ख़ुशनसीब
नैनीताल: अमित अग्रवाल
( सितम्बर 2012)
1
ये धुंध नहीं
बादल नहीं
बारिश नहीं
परमात्मा बरसता
है..
लगाओ टकटकी
आसमान पर
खोल कर बंद
दरवाज़े
अपने दिल के
और तुम भर जाओगे,
जाओगे शोर-ओ-गुल
में
नज़रंदाज़ कर इसे
बाज़ार-ओ-दूकान
के,
और तुम ख़ाली रह
जाओगे.
2
मेघ बरसता है
छतरियाँ रंगीन
दिल भी बरसता है
पर रंग कहाँ?
3
बारिश बहुत
प्यारी
ख़ामोश बरस गई
न टप-टप
न झर-झर
न शोर
न आडम्बर!
4
धरती की झील
आसमान पर बादल
मिलने को तरसते
इस हसरत को बस
सपना ही समझते.
बूँदें बरसतीं
अनवरत
कितनी सहजता से
दोनों को मिलातीं
इक सपने को
हक़ीक़त बनातीं!
5
मंदिरों के घंटे,
अजान की आवाज़
ख़ामोश खड़े चर्च
गुरुद्वारे का
प्रसाद..
कितने ख़ुशनसीब
हो तुम
नैनीताल
ख़ूबसूरती के
अलावा भी
कितना कुछ है
तुम्हारे पास!
-0-
आदरणीय श्री कांबोज साहब,
ReplyDeleteमेरी रचनाओं को 'सहज-साहित्य' पोर्टल पर स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
आभारी हूँ!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सभी कविताएँ सुंदर ! चौथी बहुत प्यारी लगी !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई अमित अग्रवाल जी !
~सादर
अनिता ललित
बहुत मनोहारी कविताएं!
ReplyDeleteअमित अग्रवाल जी बहुत-बहुत बधाई!
बहुत सुन्दर , सरस कविताएँ !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई अमित अग्रवाल जी !
बहुत मनोरम रचनाएँ...हार्दिक बधाई...
ReplyDeletekhoobsurat rachnao ke liye badhai amit ji .
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