ज्योत्स्ना प्रदीप
बेशकीमती
अक्षर हीरे-मोती
ख़त तुम्हारा ।
ख़त तुम्हारा ।
भारत में हाइकु की उजली भोर की किरणों की प्रथम
पंक्ति में डॉ.शैल रस्तोगी मुस्कान बिखेर रही हैं। कितने ही सावन व पतझर की इस
साक्षी ने जीवन की करौंदे -सी खट्टी व शहतूत -सी मीठी
अनुभूतियों को अपनी रचनाओं मे सहज ही ढाला है । साहित्य के प्रति वह सदैव निष्ठवान्
रही हैं ,आज से दस
साल पहले जब मैने उनका यह हाइकु पढ़ा था, तो मै विस्मयाभिभूत रह गई थी ।
प्रिय का लिखा कोई भी शब्द प्रिया के लिए अमूल्य है
.....उसे अन्य रत्न की चाह नहीं । उसके तन-मन का सौन्दर्य इन्हीं बेशकीमती शब्दों के रत्नों से दमक उठा .....इस अमूल्य हाइकु ने अल्प में व्यापक
भावों को सहेजा है । अनुभूति और
अभिव्यक्ति ,दोनों ही पक्षों में यह सशक्त है ।यह गहन
प्रेम का कलात्मक चित्रांकन है ।
नन्हे से हाइकु को इन्होने सम्प्रेषणीयता की छुअन,बोधगम्य
भाषा के आलिंगन तथा उर्दू के मीठे शब्दों के
चुम्बन के उपहार देकर बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया है
। इस वात्सल्यमयी धात्री ने हाइकु के सर्वांगपूर्ण भविष्य का बड़ा ही निराला निर्माण किया है । प्रेम के अभाव मे काव्याभिव्यक्ति की पूर्ण
प्राप्ति नहीं हो सकती .......यह भी इन्होंने प्रमाणित किया है ।संवेदनात्मक लय की यह शब्द –साधना पाठक
को प्रभावित किए बिना नहीं रहती।
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ज्योत्स्ना जी, धन्यवाद आपका| प्रेमानुभूति की पराकाष्ठा है इस हाइकु मोती में | रचनाकार ने केवल १७ अनमोल शब्दों में प्रेम को एक नया और सूक्ष्म रूप दिया है |
ReplyDeleteशब्दों की इस कलाकृति को हम तक पहुंचाने के लिए आभार एवं धन्यवाद आदरणीय रामेश्वर जी |
बहुत प्रभावी प्रस्तुति ......हाइकु की रचयिता डॉ. शैल रस्तोगी एवं प्रस्तुत हाइकु को परिभाषित , प्रस्फुटित करती ज्योत्स्ना प्रदीप जी के प्रति हृदय से बधाईयाँ !
ReplyDeleteवास्तव में दोनों ने ही जीवन की करौंदे सी खट्टी एवं शहतूत सी मीठी अनुभूतियों को इतने अनूठे अंदाज़ में प्रस्तुत किया है कि मन अभिभूत हो उठे ...सचमुच प्रेम से लबालब ...अनुपम है .." ख़त तुम्हारा " !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
prem ke ahsas ke anokhe saundary ko niharata- vyakt karata haiku aur jyotsna ji dvara usaka nirupan dono hi anupam hain . badhai.
ReplyDeletepushpa mehra .
बेशकीमती
ReplyDeleteअक्षर हीरे-मोती
ख़त तुम्हारा …
अद्भुत ! अद्भुत !! अद्भुत !!!
ज्योत्सना, शैल जी के हाइकू अद्भुत ही हैं, उनके कुछ और हाइकू देखिये जो मैंने जब से पढ़े हैं आज तक मन से दूर नहीं हुए। हाइकू की बात होती है तो याद आ ही जाते हैं और आपकी प्रस्तुति भी बस लाजवाब है !
रात लेटी है / अँधेरा बिछाकर / ओढे़ चाँदनी
रही कुतर / वक्त की गिलहरी / डैने शाम के
अंधियारे की / फलियां छलती है / कोने में भोर
.himanshu ji ne .mujhe yahan sthaan dekar aur shashiji ,jyotsnaji tatha pushpa ji ne prshansa kar ke mera bahut utsaahvardhan kiya hai uske liye aap sabhi ka dil se abhaar.
ReplyDeleteशैल जी का यह हाइकु यथार्थ का उचत्तम वर्णन है।....लाजवाब है ....और आपकी इसके प्रति अभिव्यक्ति बहुत ही पावन और नवीन है ज्योत्सना जी।.....इतने काम शब्दों से आपने पूर्ण भावों को विस्तृत करके इसकी चमक को और ज़्यादा उजागर कर दिया है।..
ReplyDelete..नन्हे से हाइकु को इन्होने सम्प्रेषणीयता की छुअन,बोधगम्य भाषा के आलिंगन तथा उर्दू के मीठे शब्दों के चुम्बन के उपहार देकर बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया है ।
इन पंक्तियों को पढ़ते ही मै आत्मविभोर हो गयी ज्योत्सना जी ।...क्या कर डाला आपने ज्योत्सना जी।....बहुत खूब ...बधाई
bahut bahut badhai...
ReplyDeleteक्या बात है...अद्भुत...| बहुत बधाई...|
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