पथ के साथी

Sunday, June 8, 2014

कविता का इन्तजार


 कमला निखुर्पा

कविता कहाँ हो तुम ?
पता है  तुम्हे ?
कितनी अकेली हो गई हूँ मैं तुम्हारे बगैर .
आओ ना ...

कलम कब से तुम्हारे इन्जार में सूख रही है और मैं भी ...
ये नीरस दिनचर्या और ये मन पर मनों बोझ तनाव का ..
हर रोज गहरे अँधेरे कुंए में धकेलते जाते हैं ..
आओ ..उदासी के गह्वर से निकाल , कल्पना के गगन की सैर कराओ ना ...

ये शहर, ये कोलाहल, धुआँ उगलती ये चिमनियाँ
हर रोज दम घोट रही हैं
आओ .. भावों की बयार बहा जीवन शीतल कर जाओ ना .....

देखो वो डायरी , धूल से सनी, सोई पड़ी है कब से 
शब्दों के सितारों से सजा उसे जगाओ ना ..
आओ छंदों की पायल पहन 
गुंजा दो मन का सूना आँगन 

कि कलम भी नाचे
भावना भी बहे
कल्पना के पंख सैर कराएँ त्रिभुवन की
कविता अब आ भी जाओ
मैं जोह रही हूँ बाट तुम्हारी
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7 comments:

  1. कविता रूठी क्यों है ! इसकी रचना में सुकून है !
    मनोव्यथा का सटीक चित्रण ~

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  2. कटु यथार्थ से संतप्त कोमल भावनाओं की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...हार्दिक बधाई कमला जी !!

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. बहुत ही भावपूर्ण कविता हार्दिक बधााई कमला जी।

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  4. bahut achcha mam, jab rachanatmak man bojhil ho tab ye hi bhav aate hain.
    Dr. Kavita Bhatt

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  5. कमला जी की इस सुन्दर भावभीनी कविता को साझा करने के लिए भाईसाहब आपका सादर धन्यवाद

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  6. बहुत अलग सी...बहुत प्यारी कविता...हार्दिक बधाई...|

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