1-ज्योत्स्ना
प्रदीप
अँधेरा
नेत्रहीन तो था ही
पर जब कभी गूँगा, बहरा होता है,
रौशनी को दर्द गहरा होता है।
कुरेदती है वो
दिल उसका जब कभी,
मिट जाता है बिन कहे- सुने
जबकि
हौसलों का हर तरफ पहरा होता
है।
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2-अपनत्व
कुछ समय बाद वही जम जाता है।
एक कवच बन ,
वही थम जाता है।
एक बूँद भी जानती है
भाव अपनत्व का।
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3-हौसला
देखी तो होगी
तुमने आँधी,
आँखें बंद कर लेते होंगे।
मगर
उसका हौसला तो देखो
वो अपनी बाज़ुओ में
लेकर चलती है
एक विनाश ही नहीं
एक नव -सृजन भी।
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2- प्यासा पथिक
मीलों के
पत्थर गिनते हुए बीते पहर,
आँखें अब
तक भी सोई नहीं।
एक भी धड़कन
ऐसी नहीं जो,
स्मृतियों
में तेरी कभी खोई नहीं ।
पल–पल गूँथती रही सिसकियाँ आँखें,
परन्तु पलकें मैंने अभी भिगोई
नहीं।
जीवन की कहानी कटु होती गई,
जीवन की कहानी कटु होती गई,
परन्तु आशा मैंने अभी डुबोई
नहीं।
प्यासा पथिक
बन गहन रातों
को,
अँजुरियाँ तुमने कभी सँजोई नहीं।
झूठ हैं ये
प्रणय की लड़ियाँ सपनीली,
यथार्थ में, तुमने कभी पिरोई नहीं।
अंकुरण हो
न हो, तुम प्रस्फुटन
चाहते हो,
कैसे हो ? कतारें तुमने कभी बोई नहीं।
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दर्शनशास्त्र विभाग ,हे०न०ब०गढ़वाल
विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढवाल, उत्तराखण्ड
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3-रेनू सिंह
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3-रेनू सिंह
उन
मासूम सी आँखों में,
जाने
कितने सपने थे,कितने अपने थे।
वो जो हर बात पर मुस्कुराकर,
शरमा कर लाड दिखाया करती थी।
मेरी प्यार- भरी एक आवाज़ पर,
घबरा कर भाग जाया करती थी।
वक़्त
की उस भागती दौड़ में,
जाने
कहाँ उसकी नादानी खो गयी।
पलक
झपकते ही सब बदला और,
मेरी गुडिया
सयानी हो गयी।
आज उसके मन में नए अरमान।
सपने,नई
उम्मीद जग रही है।
सवाँरने में उसकी वो दुनिया मुझे,
अपनी जिंदगी बेगानी लग रही है।
पलकों
पे कुछ आँसू छोड़ जाएगी,
हर
जगह अपनी निशानी छोड़ जाएगी।
मेरे
आँगन को सूना कर बेटी
मेरे
दिल में अपनी कहानी छोड़ जाएगी..........
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( सभी चित्र गूगल से साभार)
'गहरा दर्द' , अपनत्व' और 'हौंसला' बहुत गहरे भाव लिए अनुपम क्षणिकाएँ हैं ज्योत्स्ना जी ...हार्दिक बधाई ,
ReplyDeleteअंकुरण हो न हो, तुम प्रस्फुटन चाहते हो,
कैसे हो ? कतारें तुमने कभी बोई नहीं।....बहुत खूब डॉ. कविता भट्ट जी बधाई !
मेरी गुड़िया सयानी ... बहुत प्यारी कविता रेणु जी ..वंदन अभिनन्दन !
बहुत-बहुत-बहुत.... बहुत ही भावपूर्ण रचनाएँ।
ReplyDeleteज्योत्स्ना प्रदीप जी, कविता भट्ट जी, रेणु जी.... इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए ह्रदय से आपको बधाई।
~सादर
अनिता ललित
वाह ज्योत्स्ना जी , तीनों रचनाएं अच्छी लगीं किन्तु " हौंसला " सचमुच बहट गहरी अभिव्यक्ति है | बधाई आपको |
ReplyDeleteरेणु जी , बेटी के घर छोड़ने का दर्द बहुत सुन्दर शब्दों मे उकेरा है आपने | और प्यासा पथिक में कविता जी के भाव आशाओं से भरे हैं | आप दोनों को बधाई |
ReplyDeleteउसका हौसला तो देखो
ReplyDeleteवो अपनी बाज़ुओ में
लेकर चलती है
एक विनाश ही नहीं
एक नव -सृजन भी।
जीवन की कहानी कटु होती गई,
परन्तु आशा मैंने अभी डुबोई नहीं।........
ज्योत्सना जी, कविता जी बहुत सकारात्मक भाव, बधाई!
ज्योत्स्ना जी, डॉ. कविता भट्ट, और रेणु जी - आप सभी को अनुपम सृजन के लिए हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteaap sabhi snehijanon ko hardik dhanyavad
DeleteDr. Kavita Bhatt
Srinagar Garhwal Uttarakhand
ज्योत्सना जी, बहुत गहरे भाव हैं आपकी क्षणिकाओं में...बहुत बधाई...|
ReplyDeleteअंकुरण हो न हो, तुम प्रस्फुटन चाहते हो,
कैसे हो ? कतारें तुमने कभी बोई नहीं।
कविता जी, बहुत बढ़िया...| बधाई...|
रेणू जी, बहुत मर्मस्पर्शी है आपकी कविता...हार्दिक बधाई...|
kavita ji, renu ji aap logo ke rachnaye dard tatha ,yatharth tatha karmo ke prati sajag karne ke bahut sunder udahran ....badhai aap dono ko.
ReplyDeletehimanshu ji ko sadar naman ke saath aabhaar, mere bhaavo ko yahan sthaan dene ke liye ....aur aap sabhi ka ,protsahit kar ,in kshno ko taaza karne ke liye..
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