वॉन पब्लिक लाइब्रेरी ! वार्षिक काव्य संगोष्ठी
रामेश्वर काम्बोज, श्याम त्रिपाठी , सरोज सोनी |
प्रथम पंक्ति-सविता अग्रवाल , गोपाल बघेल, प्रेम मलिक |
उषा
बधवार ने बेटियों
महत्त्व को रेखांकित करत हुए कहा-‘बेटियाँ होती बड़ी प्यारी
हैं/ ब्रह्मा ने बेटियाँ स्वर्ग से उतारी
हैं’ तथा ‘तन्हाई के लिए –तरु की छाया का बटोही/ मैं और मेरी तन्हाई’ भावपूर्ण कविताएँ प्रस्तुत कीं।
उषा बधवार-कविता पाठ |
सरोज सैनी ने
-हँसी-रुदन
का खेल रचा, रक्षा करोगे पीर हरोगे; प्रमिला भार्गव ने ‘पीढ़ियाँ दर-पीढ़ियाँ कुर्बानियाँ देती रही’ तथा रेल का डिब्बा कविताएँ सुनाईं ।
जयश्री ने
भक्ति गीत से सबको भाववोभोर कर दिया
श्रीमती
प्रेम मलिक ने
काव्यास्वाद परिवर्तित करते हुए अपनी सरस हास्य की कविताएँ सुनाकर सबकी उदासी दूर
कर दी । ‘हम तो बीवी तुमसे बस करते हैं गुज़ारा और ‘बीवी हो गई पास मियाँ हो गए फ़ेल’को बहुत सराहा गया । इनकी हास्य कविताएँ
सी डी में भी उपलब्ध हैं।
सुमन घई-कविता पाठ |
सुमन
घई जी का नाम
किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है । आपकी कविताएँ
मार्मिक एवं एकदम अछूते विषय पर केन्द्रित रहती हैं।‘खिड़की के टूटे शीशे से झरती एक किरन’ का चित्र गहरे तक छू गया और ‘कहाँ है वो गर्मी का मौसम
, कहाँ है बीता बचपन’ सबको अतीत की स्मृतियों से जुड़ी गहरी उदासी में डुबो गया ।
अनिल
पुरोहित लम्बी
कविताओं के सर्जन में निपुण तो हैं ही, साथ ही गहन भावबोध को बनाए रखने में भी सक्षम हैं। सीता के वनवास पर छाए सन्नाटे की प्रश्नाकुल
करती बोझिल चुप्पी को रूपायित करती
पंक्तियाँ-‘दब गई बच्चों की किलकारियाँ/ सभी लगते भयभीत’ हृदय को मथ गई । अन्य कविता-‘बींध छलनी कर दिया हर तरफ़ से चलते शब्दों के बाण’ ने भी प्रभावित किया ।
सुरेन्द्र पाठक |
सुरेन्द्र
पाठक
जी
की
पिछले दिनों बाइपास सर्ज़री हुई ।फिर भी उनकी जीवन्तता की दाद देनी पड़ेगी-‘अच्छा हुआ या बुरा हुआ
/ मेरे दिल का बाइपास हुआ’ हास्य कविता से सबको गुदगुदाया।
गोपाल बघेल |
प्रो
देवेन्द्र मिश्र ने ‘हैं नहीं सुरक्षित माँ –बहनें / सब ओर दुश्शासन घूम रहे’ ने बहुत प्रभावित किया ।श्रीमती देवेन्द्र
मिश्र ने नियाग्रा जल प्रपात की मनोभावना पर –‘मैं तो ठहरा एक मनमौजी अपनी
धुन में झरता जाऊँ’ सुनाई ।रामेश्वर काम्बोज ने कुछ मुक्तक और नवगीत प्रस्तुत किए ।गोपाल बघेल
की दो पुस्तकों ‘मधुगीति’ और ‘आनन्द गंगा’ का विमोचन भी आज ही हुआ । बघेल जी ने इन पुस्तकों से क्रमश:’ कल बादलों की ओट से / किसने तका किसने लिखा’( पृष्ठ-83)
और ‘आज कुछ आनन्द के क्षण/ मन डुबाते जा रहे(पृष्ठ-51)
कविताएँ सुनाईं।
आज के कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री श्याम त्रिपाठी जी ने ‘उमड़ रहा आशाओं का समन्दर /एक नया सूर्य उगेगा/ मिलेगा जन –जन को प्रकाश/ भारत का होगा उन्नत ललाट’ ,‘महँगाई तू कब तक बढ़ेगी ? / जब तक यह दुनिया रहेगी’ कविताओं के सहज वाचन से सबको मुग्ध कर दिया । काम्बोज और त्रिपाठी जी |
प्रमिला भार्गव -कविता-पाठ |
इस कार्यक्रम
को सम्पन्न करने औरर हिन्दी की पुस्तके प्रदर्शित करने में श्री सुब्रह्मण्यम जी
का योगदान प्रशंसनीय रहा । यह नहीं लगता था कि हम भारत
से बहुत दूर हैं । हिन्दी के प्रति यहाँ का समर्पण भाव सराहनीय है ।
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काव्य संगोष्ठी के बारे में पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई और इससे बढ़कर कि काम्बोज जी वहाँ मुख्य अतिथि थे मेरी ख़ुशी में और ख़ुशी मिल गई। बहुत अच्छी बात है कि विदेशों में भी भाषा को जीवित रखने के लिए बहुत अच्छे प्रयास हो रहे हैं। जैसा कि काम्बोज जी ने बताया कि उनको ये अहसास हुआ कि वे विदेश में नहीं बल्कि भारत में ही किसी संगोष्ठी में बैठे हैं ....यह बात विदेशों में रहने वाले लेखकों के लिए एक अमूल्य सौगात है।
ReplyDeleteबहुत -बहुत बधाई !
हरदीप
काव्य संगोष्ठी के बारे में पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई और इससे बढ़कर कि काम्बोज जी वहाँ मुख्य अतिथि थे मेरी ख़ुशी में और ख़ुशी मिल गई। बहुत अच्छी बात है कि विदेशों में भी भाषा को जीवित रखने के लिए बहुत अच्छे प्रयास हो रहे हैं। जैसा कि काम्बोज जी ने बताया कि उनको ये अहसास हुआ कि वे विदेश में नहीं बल्कि भारत में ही किसी संगोष्ठी में बैठे हैं ....यह बात विदेशों में रहने वाले लेखकों के लिए एक अमूल्य सौगात है।
ReplyDeleteबहुत -बहुत बधाई !
हरदीप
काव्य संगोष्ठी का आंखो देखा वर्णन थी यह हिमांशु भाई की पोस्ट !फिर हिमांशु भाई वहाँ थे तो सोने में सुहागा हो गया ...काश हम भी वहाँ होते ...हिन्दी की सेवा विदेशों में करने वाले सभी आत्मीय जनो को बहुत बहुत .बधाई !
ReplyDeleteडॉ सरस्वती माथुर
विदेशों में ऐसे कार्यक्रम निश्चित ही हिंदी और हिंदी साहित्य के शक्ति-स्रोत बनते हैं। आयोजकों को सफल कार्यक्रम की बधाई और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteवाह! भैया जी ! इस काव्य-संगोष्ठी के बारे में पढ़कर बहुत-बहुत प्रसन्नता हुई। सभी तस्वीरें एवं संगोष्ठी का वर्णन बहुत सुन्दर लगा। आप वहां मुख्य अतिथि थे, ये जानकार तो और भी ख़ुशी हुई। सच में! जब सभी इतनी बढ़िया रचनाएँ सुना रहे होंगे तो आपको क्योंकर लगेगा कि आप अपने देश भारत से दूर हैं -
ReplyDelete~जहाँ हिंदी-गान होगा, अपना भारत-महान होगा !!! :-)
ये अनुभव साझा करने का आपका हार्दिक आभार !!!
~सादर
अनिता ललित
Manniye Kamboj Bhaiji ki adhyakshta mei.n , Bonn Public Library , Bonn city, Canada mei.n sampann Kavya sangoshti kt jaankaari prapt kar ati prasanta hui . Harsh ka vishay hai ki Pravasi Bhartiyo.n mei.n Hindi kavita ke prati itna lagaav hai aur wey Hindi Bhashha ke vikas ke liye sata prayatanshil hai.n. Kamboj bhaiji ko Hardik Badhai.
ReplyDeletePushpa Mehra
हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति आप सभी का प्रेम और श्रद्धा सराहनीय है।
ReplyDeleteहिंदी के प्रचार - प्रसार के लिए आप सभी को साधुवाद।
इतने सुन्दर विवरण के साथ आपने वॉन पब्लिक लाइब्रेरी की वार्षिक काव्य गोष्ठी में उपस्थित कर दिया | सचमुच हिंदी के प्रति समर्पित हृदय सादर नमन वंदन के पात्र हैं | इस आयोजन के लिए आप सभी को बहुत बहुत बधाई ! मुझे भी गर्व की अनुभूति हो रही है कि मैं भी किसी रूप में इस से जुड़ सकी ...पढ़ने को मिला यह भी आनंद का विषय है !!
ReplyDeleteहृदय से धन्यावाद और बहुत शुभ कामनाएँ !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत अच्छा लगा हिमांशु भैया आपकी सक्रियता और हिंदी के प्रति आपकी निष्ठां देख कर !!विदेश में भी इतना महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है ।वहां उपस्थित सभी गुनी जान बधाई के पात्र हैं !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगा ...अपनी हिंदी का मान यों ही बढे आप सब को ..बधाई
ReplyDeleteभ्रमर५
श्री काम्बोज जी को हार्दिक बधाई!!! हिन्दी भाषा एवम साहित्य के उन्न्यन व प्रसार हेतु विदेश मे इस प्रकार के आयोजन उत्साह वर्धन करते है.
ReplyDeletenaman hai us bhartiy bhaav ko jo duniya ke kisii kone mein jaakar bhi sajeev hai..gatimaan hai ....sakriy hai karmrat hai..garv ho raha hai ye dekhkar ki hamare bhaiji vahan mukhy atithi the....hindi ki seva karne vale sabhi sadhko ko badhai v naman hindi ka maan ....desh ka maan
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा देश से दूर मुख्य अतिथि के रूप में देखकर...
ReplyDeleteपूरे समारोह का सचित्र वर्णन सराहनीय है...
हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए किया गया काम निःसंदेह उल्लेखनीय है...
आपको बहुत बहुत बधाई भइया !!
सादर...
संगोष्ठी का सचित्र रिपोर्ताज पढ़ कर यूँ लगा जैसे हम खुद वहां उपस्थित थे...| आभार और बधाई...|
ReplyDeleteपूरे समारोह का सचित्र वर्णन सराहनीय है...
ReplyDeleteहिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए किया गया काम निःसंदेह उल्लेखनीय है...
आपको बहुत बहुत बधाई...भाई साहब
सादर
सफल समारोह के लिए बधाई.
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