डॉ. कविता भट्ट
(दर्शनशास्त्र
विभाग ,हेमवती नन्दन बहुगुणा गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर
गढवाल,उत्तराखण्ड )
1-एक भोर रिक्शेवाले की
एक भोर रिक्शेवाले की–
पीड़ाओं के लिए जब ठहरी थी,
भोर के तारे के उगते ही,
पगली सी मटकती कहाँ चली थी ?
इसी भोर की आहट को सुनते ही,
खींचने को बोझ करवट धीरे से बदली थी।
रात, रिक्शा
सड़क के कोने लगा,
धीरे सी चुभती कराह एक निकली थी।
शायद किसी ने भी न सुनी हो,
जो धनिकों के कोलाहल में मचली थी।
पाँच रुपया हाथ में ही रह गया,
लोकतन्त्र की थाली अपरिभाषित धुँधली थी।
कोहरे की चादर में लेटा था,
जमती हुई सिसकारियाँ कुछ
निकली थी।
व्यवस्था की निर्लज्जता को ढकने को आतुर,
वही कफन बन गई जो उसने ओढ़
ली थी।
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2-जलते प्रश्न
क्रूर प्रतिशोध प्रकृति का था या,
भ्रष्ट मानव की धृष्टता का फल?
श्रद्धा–विश्वास पर कुठाराघात या,
मानव मृगतृष्णाओं का दल–दल?
जलते विचारों ने प्रश्नों का,
रूप कर लिया था धारण।
किन्तु उनकी बुद्धि–शुद्धि क्या?
जो विराज रहे थे सिंहासन।
डोल रहे अब भी यानों से,
बर्फ़ में दबे शव नोंच–खाने को।
मानव ही दानव बन बैठा,
निज बंधुओं के अस्थि–पंजर चबाने को।
कितनी भूख–कितनी प्यास है,
जो कभी भी मिटती ही नहीं।
कितनी छल–कपट की दीवारें,
जो आपदाओं से भी ढहती नहीं।
सब बहा ले गया पानी था,
जीवन–आशा–विश्वास–इच्छा के
स्वर्णमहल।
किन्तु एक भी पत्थर न हिला,
भ्रष्ट महल दृढ़ खड़ा अब भी
प्रबल।
पेट अपना और कागजों का भरने वाले,
कहते काम हमने सब कुछ कर डाले।
जिनके कुछ सपने पानी ने बहाए,
उनकी बही आशाओं के कौन रखवाले।
उन्हीं के कुछ सपने बर्फ़ ने दबाए,
और कुछ सर्द हवाओं ने निषोप्राण
कर डाले।
ऐसा नहीं कि सिंहासन वाले फिर
नहीं आएँगे
आएँगे, बर्फ़ में दबे सपनों को
कचोटने।
और सर्द हवाओं से बेघरों को लगे
रिसते–दुखते घावों पर नमक बुरकने।
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आपकी लिखी रचना शनिवार 31 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
thanks a lot mam.
DeleteDr. Kavita Bhatt
बहुत विचारशील और भावप्रवण रचनाएँ हैं...| हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कविताएं.....बहुत-२ बधाई !
ReplyDeleteऔर सर्द हवाओं से बेघरों को लगे
ReplyDeleteरिसते–दुखते घावों पर नमक बुरकने।
मन के क्रोध को शब्दों में ढाला है ,बेहद मार्मिक और झकझोर देने वाली सच्चाई ,
ReplyDeleteभावनाओं का सागर बहाती रचना ,सुन्दर
ReplyDeletekavita ji apki dono kavitaen bahut hi bhavpurn hain .badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
Di. you are always outstanding.
ReplyDeletebahut sunder, vichaarsheel, bhavpurn kavita ikhi hai kavitaji aapne ......badhai .
ReplyDeleteसत्य कहती सटीक रचना...
ReplyDeleteबहुत भाव प्रवण रचनाएँ ...ज्वलंत प्रश्न उठाती !!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई कविता जी