बोज भैया मेरी क्षणिकाओ को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ।आदरणीय ज्योत्स्ना जी पुष्पा जी उत्साह बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार :)

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  4. बहुत सुन्दर हावभावों को नुमायाँ करती क्षणिकाएँ! आप सभी रचना कारों को हार्दिक बधाई!

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  5. इच्छाओ की कलम से
    लिखी किताब जिंदगी की
    भरती नही
    yh vishesh lhaa sbhi utkrisht rchnaa

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  6. पर्वतों का टूटता दिल ...,किताब, कतरन और मोमबत्तियाँ..क्या कहिए ..थोड़े में बहुत कुछ कहती अनुपम प्रस्तुति है !
    रचना जी एवं सुनीता अग्रवाल जी को हार्दिक बधाई !

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  7. इच्छाओ की कलम से
    लिखी किताब जिंदगी की
    भरती नही


    हर हादसे के बाद

    जल उठती है मोमबत्तियाँ

    पर पिघला नही पाती

    इंसानियत और न्याय की धमनियों में जमे

    रक्त के थक्के को

    हताश,बुझी मोमबत्तियाँ

    करने लगती है इन्तजार

    फिर किसी कली के मसले जाने का।

    bahut gahan abhivaykti hardik badhai...

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  8. बहुत सुन्दर हावभावों को नुमायाँ करती क्षणिकाएँ! आप सभी रचना कारों को हार्दिक बधाई!

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  9. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ...सच्चाई से सामना कराती हुई...| आप दोनों को हार्दिक बधाई...|

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