कुण्डलियाँ : डॉ.ज्योत्स्ना
शर्मा
1
नए स्वप्न ले नयन में ,अधरों पर मुस्कान ,
समय-सखा फिर आ गया
,पहन नवल परिधान ।
पहन नवल परिधान
, बजी है शहनाई -सी ,
तुहिन आवरण ओढ़ ,
धरा है शरमाई- सी ।
किरण-करों से कौन
, भला घूँघट पट खोले ,
धरा नतमुखी मौन
, मुदित है नए स्वप्न ले ।।
2
दिल को लगती कह गया
, बातें बीता साल ,
सीख समय से पाठ कुछ
,बनना एक मिसाल ।
बनना एक मिसाल ,
सृजन की हो तैयारी ,
करें अमंगल दूर
, रहें अरिदल पर भारी ।
सरस ,सुगन्धित वात
,मुदित हो सारी जगती ,
मन से मन की बात
,करें प्रिय दिल को लगती ।।
3
चंदा -सा सूरज हुआ
,बदला- बदला रूप ,
सज्जन के मन -सी
हुई ,सुखद सुहानी धूप ।
सुखद सुहानी धूप
,शीत में लगती प्यारी ,
नयन तकें अब राह,
भेंट है प्रभु की न्यारी । ३
तेजोमय का तेज ,लगे
जब कुछ मंदा -सा ,
समझ समय का फेर
,न हो सूरज चंदा- सा ।।
4
कल सपनों ने नयन
से ,की कुछ ऐसे बात ,
कहते सुनते ही सखी
, बीती सारी रात ।
बीती सारी रात ,
सुनी गाथाएँ बीती ,
पढ़ा बहुत इतिहास
, जंग सब कैसे जीती ।
सीख समय से पाठ
,रचा सुख किन जतनों ने ,
उड़ा दई फिर नींद
,नयन से कल सपनों ने ।।
5
जागेगा भारत अभी
,पूरा है विश्वास ,
नित्य सुबह सूरज
कहे ,रहना नहीं उदास ।
रहना नहीं उदास
,सृजन की बातें होंगी ,
कर में कलम-किताब
,सुलभ सौगातें होंगी
करे दीप उजियार
,अँधेरा डर भागेगा ,
बहुत सो लिया आज
,सुनो भारत जागेगा ।।
6
बहुरंगी दुनिया भले , रंग भा गए तीन ,
बस केसरिया ,सित
,हरित ,रहें वन्दना लीन ।
रहें वन्दना लीन
,सीख लें उनसे सारी ,
ओज , शूरता , त्याग
,शान्ति हो सबसे प्यारी ।
धरा करे शृंगार
, वीर ही रस हो अंगी ,
नस-नस में संचार
, भले दुनिया बहुरंगी ।।
7
बोलें जिनके कर्म
ही ,ओज भरी आवाज़ ,
ऐसे दीपित से रतन
,जनना जननी आज ।
जनना जननी आज , सुता
झाँसी की रानी ,
वीर शिवा सम पुत्र
, भगत से कुछ बलिदानी ।
कुछ बिस्मिल, आज़ाद
,धर्म से देश न तोलें ,
गाँधी और सुभाष
, भारती जय-जय बोलें ।।
8
लिख देंगे नव गीत
हम ,भरकर जोश , उमंग ,
गूँज उठे हुंकार
अब , विजय नाद के संग ।
विजय नाद के संग
,सहेजें गौरव अपना ,
करना है साकार ,
मात का सुन्दर सपना ।
तूफानों का वीर
, पलटकर रुख रख देंगे ,
स्वर्णमयी तकदीर
, वतन की हम लिख देंगे ।।
-0-
nav urja aur nav srejan ka jvar bhari kundaliyan nav varsh mein soton ko jagane vali hain .is sunder lekhan hetu apako badhai.mere haiku ko sthan - sthan par prastut karane ke liye apako dhanyavad. naye sal ki anek shubh kamanayen.
ReplyDeletepushpa mehra .
विजय नाद के संग ,सहेजें गौरव अपना ,
ReplyDeleteकरना है साकार , मात का सुन्दर सपना ।
तूफानों का वीर , पलटकर रुख रख देंगे ,
स्वर्णमयी तकदीर , वतन की हम लिख देंगे ।।
-bahut khoob likha hai aapne jyotsna ji....aashavaad ki dhun samete....sunder saarthak tatha desh prem chalkaati prernadaaye kavita
...bahu - bahut badhai.
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार आदरणीया पुष्पा मेहरा जी , ज्योत्स्ना प्रदीप जी एवं रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !
ReplyDeleteयहाँ स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार भैया जी !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
आशा और विश्वास भरे उम्दा सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई ज्योत्स्ना जी!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत कुण्डलियाँ। सार्थक और सामयिक।
ReplyDeleteसुंदर...नववर्ष की बधाई और शुभकामनाएं..
ReplyDeleteBahut khub likha hai...
ReplyDeleteWah Jyotsana, bahut hi sundar !!
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ...हार्दिक बधाई...
ReplyDelete