क्षणिकाएँ
ज्योत्स्ना प्रदीप
1-घाव एक शब्द का
हमारे अपने ही...
एक शब्द से भी,
घाव दे जाते है।
उन्हे पता भी नहीं ,
वो जन्मों का अलगाव दे जाते है।
-0-
2- अन्तर
नागफनी..
काँटों से भरी ...पर सीधी,
उसे छूने से हर कोई कतराता है।
वो छुई -मुई....
हया से सिमटी,
तभी तो ,जो चाहे उसे
यूँ ही छू जाता है।
-0-
3- संवेदना
काँटों में भ़ी है संवेदना
छू न लेना ,
रक्त बहा देंगे।
आता है इन्हें भी ...
तेरा जिस्म भेदना।
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घाव एक शब्द का
ReplyDeleteहमारे अपने ही...
एक शब्द से भी,
घाव दे जाते है।
उन्हे पता भी नहीं ,
वो जन्मों का अलगाव दे जाते है।
वाह वाह ज्योत्सना प्रदीप जी बहुत खूबसूरत क्षणिकायेँ! धन्यवाद हिमांशु भाई इतनी स्तरीय रचनाएँ पढ़वाने के लिये !
डॉ सरस्वती माथुर
मर्मस्पर्शी संवेदनशील रचना है अतिसुन्दर
Deleteबहुत प्रभावी , मर्मस्पर्शी क्षणिकाएँ हैं ...संवेदनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति ..हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी !
ReplyDeleteरचनाएं बहुत सुन्दर और विचारोत्तेजक हैं. बधाई. - सुरेन्द्र वर्मा.
ReplyDeletebohot hi uttam rachnaye hai aapki jyotsana ji ...bhaav vibhor kar diya...bht bht badhai aapko...
ReplyDeleteहमारे अपने ही...
ReplyDeleteएक शब्द से भी,
घाव दे जाते है।
उन्हे पता भी नहीं ,
वो जन्मों का अलगाव दे जाते है।
एक शब्द...एक छोटा सा कडवा शब्द...और मानो ज़हर का प्याला...| अपनों के द्वारा पिलाए गए शब्दों के कडवे घूँट ज़िंदगी भर के लिए कष्ट दे जाते हैं...| बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ...| ज्योत्सना जी को हार्दिक बधाई...|
aap sabhi ka aabhaar ..mera hausla badhane ke liye .himanshu ji hamesha ki tarah mujhe bhi yahaan sthaan dekar mera hausla badhate rahe hai ...shukriya ...aap sabhi ka eak baar phir.
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