फ़ेसबुक पर अब कुछ लोग बेशर्मी पर उतर आए है । मेरे संग्रह की लघुकथा , जो लम्बे अर्से से लघुकथा जगत में चर्चित रही है , किन्ही अनिल गुप्ता जी ने अपनी फ़ेसबुक पर चिपका ली । तारीफ़ भी बटोर ली । भाई गिरीश पंकज जी ने सूचना दी तो मैं दंग रह गया । मेरे संग्रह के अलावा यह अन्य स्थानों पर भी छपी है ।
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अनिल गुप्ता जी आपने खूब बधाई लूट ली मेरी लघुकथा ;ऊँचाई ' अपनी पोस्ट पर लगाकर । मेरा नाम देने में आपको शर्म आती है , तो बधाई लूटने में भी शर्म कीजिए । यह मेरे संग्रह-असभ्य नगर ( 1998)की प्रथम लघुकथा है । हिन्दी लघुकथा-जगत इससे परिचित है। आप इसको अविलम्ब हटाइए ।
http://laghukatha.com/himanshu-04.htm
ऊपर दी गई हमारी वेब साइट पर यह 2007 से लगी है और नीचे गद्यकोश में भी शामिल है
http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%8A%E0%A4%81%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%88_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%9C_%E2%80%98%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%81%E2%80%99
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अन्तिम वाक्य इन्होंने जोड़कर अपना सन्तरूप दिखा दिया। आप भी देखिए-
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अनिल गुप्ता जी आपने खूब बधाई लूट ली मेरी लघुकथा ;ऊँचाई ' अपनी पोस्ट पर लगाकर । मेरा नाम देने में आपको शर्म आती है , तो बधाई लूटने में भी शर्म कीजिए । यह मेरे संग्रह-असभ्य नगर ( 1998)की प्रथम लघुकथा है । हिन्दी लघुकथा-जगत इससे परिचित है। आप इसको अविलम्ब हटाइए ।
http://laghukatha.com/himanshu-04.htm
ऊपर दी गई हमारी वेब साइट पर यह 2007 से लगी है और नीचे गद्यकोश में भी शामिल है
http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%8A%E0%A4%81%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%88_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%9C_%E2%80%98%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%81%E2%80%99
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अन्तिम वाक्य इन्होंने जोड़कर अपना सन्तरूप दिखा दिया। आप भी देखिए-
Anil Gupta <https://www.facebook.com/anilguptarsd?fref=nf>
15 नवंबर को 10:45 अपराह्न बजे <https://www.facebook.com/anilguptarsd/posts/755139264521519> · Meerut <https://www.facebook.com/pages/Meerut-India/167646613267572> ·
पिताजी के
अचानक आ धमकने से
पत्नी तमतमा
उठी....“लगता है,
बूढ़े
को पैसों की
ज़रूरत आ पड़ीहै,
वर्ना यहाँ
कौन आने वाला था... अपने पेट
का गड्ढ़ा
भरता नहीं, घरवालों का
कहाँ से
भरोगे?”
मैं नज़रें
बचाकर दूसरी ओर देखनेलगा।
पिताजी नल
पर हाथ-मुँह धोकर सफ़र की थकान दूर कर रहे थे। इस बार मेरा हाथ कुछ ज्यादा ही तंग
हो गया। बड़े बेटे का जूता फट चुका है।वह स्कूल जाते वक्त रोज भुनभुनाता है।पत्नी
के इलाज के लिए पूरी दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकीं। बाबूजी को भी अभी आना था। घर में
बोझिल चुप्पी पसरी हुई थी।खाना खा चुकने पर पिताजी ने मुझे पास बैठने का इशारा
किया।मैं शंकित था कि कोई आर्थिक समस्या लेकर आये होंगे....
पिताजी
कुर्सी पर उठ कर बैठ गए। एकदम
बेफिक्र...!!!
“सुनो”कहकर उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।
मैं सांस रोक कर उनके मुँह की ओर देखने लगा। रोम-रोम कान बनकर अगला वाक्य सुनने के
लिए चौकन्ना था। वे बोले... “खेती के काम में घड़ी भर भी फुर्सत नहीं मिलती।इस बखत काम का जोर
है।रात की गाड़ी से वापस जाऊँगा। तीन महीने से तुम्हारी कोई चिट्ठी तक नहीं
मिली... जब तुम परेशान होते हो, तभी ऐसा करते हो। उन्होंने जेब से सौ-सौ के पचास नोट निकालकर मेरी तरफ
बढ़ा दिए, “रख लो।
तुम्हारे काम आएंगे। धान की फसल अच्छी हो गई थी। घर में कोई दिक्कत नहीं है तुम
बहुत कमजोर लग रहे हो।ढंग से खाया-पिया करो। बहू का भी ध्यान रखो। मैं कुछ नहींबोल
पाया। शब्द जैसे मेरे हलक में फंस कर रह गये हों।मैं कुछ कहता इससे पूर्व ही
पिताजी ने प्यार से डांटा...“ले लो,बहुत बड़े
हो गये हो क्या ..?”
“नहीं
तो।" मैंने हाथ बढ़ाया। पिताजी ने नोट मेरी हथेली पर रख दिए। बरसों पहले
पिताजी मुझे स्कूल भेजने के लिए इसी तरह हथेली पर अठन्नी टिका देते थे, पर तब मेरी नज़रें आजकी तरह झुकी नहीं
होती थीं।
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दोस्तों एक बात हमेशा ध्यान रखे... माँ बाप अपने बच्चो पर बोझ हो सकते
हैं बच्चे उन पर बोझ कभी नही होते है।
Bahut hi sharmnak baat hai ye to...
ReplyDeleteचोरी की भर्त्सना जरूरी है लेकिन ऐसा होता है। वर्षों पहले कुछ लोगों ने मेरी कुछ रचनाएं ज्यों की त्यों अपने नाम से छपवाई। तब मुझे बुरा तो लगा लेकिन यह भी महसूस हुआ कि अब मैं अच्छा लिखने लगा हूँ। सूर्य की रोशनी चुराकर कोई सूर्य नहीं बन सकता है। अनिल गुप्त खुद ही लुप्त हो जाएंगे।
ReplyDeleteअपना कुछ लिखते तो मन को खुशी मिलती |किसी और की कहानी से प्रसिद्धि प्राप्त करके तो ग्लानि ही मिलेगी |
ReplyDeleteअपनी कहानी लिखकर जो प्रसन्नता होती और मन में ग्लानि भी न होती तो मन ज्यादा प्रसन्न होता | यह बात उन्हें समझ लेनी चाहिए |
ReplyDeleteDukhad aur sharmnaak.
ReplyDeleteइतनी घटिया हरकत करते हुए शर्म आनी चाहिए ऐसे बेहया लोगों को!
ReplyDeleteयह अनुचित है, अनैतिक है और अपराध भी..... डॉ. कुंवर दिनेश, शिमला
ReplyDeleteअनिल गुप्ता जी ने ये बहुत ही शर्मनाक हरकत की है इसकी जीतनी निंदा की जाये कम है .....
ReplyDeleteकिसी के सृजन की चोरी अपराध है लेकिन लोग ऐसा कर लेते है, यह देख कर आश्चर्य होता है
ReplyDeleteIs par kadi pratikirya honi chahiye..samagra sahitye jagat se
ReplyDeleteबहुत निंदनीय कृत्य !
ReplyDeleteare!!!!!!
ReplyDeleteऐसे लोगों को लगता है उनकी चोरी कभी पकड़ी नहीं जाएगी...| तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले ऐसे लोगों को अपनी करनी पर शर्म आनी चाहिए...| वैसे फेसबुक की दुनिया में ऐसा बहुत लोग करते हैं...| कई महीनो पहले खुद को पत्रकार जताने वाले एक सज्जन मेरे स्टेटस हर बार चुरा कर अपने नाम से चिपका देते थे, और मज़े की बात...वो मेरी फ्रेंड्स लिस्ट में शामिल थे, पर उनको ज़रा भी डर नहीं था कि हम खुद देख सकते हैं कभी...और हुआ भी यही था...|
ReplyDeleteबहुत शर्मनाक बात है. क्या इतनी निंदा के बात तथाकथित लेखक को सचमुच शर्म आई है? मुझे शक ही है.पाठकों को तय करना चाहिए कि ऐसे लोगों का क्या इलाज है.- सुरेन्द्र वर्मा
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी... पर बहुत अफ़सोस कि ऐसे भी लोग हैं जो किसी की भी अच्छी रचनाओं को अपने नाम के साथ चस्पा करने में गुरेज नहीं करते .. शर्मनाक
ReplyDeleteऐसे बहुत से व्यक्तित्व मिल जाते हैं जो दूसरों की रचना चोरी कर अपना कह कर प्रशंसा पाना चाहते हैं. शोहरत पाने की चाह और मानसिकता कितना गलत करवा देती है. कथा इन्हें पसंद आई तो शेयर करते साथ ही लेखक का नाम डाल देते. किसी और की रचना अपने नाम से देना न सिर्फ अनुचित है बल्कि अपराध भी है. आये दिन ऐसा हो रहा है और बहुत बार तो पता भी नहीं चलता है.
ReplyDeleteफेस बुक पर रचना चोरी की घटनाएं आये दिन होती रहती है इस अपराध को रोकने के लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए
ReplyDeletesharmnak harkat ... facebook aur blog me ye aam samsya ban gyi hai ..pata nhi kaise inka imaan gawahi deta ..
ReplyDeleteयह बहुत ही अनुचित व निंदनीय कृत्य है।
ReplyDeletebharmaar hainऐसो की भैया ..दुःख तो होता है ..घोर निंदा वह भी सार्वजानिक निंदा होनी चाहिए ऐसो की ...सादर नमस्ते भैया
ReplyDelete
ReplyDeleteआपकी यह कहानी तो मैंने बहुत पहले पढ़ी है और कई बार पढ़ी है।
एकदम सही कहा जेन्नी जी आपने शोहरत पाने की चाह और मानसिकता इंसान से गलती करवा देती है, इस दुर्बलता पर ही तो विजय पाने की जरुरत है
फ़ेस बुक पर अनिल गुप्ता जी की स्वीकारोक्ति-
ReplyDeleteAnil Gupta भाई रामेश्वर जी,
सबसे पहले तो क्षमा याचना कि आपकी अनुमति के बिना आपकी रचना पोस्ट की.वास्तव में जिस दिन मैंने ये रचना पोस्ट की थी उसी दिन नेट पर मैंने इसे पढ़ा और मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं इसे औरों के साथ साझा करने का लोभ का संवरण नहीं कर पाया.संभवतः जब मैंने १५ नवम्बर को इसे पढ़ा था तो पोस्ट के साथ आपका नाम नहीं था अन्यथा मैं इसे आपके नाम के साथ ही शेयर करता.ये रचना मेरी है ऐसा कोई क्लेम मैंने नहीं किया था वैसे भी हमारी संस्कृति में "आ नो भद्रा: कृत्वो यन्तु विश्वतः" का उद्घोष किया गया है.और किसी अच्छी रचना को, जो सार्वजनिक रूप से इंटरनेट पर मौजूद थी अन्य लोगों तक पहुँचाने और उसके अच्छे सन्देश को प्रसारित करके यदि मैंने कोई अपराध किया है तो मै अपराधी हूँ.और क्षमाप्रार्थी हूँ.आपने जो आक्षेप मुझ पर जड़ दिए हैं उन्हें में इस हद तक स्वीकार करता हूँ कि इस रचना को पोस्ट करने के पीछे मेरा कोई इरादा इसका श्रेय लेने का नहीं था.इसका श्रेय सब आपको ही है कि आपने इतनी सुन्दर और मर्मान्तक रचना की है.आपकी रचनाधर्मिता को मेरा नमन.